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ग्राउंड रिपोर्ट : जिसका जातीय गणित नहीं रहेगा ठीक, जमुई की जनता कर देगी उसका हिसाब
भूदेव चौधरी ने 2009 ने जदयू के टिकट पर लोकसभा चुनाव लड़ा था, मगर इस बार वो रालोसपा के टिकट पर मैदान में हैं. रालोसपा का चुनाव चिन्ह पंखा है. फिलहाल इस पंखे में दो कंडेंसर लग गए हैं, इसलिए चिराग के बुझ जाने के चर्चा भी जोरों पर है...
जमुई से अवनीश पाठक की रिपोर्ट
जमुई में महागठबंधन में शामिल एक पार्टी के सीनियर लीडर से मैंने चिराग पासवान के कामकाज के बारे में पूछा तो उन्होंने उनके नाकारेपन की लिस्ट गिना दी. उन्हीं से भूदेव चौधरी के कामकाज के बारे में पूछा तो थोड़ा ठहरकर बोले-विकास पुरुष तो वो भी नहीं रहे.
भूदेव चौधरी पिछली बार लोकसभा सदस्य थे. जमुई की जनता चिराग और भूदेव दोनों को एक-एक बार परख चुकी है, विकास पुरुष दोनों नहीं रहे और विकास भी उतना ही ही जितना आप सैलानी निगाहों से देख पाएं. इससे ज्यादा देखने की कोशिश करेंगे तो तकलीफ होगी.
चिराग और भूदेव को भी विकास से ज्यादा अपने-अपने जातीय गणित पर भरोसा है. दोनों नेता जातीय समीकरण साधने की कोशिश में हैं, हालांकि फिलहाल जैसे समीकरण उभर रहे हैं, उसे देखते हुए ये कहना मुनासिब है कि जमुई में पंखे की तेज हवा और चिराग की लौ के बीच मुकाबला है. स्थानीय लोगों का कहना है कि पंखे में दो कंडेंसर लग गए हैं, इसलिए हवा बहुत ही तेज है. ये दो कंडेंसर क्या है, इसे आगे बताऊंगा.
जमुई का जातीय गणित
जमुई लोकसभा क्षेत्र में पिछड़ी जाति के मतदाताओं की संख्या सर्वाधिक है, जिनमें तकरीबन 3.5 लाख यादव और 4.0 लाख दूसरी पिछड़ी जातियां शामिल हैं. मुसलमान लगभग 2.5 लाख हैं, दलित-महादलित जातियों के मतदाता 2.5 लाख और राजपूत मतदाता 2.0 लाख. क्षेत्र में कुल 17.09 लाख वोटर हैं.
जमुई के स्थानीय लोगों का कहना है कि पासवानों और अगड़ी जातियों का एक हिस्सा, जिनमें भुमिहार, ब्राम्हण और कायस्थ शामिल हैं, चिराग के साथ है. जिले में लंबे समय से राजनीति कर रहे सीपीआईएमएल के एक कार्यकर्ता शम्भू शरण ने बताया कि दलितों में पासवानों की संख्या 50 से 60 हजार है. अगड़ी जातियों में भूमिहार डेढ़ लाख के आसपास हैं, जबकि ब्राह्मण, कायस्थ 20-30 हजार के बीच हैं. अगड़ी जातियों में सबसे ज्यादा मतदाता राजपूत जाति के हैं, जिनकी संख्या तकरीबन 2 लाख है. जमुई में फिलहाल जो राजनीतिक गोलबंदी हो रही है, उस पर गौर करें तो राजपूत मतदाताओं के बड़े हिस्से का भूदेव चौधरी के साथ जाना तय माना जा रहा है. दरअसल इसका कारण राजपूतों के स्थानीय क्षत्रप नरेंद्र सिंह को माना जा रहा है. नरेंद्र सिंह का भुमिहार मतदाताओं में भी अच्छा-खासा प्रभाव है, जिसकी वजह से माना जा रहा है कि भुमिहारों की भी अच्छी-खासी संख्या भूदेव चौधरी के पाले में जा सकती है. नरेंद्र सिंह जदयू के नेता हैं मगर वो भूदेव चौधरी की मदद क्यों कर रहे हैं, इसके पीछे अदावत की एक पुरानी कहानी है, उस पर चर्चा दूसरी कहानी में करूंगा.
