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संस्कृति

भूपेंद्र सिंह की कहानी 'एक चोर'

Janjwar Team
24 May 2018 1:52 PM GMT
भूपेंद्र सिंह की कहानी एक चोर
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खून-पसीना एक करते-करते जब ये हालत हो गई मेरी तब मालिक ने निकाल दिया मुझे नौकरी से। तुम्हारा भगवान उस कम्पनी मालिक को देखता है के नहीं? या फिर हमारे जैसे लोगों को देखने के लिए ही बना है वो...

भूपेंद्र सिंह

बहुत ही कम लोगों को पता मालूम था शहर के उस इकलौते सुन्दर पार्क का, क्योंकि उसके चारों तरफ ऊंची-ऊंची इमारतें थीं। पार्क में जाने के लिए एक पतली सी गली थी जो सिर्फ उस पार्क के लिए ही छोेडी गई थी। मेन सड़क पर आकर गली पर एक लोहे का गेट था। गेट को लोहे की मोटी चैन से बांधकर आधा खोला गया था, ताकि उसमें आवारा पशुओं की बजाय केवल आदमी ही घूस सकें।

कहने भर के लिए एक नौजवान असल में एक कंकाल कपड़े पहने खोजी नजरों से सड़क पर चलती गाड़ियों की पी-पौं की आवाज़ व शोरगुल के बीच यातायात से खचाखच भरी सड़क को पार करते हुए आ रहा था। रोडवेज़ बस के बराबर से निकला तो बस ने धुएं का काला बादल उसके मुँह पर छोड़ दिया। वो अपनी नांक को एक हाथ से दबाकर और दूसरे हाथ से धुएं को हटाते हुए बड़ी मुश्किल से सड़क को पार कर उस गेट तक पहुंचा।

डरते हुए से गेट के अन्दर प्रवेश कर पार्क की तरफ बढा। उसका डर इस कदर था कि उसके चलने से ये पता चल रहा था अगर वो गलत जगह पर जा रहा हो तो कोई उसे देखकर वहां से भगाऐ उससे पहले ही वो सबकी नजरों से बचकर वहां से वापस भाग आएगा। ज्यों-ज्यों वो पार्क की तरफ बढता जा रहा था। त्यों-त्यों उसकी धड़कन भी बढ़ती जा रही थी।

पार्क के किनारे पर जाकर वो रूक गया और चारों तरफ देखा। उसका डर चरम पर था। पार्क में बैठे लोगों का उस पर ध्यान नहीं गया तो उसे थोड़ी शांति हुई। अब वो एक पेड़ की छाया में चप्पल निकाल कर बैठ गया। उसकी चप्पलों का पिछला हिस्सा घिसकर खत्म हो चुका था। चलते समय उसकी एड़ियाँ जमीन पर पड़ती थी। उसके कपड़े भी फटने की कगार पर थे। चेहरे पर हल्की दाढी, रंग गेहुंआ, सुन्दर नाक और आँखें तो बहुत सुन्दर थी, पर अन्दर धंसी हुई थी।

वो बेहद शरीफ़ परिवार का लड़का लग रहा था। उसे देखकर ऐसा मालूम हो रहा था कि जैसे उसकी जवानी को जबरदस्ती झाड़ा गया हो, जैसे उसकी जवानी पर डाका पड़ा हो। थोड़ी देर बाद वो अपनी चप्पलों को सिर के नीचे रखकर लेट गया। उसने एक करवट ली और हाथ भी चप्पलों पर इस कदर रखा जैसे उसे चप्पल चोरी होने का डर हो। थोड़ी देर बाद उसने फिर करवट बदली और अबकी बार दूसरा हाथ चप्पलों पर रख लिया। उसने अपनी उँगलियों को चप्पलों की बाधियों में फंसा लिया ताकि कोई उसकी चप्पल ना लेकर भाग पाये, अगर उसकी आँख लग जाए तो।

वो बार-बार करवट बदल रहा था। उसकी बेचैनी से साफ नजर आ रहा था वो किसी गहरी चिन्ता में था। अब वो उठ कर बैठ गया और एकटक सामने नीचे की तरफ देखने लगा। वो वापस लेट गया चप्पलों पर सिर रखकर और चप्पलों को कसकर पकड़ लिया। उसने आँखें बंद कर ली, लग रहा था इस बार वो सो जायेगा। पर नहीं थोड़ी देर बाद वो फिर से उठकर बैठ गया, और कुछ ही सैकंड में खड़ा होकर अपनी चप्पलों के आस-पास पेड की छाया में ही टहलने लगा।

