भारत बंद को विपक्षी दलों समेत विभिन्न राजनीतिक-सामाजिक संगठनों का मिला पूर्ण समर्थन
ऐसा पहली बार हुआ कि देश की सर्वोच्च अदालत ने एक साथ दस लाख से ज्यादा आदिवासियों को उनकी रिहाइशों से बेदखल करने और जंगल खाली करवाने के आदेश सरकारों को दिए...
जनज्वार। मोदी सरकार के खिलाफ दलित-आदिवासी संगठनों और विश्वविद्यालयों में 200 प्वाइंट रोस्टर सिस्टम की जगह 13 प्वाइंट रोस्टर लागू किए जाने के खिलाफ समेत कई अन्य मांगों को लेकर आज भारत बंद आयोजित किया गया। इसमें आदिवासियों को उनके जल, जंगल, जमीन से बेदखल न किए जाने समेत 13 प्वाइंट रोस्टर रद्द करने समेत कई मांगों पर प्रदर्शन किया गया। इस व्यापक बंद को देशभर के विभिन्न सामाजिक—राजनीतिक संगठनों ने अपना पूर्ण समर्थन दिया।
भारत बंद का असर उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद में दिखा जब समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ताओं ने इलाहाबाद से लखनऊ जाने वाली गंगा गोमती एक्सप्रेस ट्रेन को रोक दिया। इस व्यापक भारत बंद को बड़े पैमाने पर प्रमुख विपक्षी पार्टियों समेत देशभर के विभिन्न सामाजिक और राजनीतिक संगठनों का भी समर्थन मिला।
क्या थीं भारत बंद की प्रमुख मांगें
केंद्र सरकार आदिवासियों को विस्थापित करने के आदेश के विरुद्ध तत्काल अध्यादेश लाए। सुप्रीम कोर्ट ने बीती 13 फरवरी को एक बेहद अहम फैसला सुनाते हुए 21 राज्यों को आदेश दिए हैं कि वे अनुसूचित जनजातियों और अन्य पारंपरिक वनवासियों को जंगल की ज़मीन से बेदखल कर के जमीनें खाली करवाएं। कोर्ट ने भारतीय वन्य सर्वेक्षण को निर्देश दिए हैं कि वह इन राज्यों में वन क्षेत्रों का उपग्रह से सर्वेक्षण कर के कब्ज़े की स्थिति को सामने लाए और इलाका खाली करवाए जाने के बाद की स्थिति को दर्ज करवाए।
ऐसा पहली बार हुआ कि देश की सर्वोच्च अदालत ने एक साथ दस लाख से ज्यादा आदिवासियों को उनकी रिहाइशों से बेदखल करने और जंगल खाली करवाने के आदेश सरकारों को दिए हैं। यह अभूतपूर्व फैसला है, जिसे जस्टिस अरुण मिश्रा, नवीन सिन्हा और इंदिरा बनर्जी की खंडपीठ ने कुछ स्वयंसेवी संगठनों द्वारा वनाधिकार अधिनियम 2006 की वैधता को चुनौती देने वाली दायर एक याचिका पर सुनाई करते हुए सुनाया है। इन संगठनों में वाइल्डलाइफ फर्स्ट नाम का एनजीओ भी है।
वनाधिकार अधिनियम को इस उद्देश्य से पारित किया गया था, ताकि वनवासियों के साथ हुए ऐतिहासिक नाइंसाफी को दुरुस्त किया जा सके। इस कानून में जंगल की ज़मीनों पर वनवासियों के पारंपरिक अधिकारों को मान्यता दी गई थी, जिसे वे पीढि़यों से अपनी आजीविका के लिए इस्तेमाल करते आ रहे थे।
स्वयंसेवी संगठनों ने इस कानून को चुनौती दी थी और आदिवासियों को वहां से बेदखल किए जाने की मांग की थी। बीती 13 फरवरी को हुई सुनवाई में अदालत ने एक विस्तृत आदेश पारित करते हुए इक्कीस राज्यों को आदिवासियों से वनभूमि खाली कराने के निर्देश जारी कर दिए, जिससे इन 21 राज्यों में लाखों आदिवासियों की जिंदगी तबाह होने जा रही है।
इसके अलावा 200 पॉइंट रोस्टर प्रणाली लागू करने के साथ, केंद्रीय विश्वविद्यालय एवं अन्य शैक्षिक संस्थानों में नियुक्ति हेतु आरक्षण को विषयवार, बिना बैकलॉग के 13 पॉइंट #रोस्टर को तुरंत रद्द करते हुए उसकी जगह पुनः 200 पॉइंट रोस्टर लागू किये जाने के लिए केंद्र सरकार अध्यादेश (Ordinance) या कानून लाए। ऐसा ही अध्यादेश रेलवे में लागू 13 पॉइंट रोस्टर के लिए भी लाया जाए।