दो कंडेंसर वाला पंखा
भूदेव चौधरी ने 2009 ने जदयू के टिकट पर लोकसभा चुनाव लड़ा था, मगर इस बार वो रालोसपा के टिकट पर मैदान में हैं. रालोसपा का चुनाव चिन्ह पंखा है. फिलहाल इस पंखे में दो कंडेंसर लग गए हैं, इसलिए चिराग के बुझ जाने के चर्चा भी जोरों पर है. ये दो कंडेंसर दरअसल इलाके दो जातीय क्षत्रप हैं. पहले क्षत्रप नरेंद्र सिंह हैं, जिनका जिक्र ऊपर किया गया. माना जा रहा है कि नरेंद्र सिंह राजपूतों और भूमिहारों के बड़े हिस्से का वोट भूदेव चौधरी के पक्ष में गिरवा सकते हैं. वहीं दूसरे क्षत्रप राजद नेता जेपी यादव हैं, जिनकी यादव मतदाताओं पर गहरी पकड़ है. नरेंद्र सिंह और जेपी यादव की भूदेव के पक्ष में गोलबंदी के बाद जमुई में मुसलमानों के वोट को निर्णायक माना जा रहा है.
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कैसा है मुसलमानों का मिजाज?
माना जा रहा है कि यादवों को छोड़ अन्य पिछड़ी जातियों-बलोहार, बढ़ई, माली, ठाकुर और कुम्हार, जिन्हें स्थानीय शब्दसवली में पंचकोनियां जातियां कहा जाता है, का वोट दोनों हिस्सों में बंट सकता है. दलितों में पासवान चिराग के साथ हैं, जबकि मांझी, तुरी, रजक और पासी जातियों का बड़ा हिस्सा भूदेव के साथ. भूदेव चौधरी खुद भी पासी हैं. बसपा ने भी जमुई में अपना उम्मीदवार खड़ा किया है, इसलिए रविदासों का वोट किसी और पक्ष में जाने के संभावना बहुत कम है.
इन तमाम बड़ी-छोटी संख्या वाली जातियों के बाद जिनका वोट सबसे महत्वपूर्ण है, वो मुसलमान है. सम्भवतः उन्हीं का वोट निर्णायक भी है. हालांकि मुस्लिम मतदाताओं ने अब तक अपने पत्ते नहीं खोले हैं.
मुस्लिम युवाओं से बात करिए तो समझ आता है कि उनमें ये फ्रस्ट्रेशन लगातार बढ़ रही है कि वो सिर्फ वोट बैंक बन कर रह गए हैं. उन्हें राजनीतिक दलों के भीतर न कोई पद मिल रहा है और न चुनाव लड़ने के लिए टिकट. मुखिया तक के चुनाव में राजनीतिक दल उनकी कौम के नेताओं को मौका नहीं देते. बीते शनिवार जमुई में मुस्लिम समुदाय की एक बैठक हुई थी, जिसमें इस मसले पर रोष भी प्रकट किया गया. एक स्थानीय मुस्लिम नेता ने बताया कि उस मीटिंग में भूदेव चौधरी भी मौजूद थे, मुसलमानों के गुस्से को शांत करने के लिए उन्हें माफी भी मांगनी पड़ी.
एक मुस्लिम राजनीतिक कार्यकर्ता ने बताया कि मुस्लिम युवक सेक्युलरिज़्म जैसे आडंबर में पड़ने के बजाय कैलकुलेटिव डिसिशन लेना बेहतर मान रहे हैं. एक मुस्लिम युवक ने बताया कि चिराग भाइया कहते हैं कि बीजेपी अगर कुछ गड़बड़ करेगी तो हम अलग हो जाएंगे.
हालांकि जमुई में दो साल पहले मुहर्रम पर साम्प्रदायिक झड़प हुई थी, जिसकी याद भी मुस्लिम समुदाय के जहन में है, माना जा रहा है कि मुस्लिमों के वोटिंग को वो मसला भी प्रभावित करेगा.
ये कह सकते हैं कि जमुई में जीत उसी की होगी, जिसके साथ मुसलमान हैं.
(लगभग एक दशक से पत्रकारिता कर रहे अवनीश पाठक ने हाल ही में न्यूज 18 से समाचार संपादक के पद से विदा ली है।)