एेसा लग रहा था जैसे वो किसी बड़े मसले पर सोच रहा हो, और काफी सूझ-बूझ से फैसला लेने वाला हो। अब थोड़ा टहल कर पहलू में बैठा गया। एक पैर मोड़ लिया और दूसरे को हाथों में जकड़ कर घुटने पर मुँह टेढा कर टिका लिया। गहरी चिन्ता में उसके होंठ आगे निकल आये थे। अचानक उसका ध्यान अपनी चप्पलों पर गया। वो उनसे थोड़ा दूर बैठ गया था। उसने झटके से चप्पलों को अपनी ओर खींचा और अपने घुटने के नीचे दबा लिया। उसने जल्दी से चारों तरफ नजर घुमाई, उसकी धड़कन तेज हो गई थी। उसकी इस हरकत को देखकर ऐसा लगा जैसे उसकी चप्पल चोरी होने से बाल-बाल बची हों। अब उसने एक लम्बी सांस लेकर छोड़ी। फिर घास का एक तिनका तोड़ा और चबाकर फेंक दिया।

वो कभी बैठ जाता, कभी लेट जाता और कभी उठकर टहलने लग जाता। साथ ही ध्यान लगातार चप्पलों पर भी था। उसकी बेचैनी बढती जा रही थी, शायद उसे कुछ चाहिए था। अपनी झड़ी हुई जवानी? या फिर काम? या दोनों ही? अब वो अपनी चप्पलों को आँखों के सामने रख कर फिर से बैठ गया। अपनी मुट्ठियों को जोर से भींचकर दांत पीसने लगा। थोड़ी ही देर में उसकी आँखें लाल हो गई। शायद बदले की भावना के साथ गहरी साजिश का ख्याल हो उसके मन में। देखते ही देखते आँखें भर आयी थी उसकी, पर आंसू एक भी नहीं गिरा।

थोड़ी देर बाद उसकी बेचैनी और चेहरा दोनों शांत हो गये, लग रहा था अब वह किसी अंजाम पर पहुंच गया और अब काम को अंजाम देने वाला हो। चप्पल पहन कर वो पार्क से बहुत जल्दी बाहर आ गया। वह इस कदर आगे बढ रहा था जैसे जीत कर ही वापस लौटेगा, वहां से जहां वो जा रहा है। लगभग एक किलोमीटर दूर जाकर मेन बाज़ार में एक जूते की दुकान में घुस गया। कुछ देर बाद वो उस दुकान में से बड़ी तेजी से निकल कर भागा उसके हाथ में भी कुछ था।

वो आगे जाकर बाज़ार की दूसरी गली में जाकर मुड़ गया। लगता है उसने जीत हासिल कर ली थी, शायद उसने दुकानदार को मार दिया। अभी तक उस दुकान से कोई नहीं निकला, लगता है बात पक्की है। पर जब आगे जाकर देखा तो दुकान में जूते-चप्पल और उनके खाली डिब्बे बिखरे पड़े थे। कहीं कोई मरा या घायल नहीं पड़ा था और न ही कहीं कोई खून का धब्बा था। दुकान में एक लकड़ी की सीढी लगी हुई थी जो ऊपर से छत में एक सुराख में घुसी हुई थी। शायद ये दुकान का छोटा सा गोदाम था। दुकानदार उसमें से बड़ी मुश्किल से जल्दबाजी में निकला। उसके हाथ में एक डिब्बा था, उसे फेंककर नंगे पैर ही हड़बड़ाया दुकान से बाहर भागा।

उसे देख बराबर वाले दुकानदार ने कहा, 'इस तरफ भागा है कोई।' फिर आगे किसी राहगीर ने बताया 'इस तरफ भागा है।' दुकानदार पूरी फुर्ती से उसी दिशा में भागा। शायद वो तिजोरी लूटकर भागा है। वो लड़का ज्यादा दूर नहीं पहुँच पाया था। जल्दी ही थक गया था भागने की बजाय चलने लगा था।

उसे पीछे से बहुत जोर से चिल्लाने की आवाज़ आयी। 'अबे रुक साले भागकर कहां जायेगा?'

