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संस्कृति

बल्लभभाई ये देश व्यापारियों का है

Prema Negi
8 Nov 2018 11:19 PM IST
बल्लभभाई ये देश व्यापारियों का है
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दार्जिलिंग में रहने वाले कवि रवि रोदन ने यह कविता सरदार पटेल की सबसे ऊंची प्रतिमा 'स्टेचू आॅफ यूनिटी' के निर्माण के बाद लिखी है....

जर्जित

लहुलूहान फटे हुए खेत की छाती में

लहलहाते अन्नों के मेले नही लगने से

कर्ज मे डूबा

एक सरदार अपने ही खेत की

ऊंची नीम की टहनी पर

अपनी ही पगड़ी को फन्दा बनाकर

अात्महत्या करता हुअा देश में

बल्लभभाई

अाप कि सबसे ऊंची प्रतिमा खड़ी है।

मन के डम्पिंग में

हजार टन मैल कुचैल रखकर

हाथ में झाडू लिए

स्वच्छ अभियान के विज्ञापन करने की

यहां जैसे होड़ लगी है देश भर के लोगों में

इसलिए सब

सेल्फी लेने में व्यस्त हैं।

अाकाश जैसे विशाल

अौर ऊंचे ख्यालों को मन में लेकर

अागे न बढ़ने की

कहानियों की

एक कुरूप बस्ती है

कंक्रीट के बने घनघोर जंगल में

गुम हुए लोगों की कहानियाँ

बल्लभभाई! क्या सुनाएं अाप को...?

बल्लभभाई!

पता नहीं क्यों मुझे विश्वास ही नहीं होता

अाप ने एकता के बलबूते में

रची इस देश के किस्से

लगता है मिलाप कि धुनें

जैसे अासमान में उड़ते चील की तरह

अापके सिर से भी ऊपर ऊपर उड़ते हैं

दिल की बात न मिलने वाले खूब सारे लोगों के

इस देश में

अाप की सबसे ऊंची प्रतिमा खड़ी है।

चिली कवि निकनोर पारा की

कविता कि पंक्तियों को याद करता हूं

अमेरिका के ऊपर उन्होंने लिखा है

जहाँ लिबर्टी एक स्टेचू है

बल्लभभाई!

अाप की ऊंची प्रतिमा को देखकर

भला मैं भारत की एकता के ऊपर

क्या कविता लिखूं ...?

जहाँ एकता

अौर भाइचारे के गीत गाने के बाद

लोग किसी कोने पर जाकर

हथियार के दाम पूछ रहे होते हैं

षड्यंत्र कर रहे होते हैं

अगर विश्वास न हो तो

क्राइम पेट्रोल की घटनाए देखें

वे सब अाप ही के देश की कुरूप कहानियाँ हैं।

बल्लभभाई

किसान फाँसी के फंदे से मौत को चिढ़ा रहे

इस देश के मानचित्र में पड़े

सत्ता की भूख

मुझे सबसे खतरनाक लगती है

पास ने सही कहा है

...सबसे खतरनाक होता है

मुर्दा शान्ति से भर जाना

न होना तड़प का सब सहन कर जाना

सबसे खतरनाक होता है

सपनों का मर जाना

सपनों के सौदागर

हमारी सपनों को रोंद कर

हमारे वजूद को मिटा कर

अपनी भूख मिटा रहे हैं

जिन्दा त‍ो हैं हम सब

पर मुर्दों से कम नहीं

सपने अौर भूख हमें क्यों एक ही लगती है

किसी दिन पेट भर खा लेना

लगता है अच्छे सपने देख रहे हैं

भूख की जंग में हर वक्त हारा हुअा

अौर न जलने वाली चूल्हे की अाग

अौर 'गरीबी हटाअो´

ये स्लोगन

मन को झकझोरते हैं हर वक्त

अाप की ऊंची प्रतिमा के नीचे

एक गरीब देश है।

मै तो कहूंगा

जब देश में कहीं कोई

किसी अौरत की इज्जत लूट रहा हो

कहीं गोलियां /बारूद/घर जल रहा हो

कहीं अपने ही लोग खून की होलियाँ खेल रहे हों

अौर ईश्वर को लोग गली गली खदेड़ रहे हों

बल्लभभाई!

अाप अपनी अाँखें मूंद लेना

नहीं तो शर्मिन्दगी से अौर

इस देश की एकता पर

अाप को सच में रोना अाएगा

अौर रोते हुए अाप को सब देखेंगे।

प्रधानमंत्री

गाल में हाथ लगाए सोच रहे होंगे शायद

केतली में हजार वर्ष उबलती चाय की मिठास

देश के कोने कोने तक पहुँचा कर

भूख् मिटाऊंगा

महंगाई हटाऊंगा

शायद सोच रहे होंगे

अब अमेरिका से भी बड़ा हमारा अाकाश है।

बल्लभभाई!

मैं जानता हूं

सड़क में बमबारी हो

कर्फ्यू लगे

प्रजातंत्र हो वा गणतंत्र हो

अापको कुछ फर्क नहीं पड़ेगा

जैसे कि यहाँ पर भी

ऐसी वाहियात बातों के लिए

कुछ लोगों को कोई फर्क नहीं पड़ता।

बल्लभभाई!

ये व्यापारियों का देश है

व्यापार अब अारम्भ हो चुका है

अाप की ऊंची प्रतिमा से भी ऊंचे ऊंचे

फायदे के ग्राफ वे लोग बना चुके हैं

एक गरीब के घर में

दो वक्त की रोटी अौर दाल जहां नहीं जुटती

उसी देश में खडी है

अाप की सबसे ऊंची प्रतिमा

अाप की ऊंची प्रतिमा से

मुझे कोइ गिला—शिकवा नहीं

मै तो बस सपनों के सौदागरो के विरुद्ध हूं।

बल्लभभाई

अाप देखते जाएं

देश बदलने की सोच

बहुत कम लोग ही लेकर चलेंगे

अाप के इस प्रतिमा को सौदागर

देवता बनाने की सोच रहे हैं

इस कवि की कविता की पंक्तियां

अाप शायद न समझें

पर अाप ये त‍ो समझ चुके हैं

की ये देश व्यापारियों का है।

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