हिंदुत्व-कॉरपोरेट गठजोड़ के विरुद्ध व्यापक मंच का निर्माण आज की जरूरत, उपेक्षित तबकों के अधिकारों पर आधारित जनलोकतांत्रिक दिशा ही देश के भविष्य का आधार !

नई दिल्ली। आल इंडिया पीपुल्स फ्रंट (AIPF) का दो-दिवसीय चौथा राष्ट्रीय अधिवेशन आज 8 दिसंबर को नई दिल्ली के सुरजीत भवन में सफलतापूर्वक सम्पन्न हुआ। अधिवेशन के अंतिम सत्र में राष्ट्रीय राजनीतिक परिस्थिति, संगठनात्मक समीक्षा, भावी कार्ययोजना तथा नए नेतृत्व के चुनाव की प्रक्रिया पूर्ण की गई।
अधिवेशन में एसआर दारापुरी को फिर से राष्ट्रीय अध्यक्ष, डॉ. राहुल दास को महासचिव तथा कशु शुुभमूर्ति को संगठन महासचिव, नसीम खान और विजय सिंह को राष्ट्रीय उपाध्यक्ष चुना गया। इसके साथ ही पुष्पा उरांव, सविता गोंड, अमृता और अमर सिंह को राष्ट्रीय सचिव, दिनकर कपूर को कोषाध्यक्ष तथा सुरेश चंद्र बिंद को कार्यालय सचिव के रूप में चुना गया।
अधिवेशन ने 43 सदस्यीय राष्ट्रीय समिति तथा 19 सदस्यीय राष्ट्रीय कार्यसमिति का गठन किया। इसके अतिरिक्त शुभमूर्ति, राघवेंद्र कुस्तुगी, अक्षय कुमार, जया मेहता, डॉ. दिनेश ओबेरॉय, कल्पना शास्त्री, सतेंद्र रंजन, पांडियन कल्पना शास्त्री और डॉ. रमन को सम्मिलित करते हुए सलाहकार मंडल का गठन किया गया।
हिंदुत्व-कॉरपोरेट गठजोड़ और वैश्विक वित्तीय पूँजी के खतरे पर गंभीर चर्चा
अधिवेशन को संबोधित करते हुए एआईपीएफ के संस्थापक सदस्य अखिलेंद्र प्रताप सिंह ने कहा कि हिंदुत्व की प्रेरक शक्ति वैश्विक वित्तीय पूँजी है, जिसने भारत के संविधान, लोकतंत्र और सामाजिक न्याय की संवैधानिक नींव को गहरे संकट में डाल दिया है और समाज के मैत्री भाव को नष्ट करने में लगी है। विपक्षी दलों को कॉरपोरेट-हिंदुत्व के जो गठजोड़ है और पूँजी पर कॉरपोरेट का जो कब्ज़ा है, उसके ख़िलाफ़ मज़बूती से आवाज़ उठानी होगी।
उन्होंने कहा कि इस खतरे का मुकाबला केवल एक व्यापक लोकतांत्रिक गठबंधन ही कर सकता है, जिसके लिए मौजूदा रूढ़िवादी ढाँचों और सीमित राजनीतिक फ्रेमवर्क से आगे बढ़कर बड़ी वैचारिक तथा राजनीतिक एकता कायम करनी होगी।
अखिलेंद्र प्रताप सिंह ने जोर दिया कि “जब तक राज्य का चरित्र लोकतांत्रिक नहीं होगा और जन-लोकतंत्र की स्थापना नहीं होगी, तब तक सत्ता में मात्र हिस्सेदारी से न्याय संभव नहीं है।” उन्होंने यह भी कहा कि AIPF का मत है कि देश को यह ठोस विमर्श देना होगा कि पूँजी, तकनीक और बाज़ार का निर्माण किस प्रकार हो; उत्पादन शक्तियाँ कैसे स्वावलंबी बनें; और विकास का मॉडल जनताकेंद्रित कैसे हो।
वैश्विक दक्षिण-साउथ एकजुटता और बिक्रस की सीमाओं पर भी महत्वपूर्ण चर्चा हुई। अखिलेंद्र प्रताप सिंह ने वैश्विक राजनीति की बदलती चुनौतियों पर बोलते हुए कहा कि अमेरिका ने जिन अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं और मानदंडों को द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद खड़ा किया था, आज उन्हीं को ट्रंप के नेतृत्व में नष्ट करने में लगा है। जैसे संगठन इस एकतरफा वैश्विक प्रभुत्व को चुनौती देने की पहल तो हैं, इसलिए उन्होंने वैश्विक दक्षिण की मजबूत, स्वतंत्र और न्यायोन्मुखी एकता को आगे बढ़ाने एवं और अधिक साहसिक कदम उठाने की जरूरत बताई।
अधिवेशन में वैज्ञानिक दिनेश अबरोल और डॉक्टर रमन ने समाज के विकास में विज्ञान की भूमिका को रेखांकित करते हुए कहा कि आज अतार्किकता, अंधविश्वास और दकियानूसी विचारों को मजबूत करने में सत्ता प्रतिष्ठान लगा हुआ है जो संविधान की मूल भावना के भी विरुद्ध है।
अधिवेशन का निष्कर्ष : जन-लोकतांत्रिक दिशा और राष्ट्रीय साझा मंच की ओर से दो दिनों तक चली गहन विचार-विमर्श की प्रक्रिया के अंत में अधिवेशन ने निष्कर्ष निकाला कि
—हिंदुत्व-कॉरपोरेट गठजोड़ के विरुद्ध व्यापक लोकतांत्रिक राजनीतिक मंच का निर्माण आज की ऐतिहासिक आवश्यकता है।
—युवाओं, महिलाओं, किसानों, श्रमिकों, दलित-पिछड़े समुदायों तथा उपेक्षित तबकों के अधिकारों पर आधारित जन-लोकतांत्रिक दिशा ही देश के भविष्य का आधार हो सकती है।
—आने वाले वर्ष में एआईपीएफ पूरे देश में रोजगार, सामाजिक अधिकार, लोकतांत्रिक संस्थाओं की रक्षा और आर्थिक न्याय के मुद्दों पर व्यापक राष्ट्रीय पहल लेगा।
अधिवेशन का समापन आचार्य शुभमूर्ति द्वारा आभार ज्ञापन के साथ हुआ, जिसमें उन्होंने सभी संगठनों, प्रतिनिधियों और प्रतिभागियों को धन्यवाद देते हुए सामूहिक संघर्ष को आगे बढ़ाने का संकल्प दोहराया।










