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विमर्श

बढ़ती लैंगिक समानता के बीच पारिवारिक मूल्यों में गिरावट का दौर

Prema Negi
7 May 2019 12:23 PM IST
बढ़ती लैंगिक समानता के बीच पारिवारिक मूल्यों में गिरावट का दौर
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पूरी आबादी में से 45 प्रतिशत लोग विविधता में बढ़ोत्तरी को अच्छा संकेत मानते हैं, पर हमारे देश में केवल 36 प्रतिशत लोग ही इससे खुश हैं...

महेंद्र पाण्डेय, वरिष्ठ लेखक

पिछले कुछ वर्षों में लैंगिक असमानता के मुद्दे पर गंभीर चर्चा की गयी है, जिसका नतीजा यह है कि अब यह असमानता धीरे-धीरे कम होने लगी है। मगर अब दूसरी समस्या पारिवारिक मूल्यों के ह्रास और परिवारों के बिखराव की आ चुकी है। प्रतिष्ठित प्यू रिसर्च सेंटर ने हाल में ही 27 देशों में एक सर्वेक्षण किया था, जिसमें कुल 30133 लोगों से पूछा गया कि पिछले 20 वर्षों के दौरान उनके देश में क्या सामाजिक विविधता बढ़ी है, क्या लैंगिक समानता बढ़ी है, क्या धर्म का महत्व बढ़ा है और क्या पारिवारिक रिश्तों में मजबूती आयी है?

यह सर्वेक्षण जिन 27 देशों में किया गया था, उनके नाम हैं – स्वीडन, भारत, ऑस्ट्रेलिया, साउथ कोरिया, फ्रांस, स्पेन, कनाडा, यूनाइटेड किंगडम, इंडोनेशिया, अमेरिका, केन्या, नीदरलैंड, जर्मनी, इजराइल, ब्राज़ील, इटली, नाइजीरिया, मेक्सिको, अर्जेंटीना, पोलैंड, ग्रीस, जापान, साउथ अफ्रीका, तुनिशिया, फिलीपींस, रूस और हंगरी।

लैंगिक समानता पिछले 20 वर्षों में बढ़ी है या नहीं, इस प्रश्न के जवाब में 68 प्रतिशत लोगों का मानना है कि यह बढ़ी है, जबकि महज 8 प्रतिशत के अनुसार लैंगिक समानता पहले से कम रह गयी है और शेष का मानना है कि इसमें कोई अंतर नहीं आया है। भारत में 77 प्रतिशत लोग समानता के पक्ष में हैं, जबकि 27 देशों के कुल प्रतिभागियों में से 64 प्रतिशत ही इसके पक्ष में हैं।

महिलाओं की संख्या की अपेक्षा ऐसे पुरुषों की संख्या अधिक है, जो लैंगिक समानता में बढ़ोत्तरी देख रहे हैं। जर्मनी में 78 प्रतिशत पुरुषों का और 62 प्रतिशत महिलाओं का मानना है कि लैंगिक समानता पिछले 20 वर्षों में बढ़ी है। पुरुषों और महिलाओं में 10 प्रतिशत से अधिक का अन्तर जापान, यूनाइटेड किंगडम, कनाडा, साउथ कोरिया, नीदरलैंड्स, स्पेन, अमेरिका, स्वीडन और केन्या में भी पाया गया। स्वीडन की 82 प्रतिशत आबादी और हंगरी की 29 प्रतिशत आबादी लैंगिक समानता की पक्षधर है।

पिछले 20 वर्षों में समाज में विविधता बढ़ी है, ऐसा 69 प्रतिशत लोग मानते हैं, जबकि 10 प्रतिशत लोग इसके ठीक उल्टा समझते हैं। पूरी आबादी में से 45 प्रतिशत लोग विविधता में बढ़ोत्तरी को अच्छा संकेत मानते हैं, पर भारत में केवल 36 प्रतिशत लोग ही इससे खुश हैं। यूरोप, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया में अधिकतर लोग विविधता का स्वागत करते हैं पर ग्रीस और इटली इसके अपवाद हैं। ग्रीस के 62 प्रतिशत लोग और इटली के 45 प्रतिशत लोग मानते हैं कि सामाजिक विविधता नहीं होनी चाहिए।

कम उम्र के लोग, अधिक पढ़े-लिखे और वाम विचारधारा वाले लोग विविधता के पक्ष में खड़े रहते हैं, मगर दिक्कत यह है कि आज के दौर में राष्ट्रवादी विचारधारा पूरी दुनिया में हावी होती जा रही है, और ऐसी विचारधारा विविधता को ख़त्म करने का प्रयास करती है। इंडोनेशिया की 76 प्रतिशत आबादी और ग्रीस की केवल 17 प्रतिशत आबादी विविधता का स्वागत करती है।

धर्म की भूमिका पिछले 20 वर्षों में समाज के सन्दर्भ में अधिक हो गयी है या नहीं, इस प्रश्न के उत्तर में 27 प्रतिशत लोग कहते हैं नहीं, जबकि 37 प्रतिशत लोग अपने समाज में धर्म की पहले से अधिक भूमिका देखते हैं। कुल 36 प्रतिशत आबादी मानती है कि धर्म की भूमिका में कोई अंतर नहीं आया है। दुनिया में कुल 13 प्रतिशत लोग समाज में धर्म के दखल का स्वागत करते हैं जबकि भारत में ऐसे 21 प्रतिशत लोग हैं। स्वीडन में 51 प्रतिशत आबादी धर्म का दखल नहीं चाहती, जबकि इंडोनेशिया में केवल 4 प्रतिशत आबादी ऐसा नहीं चाहती।

जब लैंगिक समानता, सामाजिक विविधता और धर्म के प्रभाव में अंतर आएगा, तब जाहिर है परम्परागत पारिवारिक मूल्यों और सिद्धांतों में भी बदलाव होगा और इस सर्वेक्षण से यह स्पष्ट भी होता है। कुल 58 प्रतिशत आबादी के अनुसार पारिवारिक मूल्य पिछले 20 वर्षों में बदल रहे हैं, जबकि महज 15 प्रतिशत आबादी के अनुसार इसमें कोई अंतर नहीं आया है।

इतना तो स्पष्ट है कि समाज बदल रहा है, पर इस बदलाव का संकेत हमेशा विकसित देशों के अध्ययन से ही मिलते हैं, हमें अपने देश में ऐसे अध्ययनों की अधिक आवश्यकता है।

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