उसने पीछे मुड़कर देखा तो दुकानदार लगभग उससे 20 मीटर की दूरी पर था। अब वो एकदम हड़बड़ाकर बहुत जोर से भागा। दुकानदार भी पहले से जोर से भागा। लेकिन उस हड्डियों के कंकाल में अब इतनी ताकत नहीं बची थी कि वो और लम्बा भाग सके।

दुकानदार फिर चिल्लाया, 'पकड़ा गया अब तो तू भागकर कहां तक जाएगा?' दुकानदार ने उसकी शर्ट का कॉलर लगभग छू लिया था। वो लड़का उसकी उंगलियों को अपनी गर्दन पर महसूस कर रहा था। जितनी देर उसने दुकानदार का हाथ अपनी गर्दन पर महसूस किया उतनी देर में उसे पहली और दूसरी दुनिया नजर आ गयी थी। पहली यानी माँ-बाप, घर-परिवार और उनकी इज्ज़त-बेइज्जती तथा दूसरी दुनिया मतलब पकड़े जाने पर आसपास के लोगों से पिटाई फिर पुलिस की पिटाई चौंकी, थाना, जेल सब नजर आ गया था।

ये सब सोचकर उसने पहले से तेज भागने के लिए आखिरी जोर लगाया और दुकानदार से थोड़ी दूरी बना ली, लेकिन उसकी सांस टूट चुकी थी और उसने वो बड़ा सा लिफाफा भागते-भागते पीछे की तरफ फेंक दिया। दुकानदार जल्दी से लिफाफे की तरफ लपका उठाकर उसे खोलकर देखा फिर उसकी तरफ देखा इतनी देर में उस लड़के ने गली से निकल कर बाज़ार की दूसरी सड़क पार कर ली थी।

दुकानदार अब उसे पकड़ना नहीं चाहता था, एक लम्बी गहरी सांस छोड़कर वो अपनी दुकान की तरफ चला गया। लिफाफा थोड़ा भारी दिखाई दे रहा था। लग रहा था उसमें खूब सारा पैसा होगा। पकड़े जाने के डर से वो लड़का अभी भी भागा जा रहा था, पर बहुत धीमे—धीमे। वो बहुत थका और घबराया हुआ था और बार-बार पीछे मुड़कर देख रहा था कि कहीं दुकानदार पीछे से आकर उसे पकड़ ना ले।

उसके चेहरे और उसकी चाल से हार के लक्षण साफ नजर आ रहे थे। अपनी साजिश में फेल होकर डगमगाये कदमों से वो वापस उसी पार्क में जाकर उसी पेड़ के नीचे तने से पीठ लगा और चेहरे पर अधमरे भाव लेकर बैठा ही था कि वही राहगीर वहां घूमते हुए आ गया, जिसने उसे बाज़ार में भागते हुए देखा था। राहगीर उसे देखकर उसके पास आकर बोला, तू तो वही है ना जो उस दुकान से चोरी करके भागा था?'

वो इस नए आदमी को देखकर घबरा गया जो उसकी करतूत के बारे में जानता था। उसे एकटक देखता रहा। उसे समझ नहीं आया कि यहां से उठकर भागे या फिर यहीं रहे? अब तक राहगीर भी उसके पास बैठ गया। और शब्दों पर दबाव देकर कहने लगा, 'दिखने में तो ठीक-ठाक हो फिर कोई काम-धंधा या नौकरी-चाकरी क्यों नहीं कर लेते?'