मंगलवार, 22 जनवरी, 2019 को सर्वोच्च न्यायालय द्वारा इलाहाबाद उच्च न्यायालय के 2017 के आदेश को चुनौती देने वाले केंद्र द्वारा दायर सभी अपीलों को खारिज करने के बाद विश्वविद्यालयों में संकाय पद अब किसी विश्वविद्यालय में उपलब्ध कुल पदों के अनुसार आरक्षित नहीं होंगे। कोर्ट के फैसले के बाद केंद्र विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) के 5 मार्च 2018 का आदेश, जिससे 200 पॉइंट रोस्टर व्यवस्था को बदल कर 13 पॉइंट विभागवार / विषयवार / बिना बैकलॉग के कर दिया था, जिसे केंद्र सरकार ने संसद में बयान देकर रोक लगाई थी, पुनः प्रभावी हो गयी है।
अब केंद्रीय एवं अन्य विश्वविद्यालयों तथा महाविद्यालयों की नियुक्तियों में अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और अन्य पिछड़े वर्गों के लिए कोटा प्रणाली के तहत आरक्षित शिक्षण पदों को लगभग समाप्त कर दिया जायेगा। यह देखते हुए कि आरक्षित संकाय पद पहले से ही भारी संख्या में खाली हैं,नई नीति से विश्वविद्यालय प्रणाली में हाशिए के वर्गों के प्रतिनिधित्व को लगभग समाप्त कर दिया जायेगा।
दिल्ली विश्वविद्यालय और इससे सम्बद्ध कॉलेजों में, जहाँ पिछले 4-5 वर्षों से परमानेंट (स्थाई) नियुक्तियाँ नहीं हुई हैं और लगभग 4-5 हज़ार शिक्षक एडहॉक नियुक्तियों के अंतर्गत काम कर रहे हैं, वहाँ करीब इसके आधे यानी लगभग 2000 आरक्षित वर्गों के एसिस्टेंट प्रोफेसर पर गाज गिरने की सम्भावना है। नियमनुसार इन एडहॉक असिस्टेंट प्रोफेसरों की नियुक्ति प्रक्रिया को हर 4 महीने पुनः किया जाना चाहिए, तो जैसे ही व्यवस्था 13 पॉइंट रोस्टर लागू होगा, इन वर्गों का आरक्षण समाप्त हो जायेगा और ये सड़क पर होंगे।
विषयवार 13 पॉइंट रोस्टर को तत्काल वापस लेने की माँग और विश्वविद्यालय एवं महाविद्यालयों की नियुक्तियों में सम्पूर्ण पदों को एक साथ लेते हुए, आरक्षित वर्गों को क्रम में पहले रखते हुए 200 पॉइंट रोस्टर को पुनः लागू किये जाने की माँग भी रखी गई।
न्यायपालिका में आरक्षण भी भारत बंद की एक मांग थी। वर्तमान दौर में उच्च न्यायालय व उच्चतम न्यायालय द्वारा लगातार बहुजन विरोधी निर्णय संज्ञान में आ रहे हैं, इसलिए इस बंद में मांग की गई कि न्यायपालिका में आरक्षण लागू किया जाये
निजी क्षेत्र में आरक्षण की मांग भी भारत बंद में शामिल थी। वर्तमान मोदी सरकार ने रोज़गार को लेकर दिखाई उदासीनता से देश में बड़े स्तर पर बेरोजगारी बढ़ी है। चूँकि सार्वजनिक क्षेत्र में मात्र 2 फीसदी नौकरियां हैं, जिन पर ठेका पद्धति व निजीकरण द्वारा लगातार कुठाराघात किया जा रहा है ऐसी स्थिति में सार्वजनिक क्षेत्र में घटते रोजगार से बहुजन समाज को काफी क्षति हुई है, इसलिए हम सार्वजिनिक क्षेत्र में रोजगार के अवसर पैदा करने के साथ ही निजी क्षेत्र में आरक्षण की मांग करते हैं।
सार्वजनिक क्षेत्र के बड़े प्रतिष्ठानों के निजीकरण के विरोध में भी भारत बंद आयोजित किया गया था। मोदी के सत्तासीन होने के बाद लगातार ये देखा गया है कि बड़े व्यापारिक घरानों के हाथों देश की अमूल्य धरोहरों व प्रतिष्ठित संस्थानों को गिरवी रखने की प्रक्रिया तेज़ हो गयी है। ऐसे में सरकार अपने दायित्व से भाग रही है, साथ ही इस बढ़ते निजीकरण से लगातार आरक्षण पर कुठाराघात करने का प्रयास सरकार द्वारा किया जा रहा है।
रिहाई मंच, राष्ट्रीय अम्बेडकर अधिवक्ता महासंघ, यादव सेना, सीपीआईएमएल, जमीयतुल कुरैशी उत्तर प्रदेश व अन्य, एयूडीएसयू, किसान क्रांति सेना और कई अन्य संगठनों ने भारत बंद का समर्थन करने के साथ साथ इनकी मांगों का भी पूर्ण समर्थन किया।