कथित गौहत्या के नाम पर गुजरात के ऊना में 11 जुलाई 2016 को 8 दलितों की की गई थी जान लेने की कोशिश, बुरी तरह मारपीट का वीडियो गौगुंडों ने डाला था सोशल मीडिया पर इस चेतावनी के अंदाज में कि हम तो गुंडई करेंगे....
जनज्वार। 2016 में गुजरात के ऊना में गौरक्षा के नाम पर गौगुंडों ने 8 दलितों को निर्ममता से पीटा था और पिटाई का वीडियो सोशल मीडिया पर डाल दिया था। सोशल मीडिया पर वायरल हुए इस वीडियो के बाद पूरे देश को इस घटना के बारे में पता चला था।
इस घटना के बाद गुजरात की भाजपा सरकार ने पीड़ित दलितों को आश्वासन दिया था कि वह पीड़ितों को उनकी योग्यता के अनुसार सरकारी नौकरी देगी। साथ ही हर पीड़ित को 5 एकड़ जमीन देने के अलावा पीड़ित दलितों के गांव मोटा समधियाना को विकसित गांव बनाने का वादा भी किया था। मगर दो साल बीत जाने के बावजूद इनमें से कोई भी वादा गुजरात सरकार पूरा नहीं कर पाई है।
इस मामले में अब ऊना हिंसा के पीड़ित दलितों ने राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से पत्र लिखकर गुजारिश की है कि हमसे किया गया एक भी वादा गुजरात सरकार ने पूरा नहीं किया है इसलिए हम आजिज आ चुके हैं, हमें इच्छामृत्यु की इजाजत दे दी जाए।
दलित पीड़ितों ने 27 नवंबर को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को लिखे पत्र में इच्छामृत्यु की इजाजत मांगने के साथ यह भी कहा है कि हममें से कोई एक 7 दिसंबर से दिल्ली में अनिश्चितकालीन अनशन पर बैठेगा।
ऊना हिंसा पीड़ित परिवार की तरफ से लिखी चिट्ठी में वशराम सर्वया ने लिखा है कि तत्कालीन भाजपाई सीएम आनंदीबेन पटेल ने उनके परिवार और रिश्तेदारों पर हुए हमले के बाद जो वादा किया था, उसे गुजरात सरकार पूरा करने में नाकाम रही।
वशराम ने आगे लिखा है, ‘उन्होंने (आनंदीबेन पटेल) आश्वासन दिया था कि राज्य सरकार हर पीड़ित को 5 एकड़ जमीन देगी। पीड़ितों को उनकी योग्यता के मुताबिक सरकारी नौकरियां मिलेंगी और मोटा समधियाला को विकसित गांव बनाया जाएगा। घटना के गुजरे दो साल 4 महीने हो चुके हैं, मगर सरकार अब तक कोई वादा पूरा नहीं कर पाई है और न ही इस दिशा में कोई प्रयास किया जा रहा है।’
गौरतलब है कि वशराम, उनके छोटे भाई रमेश और उनके पिता बालू और मां कुंवर को गौगुंडों ने अपना निशाना बनाया था। इनके साथ ही 4 अन्य दलितों को भी निशाना बनाया गया था।
गौगुंडों द्वारा कथित गौहत्या के नाम पर गुजरात स्थित सोमनाथ जिले के ऊना तालुका स्थित मोटा समधियाला गांव में 11 जुलाई 2016 को 8 दलितों की जान लेने की कोशिश की थी। उन्हें बुरी तरह मारा—पीटा गया था और उनका वीडियो बनाकर सोशल मीडिया पर डाला गया था, इस चेतावनी के साथ कि हम तो गुंडई करेंगे।
हमलावर वीडियो में दावा करते दिखाई दे रहे थे कि और अन्य को भी भड़काने में सफल हो रहे थे कि मार खा रहे दलित गोकशी में शामिल थे, मगर बाद में हुई पुलिसिया जांच में पता चला कि 8 दलितों में से कोई भी गोकशी में शामिल नहीं था। ये लोग सिर्फ मरे हुए पशुओं के शव से चमड़ा उतार रहे थे, जो कि उनका पुश्तैनी काम है।
दलितों पर हुए इस हमले का वीडियो वायरल होने के बाद दलितों ने राज्यव्यापी प्रदर्शन किया था। कुछ लोगों द्वारा आत्महत्या की भी कोशिश की गई, जिस दौरान एक दलित की मौत भी हुई।
ऊना पीड़ित वशराम के मुताबिक गौगुंडों द्वारा किए गए जानलेवा हमले की वजह से हम चमड़े का अपना पुश्तैनी धंधा छोड़ने के लिए मजबूर हो गए और अब हमारे पास रोजी-रोटी कमाने का भी कोई साधन नहीं है। यही हालात बने रहे तो हमारा परिवार भुखमरी का शिकार हो जाएगा।
बकौल वशराम, हमने अपनी आर्थिक तंगी और लगातार डर—डर कर जीने के बारे में गुजरात सरकार से कई बार लिखित और मौखिक तौर पर शिकायत की, मगर हमारी समस्याओं और अपने आश्वासनों पर गुजरात सरकार ने कोई ध्यान नहीं दिया। अब हम लोग तंग आ गए हैं।
राष्ट्रपति के नाम भेजी गई चिट्ठी में वशराम ने लिखा है कि उन्हें और बाकी पीड़ितों को बहुत दुख है कि गुजरात सरकार ने दलितों के खिलाफ दर्ज 74 मामलों को वापस नहीं लिया है। ये मामले तब दर्ज हुए थे जबकि हम पर हुई जानलेवा घटना के बाद राज्य में व्यापक हिंसक प्रदर्शन हुए थे, जबकि हिंसा को हवा देने का काम दलितों नहीं अगड़ों ने किया था, मगर पुलिस ने आंदोलन के दौरान दलितों के खिलाफ कई झूठे मामले दायर किए थे।
10वीं पास दलित ऊना पीड़ित वशराम कहते हैं कि मैं और मेरा परिवार आजिज आकर अब अपना जीवन खत्म करना चाहते हैं। सरकार की तरफ से हमें किसी भी तरह की सुरक्षा मुहैया नहीं कराई गई है। गवाहों को कोर्ट तक सुरक्षित पहुंचाने के लिए पुलिस ने कुछ नहीं किया और आरोपियों को भी बिना कठिनाई के जमानत दे दी गई। सरकार हमारी मांगों को पूरा करने में नाकाम रही है। हम बहुत दुखी हैं। हम अब आगे जीना नहीं चाहते इसलिए हम इच्छा मृत्यु की इजाजत मांग रहे हैं।