राहगीर की इन बातों से उसे लगा की इस आदमी से तुझे कोई खतरा नहीं है। उसने चिढ़ते हुए कहा, 'तुमसे मतलब? अपना काम करो तुम।'

राहगीर को उसकी इस बात पर गुस्सा आया और बोला, पकड़ा जाता तो सारी हेकड़ी निकल जाती।'

राहगीर की इस बात पर वो कुछ न बोल पाया एक लम्बी सांस लेकर छोड़ी और चुप रहा। राहगीर ने थोड़ी देर रूक कर फिर कहा, 'हर अच्छा और बुरा करने वाले को भगवान देखता है।'

राहगीर के मुख से ये शब्द निकलते ही वो गुस्से में एकदम तमतमाते हुए बोला, 'हर अच्छा और बुरा करने वाले को भगवान देखता है तो तुम तो हर काम अच्छा करते होगे, भगवान ने तुम्हें देखा कभी? बोलो देखा? और कहां है वो जरा मुझे भी मिलवा दो अपने भगवान से। जरा पूछ लूं क्या-क्या करते देखा उसने मुझे? कम्पनी में 10-12 घण्टे काम कर शरीर गलाते हुए देखा कि नहीं उसने मुझे़? बेवजह मालिक से डांट खाते हुए देखा के नहीं? मुझे कभी भूखे पेट सोते देखा के नहीं? पैसे के बिना बीमारी में तड़पते हुए देखा के नहीं?'

अब वो जोरों से खांसने लगा, लग रहा था जैसे प्राण निकालेंगे उसके शरीर से। राहगीर ने अपने बैग से पानी की बोतल निकाल कर उसकी तरफ बढ़ा दी। उसने पानी पीकर एक गहरी सांस छोड़कर बोतल वापस देते हुए कहा, 'तुम्हें 22 साल का लगता हूं मैं कहीं से? तुम्हारे जैसे को कंधे पर लाद कर भाग जाऊं ऐसा था मैं।'

खांसी में लगभग आराम हो गया था तो आगे बोला, 'खून-पसीना एक करते-करते जब ये हालत हो गई मेरी तब मालिक ने निकाल दिया मुझे नौकरी से। तुम्हारा भगवान उस कम्पनी मालिक को देखता है के नहीं? या फिर हमारे जैसे लोगों को देखने के लिए ही बना है वो?'

अब थोड़ी देर के लिए दोनों चुप हो गए। फिर राहगीर बोला, 'पर ये जो कर रहे हो ये भी तो गलत है। हाँ मानता हूं गलत है। कम्पनी से निकल जाने के बाद दूसरी कम्पनियों के गेट पर जा रहा हूं लगातार काम ढूंढ़ने| शहर की आधी कम्पनियां तो छान मारी आधी बाकी हैं।'

फिर अपनी चप्पल उसकी तरफ करते हुए कहा, 'ये देखो पैदल चल-चल कर इनका पिछला हिस्सा ख़त्म हो गया है और ये पैर भी देख लो। बहुत दर्द है इन एड़ियों में, चल नहीं पाता हूँ ज्यादा दूर तक। सोचा पैर में जूते रहेंगे तो चलने में आसानी रहेगी। जो कम्पनियां बच गई हैं वहां काम ढूंढ़ने जा पाऊंगा।'

राहगीर ने आश्चर्य के साथ कहा, 'ओह! तो तुम जूते चूरा कर भागे थे मुझे लगा तिजोरी साफ की होगी तुमने, अब कहां हैं जूते?'

'नहीं कुछ दूर ही भाग पाया तब तक दुकानदार मेरे पीछे—पीछे आ गया था। वो मुझे पकड़ने ही वाला था तो मैने जूते फेंक दिये थे।'

'फिर तो अपराधी हूँ मैं तुम्हारा।'

अब वो लड़का आश्चर्य से बोला, 'क्यों तुम क्यों हो मेरे अपराधी? मैंने ही दुकानदार को तुम्हारे पीछे आने का रास्ता बताया था।'

थोड़ी देर तक वो लड़का राहगीर को एकटक बिना पलक झपकाये देखता रहा। फिर उससे नजर हटाकर कुछ दूर नीचे की तरफ देखने लगा, और कुछ सोचते हुए कहा, नहीं तुमने ठीक ही किया।'

थोड़ी देर बाद वो पेड के तने से हटकर और अपनी चप्पलों को सिर के नीचे रखकर एक करवट लेकर लेट गया। वो पहले से ज्यादा गहरी सोच में डूब गया था। धीरे से उसका एक हाथ चप्पलों पर चला गया था उन्हें पकड़ कर रखने के लिये। अब काफी देर तक उस लड़के के शरीर ने कोई हरकत नहीं की। उसकी आँखों से आंसू निकल कर ज़मीन पर टपक रहे थे। और राहगीर वहां से उठकर दूसरी तरफ चला गया था।

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