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विमर्श

भाजपा के गले की फांस बनी गौरक्षा की राजनीति

Prema Negi
21 Jan 2019 3:25 PM IST
भाजपा के गले की फांस बनी गौरक्षा की राजनीति
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file photo

जिन जानवरों से जीवन निर्वहन होता था, वही जीवन के संकट का कारण बन गए हैं। आवारा जानवरों की संख्या लगातार बढ़ने के कारण किसान और आमजन सभी परेशान हैं...

अभिषेक आज़ाद

जिस गाय के मुद्दे को लेकर बीजेपी ने अपनी सियासी जमीन तैयार की, अब उसी गाय के मुद्दे में फंसती नज़र आ रही है। जिस गौ वंश संरक्षण को भाजपा से राष्ट्रीय चुनावी मुद्दा बनाया था, अब वही राष्ट्रीय समस्या बन चुका है। घुमंतू संख्या में बेतहाशा वृद्धि हुयी है। ये घुमन्तूं गाएं किसानों के लिए टिड्डी दल की तरह समस्या बन चुकी हैं। इनका झुण्ड जिस खेत से गुजरता है, उसे टिड्डी दल की तरह चटकर जाता है।

पूरे देश के किसान आवारा गायों से परेशान है और इसके लिए योगी मोदी सरकार को दोषी मानते हैं। पहले गौरक्षकों का आतंक था। ये लोग गाय ले जाते हुए किसी भी व्यक्ति की पिटाई कर देते थे। जब यूपी में योगी की नई-नई सरकार बनी थी, तो कम उम्र के बेरोजगार लड़के भगवा गमछा लपेटकर गौरक्षक बने चौराहों पर घूमते दिखाई पड़ते थे, किन्तु अब हालात ऐसे हो गये हैं कि अगर कहीं गौरक्षक दिख जायें तो उन्हीं की पिटाई हो सकती है। जब से गायों का आतंक बढ़ा है। गौरक्षकों का आतंक कम हुआ है। आजकल ये चौराहों पर नहीं दिखाए देते।

पड़ोसी गांवों के बीच आवारा पशुओं को छोड़ने को लेकर तनाव लगातार बढ़ रहा है। मध्य प्रदेश में गाय छोड़ना दंडनीय अपराध है। हरियाणा में गाय छोड़ने पर 5100 रूपये का जुर्माना है। अभी हाल में योगी जी ने सभी जिलाधिकारियों को गाय छोड़ने वालों के खिलाफ सख्त कार्यवाही करने का निर्देश दिया है। यूपी सरकार ने गौसंरक्षण के नाम पर 0.5 प्रतिशत का सेस भी लगाया है और सभी नगर पालिकाओं को गौशाला बनाने के लिए 11 करोड़ रुपये दिए गए है।

इन सभी कागज़ी कार्यवाहियों का ज़मीन पर कोई असर नहीं दिख रहा। किसान रात-रात भर जागकर अपनी फसल की रखवाली कर रहे हैं, उनकी नींद हराम हो गयी है। उन्हें अपने गांव की भी पहरेदारी करनी पड़ रही है कि कहीं दूसरे गांव के लोग अपनी गायें न छोड़ जायें। वो बाहर से आनेवालों को संदेह की नज़र से देखते हैं।

यूपी के बस्ती जिले में रहने वाले 'विरेन्दर' बताते हैं कि पिछले कुछ सालों में जंगली गायों की संख्या कई गुना हो गयी है। हम पूरी रात जगकर खेतों की रखवाली करते हैं, इसके बावजूद गायों ने हमारी गेंहू की फसल को दो बार पूरी तरह से नष्ट कर दिया है। सभी लोग अपने खेतों को कटीले तारों से घेर रहे हैं, जिसके चलते बाजार में कटीला तार पैसा देने के बावजूद भी समय पर नहीं मिल रहा। लोग गाय को माता के बजाय आपदा के रूप में देखने लगे हैं और गाय पालना बंद कर रहे हैं।

कटीले तारों से गायों को चोट पहुंच रही है, किसी का कान फटा है तो किसी के गले पर घाव है। गौरक्षकों के बारे में पूछने पर बताते हैं कि हमारे यहाँ का किसान हमेशा से जंगली गायों से परेशान रहा है। पशुपालक किसान कभी भी गौरक्षकों के साथ नहीं था। जितने भी लोगो ने गौरक्षा का बीड़ा उठा रखा है, उसमें कोई भी किसान या पशुपालक नहीं है।

उनके पडोसी 'निरंजन' बताते हैं, जिन जानवरों से जीवन निर्वहन होता था, वही जीवन के संकट का कारण बन गए हैं। आवारा जानवरों की संख्या लगातार बढ़ने के कारण किसान और आमजन सभी परेशान हैं। आवारा जानवर उनकी फसलों को बरबाद कर रहे हैं, जिससे निज़ात पाने के लिए लोग अपने खेतों में खम्भे के सहारे नुकीले तार लगाकर बचाने की कोशिश कर रहे हैं। गरीब किसान जो बीज और खाद खरीदने में असमर्थ है, वो अब अपनी फसल बचाने के लिए खम्भे और तार कहाँ से लायें। यही हालत सभी गांवों में दिखती है कि बहुत से आवारा जानवर घूमते रहते हैं। पहले जहाँ खेतों के किनारे पेड़ दिखते थे, अब वहां पर खम्भे और तार दिखते हैं।

सरकार के खिलाफ लोगों में नाराजगी है। कई जगहों पर किसानों ने सैकड़ों गायों को प्राथमिक स्कूलों में बंद कर दिया है। केवल यूपी ही नहीं बल्कि पूरे देश के किसान आवारा गायों से परेशान है। यह एक बड़ा राष्ट्रीय मुद्दा बन चुका है। किसान पहले से ही मुसीबतें झेल रहा था। बीजेपी ने उसके सामने एक और नई मुसीबत खड़ी कर दी।

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आगामी चुनावों में भाजपा को इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा। जिस मुद्दे को लेकर अब तक भाजपा बढ़त बना रही थी, अब वही मुद्दा भाजपा को डुबाएगा। आगामी चुनावों में भाजपा को तो सबक मिल जायेगा, किन्तु हमारे सामने सबसे बड़ी चुनौती यह है कि किसानी को तबाह होने से कैसे बचाया जाय?

(अभिषेक आज़ाद दिल्ली विश्वविद्यालय के दर्शन विभाग में शोधछात्र और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्य हैं।)

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