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3 मार्च से शुरू होगी सीपीपीसीसी, 5 मार्च से चलेगा एनपीसी का सत्र, देशभर से करीब 5 हज़ार प्रतिनिधि और सदस्य करेंगे दो सप्ताह तक विभिन्न मुद्दों और नीतियों पर चर्चा
बीजिंग से अनिल आज़ाद पांडेय की रिपोर्ट
चीन में मार्च में होने वाली सबसे बड़ी हलचल शुरू होने को है, जो न केवल राजनीतिक लिहाज से अहम होगी, बल्कि आर्थिक व सामाजिक तरीके से भी। जी हां, हम बात कर रहे हैं चीन के दो सत्रों (टूसेशन्स) की, जो चीन की राजधानी बीजिंग में आयोजित होने हैं। जिन्हें चीनी में ल्यांगख्वेई कहा जाता है।
ये दो सत्र हैं एनपीसी और सीपीपीसीसी। जहां एनपीसी सर्वोच्च सत्ताधारी संस्था कहलाती है, वहीं सीपीपीसीसी एक सलाहकार की भूमिका में होती है। नेशनल पीपुल्स कांग्रेस, जिसे हम भारतीय हिसाब से लोकसभा कह सकते हैं, वह 5 मार्च से शुरू होगी, जबकि सीपीपीसीसी यानी चाइनीज़ पीपुल्स पॉलिटिकल कंसलटेटिव कांफ्रेंस का आगाज 3 मार्च से हो रहा है। ये दोनों सत्र लगभग दो सप्ताह तक चलेंगे।
इस दौरान एनपीसी के 2980 प्रतिनिधि और सीपीपीसीसी के 2158 सदस्य प्रतिनिधि मैराथन सत्रों में हिस्सा लेंगे। जिनमेंअहम फैसले भी लिए जाएंगे। एनपीसी के उद्घाटन के वक्त चीनी प्रधानमंत्री ली ख्छ्यांग बेहद अहम कार्य रिपोर्ट पेश करेंगे। जिसमें पिछले साल भर की प्रगति रिपोर्ट और इस साल के लिए लक्ष्य निर्धारित किए जाएंगे। इस बीच देश के तमाम हिस्सों से सीपीपीसीसी के सदस्य 1 मार्च को बीजिंग पहुंच गए। जबकि एनपीसी के सदस्य भी पहुंचने लगे हैं।
यहां बता दें कि साल 2018 में 13वीं एनपीसी और सीपीपीसीसी के पहले पूर्णाधिवेशन आयोजित किए गए थे। वह साल 2018 ही था, जिसमें राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री के साथ-साथ कुछप्रतिनिधियों का चुनाव हुआ था। इस तरह वह 13वीं एनपीसी और सीपीपीसीसी का पहला सत्र था। यह 13वां सत्र पाँच साल तक चलेगा।
गौरतलब है कि पिछले साल एनपीसी के उद्घाटन समारोह में आर्थिक और सामाजिक विकास की जो कार्य रिपोर्ट पेश की गयी, उसमें 36 अहम बिंदु प्रस्तुत किए गए थे। हाल ही चीन सरकार द्वारा जारी रिपोर्ट के मुताबिक सभी योजनाएं और कार्य पूरे कर लिए गए हैं। ध्यान रहे कि पिछले साल चीन को व्यापारिक समस्याओं और विवादों का सामना करना पड़ा, जिसमें अमेरिका के साथ हुआ व्यापारिक संघर्ष प्रमुख था। जिसके तहत अमेरिका ने चीन के तमाम उत्पादों पर भारी ड्यूटी लगाने का फैसला किया। इस लिहाज से देखा जाय तो आर्थिक लक्ष्यों को हासिल करना आसान नहीं था। बावजूद इसके चीन सरकार ने इन मोर्चों पर सफलता पायी है।
सरकारी आंकड़ों की मानें तो चीन के जीडीपी, सीपीआई, शहरों में रोजगार दर, शहरी बेरोजगारी दर, राष्ट्रीय वित्तीय खर्च आदि ने वार्षिक लक्ष्य हासिल किया है। हालांकि कुछ क्षेत्रों में प्रदर्शन अनुमान से भी बेहतर रहा। गौरतलब है कि चीनी आर्थिक विकास की धीमी गति को संदेह की नजरों से भी देखा गया, लेकिन चीन की आर्थिक विकास दर विश्व के तमाम प्रतिष्ठित संस्थाओं के अनुमान से मेल खाती है।
2018 में आईएमएफ द्वारा जारी विश्व आर्थिक आउटलुक रिपोर्ट में चीन की विकास दर के लिए 6.6 फीसदी का अनुमान लगाया गया। वहीं विश्व बैंक ने इस अवधि में 6.5 प्रतिशत की वृद्धि दर की भविष्यवाणी की। जबकि आर्थिक सहयोग व विकास संगठन ने 2018 में चीन कीजीडीपी को 6.7 फीसदी पर निर्धारित किया। ये सभी आंकड़े चीन सरकार की रिपोर्ट से मिलते-जुलते हैं। वैश्विक आर्थिक मंदी का असर 2018 में जारी रहा और व्यापारिक विवादों से भी चीन को दो-चार होना पड़ा। इसके बाद भी चीन ने बेहतर प्रदर्शन किया।
चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग कई बार कह चुके हैं विकास लक्ष्य के निर्धारण का मतलब लोगों को जन-जीवन को बेहतर करने से है। 2019 में भी चीन को तमाम चुनौतियों और मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है। आगामी दो सत्रों के जरिए चीन आर्थिक व सामाजिक विकास के नए लक्ष्य तय करेगा, जिस पर पूरी दुनिया की नजर रहेगी।
(रेडियो चाइना में कार्यरत वरिष्ठ पत्रकार अनिल आजाद पांडेय चीन-भारत मुद्दों पर भारतीय व अंतरराष्ट्रीय मीडिया में समसामयिक टिप्पणी लिखते रहते हैं। उन्होंने ‘हैलोचीन’ पुस्तक भी लिखी है।)