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कोरोना की महामारी का दुनियाभर में असर जारी, टीबी जैसे रोग भी लौटकर आ रहे वापस

Nirmal kant
8 May 2020 11:45 AM GMT
कोरोना की महामारी का दुनियाभर में असर जारी, टीबी जैसे रोग भी लौटकर आ रहे वापस
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भारत की स्वास्थ्य सेवाओं के लिए टीबी सबसे बड़ी चुनौती है और इससे प्रतिवर्ष 2.2 लाख व्यक्ति असमय मरते हैं। 22 मार्च के बाद से यानि जनता कर्फ्यू के बाद के तीन सप्ताह में प्रति सप्ताह केवल 11367 मामले दर्ज किये गए...

महेंद्र पाण्डेय का विश्लेषण

जनज्वार। कोरोना वायरस के इस दौर में दुनियाभर की स्वास्थ्य सेवायें और चिकित्सा अनुसन्धान कोविड 19 में व्यस्त हैं और ऐसे में पुराने रोग, जिनका दुनिया में असर कम होता जा रहा था, फिर से उभर कर वापस आ रहे हैं। ट्यूबरक्युलोसिस (टीबी) पर एक अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के अनुसार कोविड 19 से सम्बंधित लॉकडाउन और दूसरे प्रतिबंधों के कारण अगले कुछ वर्षों में टीबी के लाखों नए मरीज सामने आयेंगे।

टीबी से सबसे अधिक प्रभावित देशों, भारत, केन्या और यूक्रेन में विस्तृत अध्ययन करने के बाद अनुमान है कि अब से वर्ष 2025 के बीच दुनिया में टीबी के लगभग 63 लाख नए मामले आयेंगे और इनमें से 14 लाख की मृत्यु बिना किसी उपचार के होगी। हम टीबी निवारण के लिए जितने भी प्रयास कर रहे थे, कोविड 19 के कारण उन प्रयासों में हम पांच से 9 वर्ष पिछड़ जायेंगे। टीबी का इलाज तो होता है लेकिन इन्हें लगातार दवाओं की जरूरत पड़ती है और इस समय इन मरीजों को अस्पताल वापस कर रहे हैं और इन्हें समय पर दवा नहीं मिल रही है।

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स्टॉप टीबी पार्टनरशिप की एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर लुसिका दितिऊ के अनुसार कुछ रोगों की विश्व समुदाय किस तरह अनदेखी करता है इसका उदाहरण टीबी से स्पष्ट है। कोविड 19 एक ऐसी बीमारी है जिसका इतिहास केवल 120 दिन पुराना है, पर दुनिया में 100 से अधिक कम्पनियां केवल इसके टीके को विकसित करने में प्रयासरत हैं, दूसरी तरफ टीबी हजारों साल पुरानी बीमारी है और वयस्कों के लिए इसका अब तक कोई टीका नहीं है और बच्चों के लिए केवल एक टीका है। इसी तरह मलेरिया और एड्स जैसे रोगों का भी आज तक कोई टीका विकसित नहीं किया जा सका है।

स्टॉप टीबी पार्टनरशिप के लिए इस अध्ययन को लन्दन के इम्पीरियल कॉलेज, अवनीर हेल्थ और जॉन होपकिंस यूनिवर्सिटी ने किया है। इसमें दुनिया में तीन महीने के लॉकडाउन और फिर जीवन सुचारू होने में अगले 10 महीने के आधार पर बताया गया है कि वर्ष 2025 तक टीबी के 63 लाख नए मामले आयेंगे और वर्ष 2027 तक कम से कम 5 करोड़ टीकों की जरूरत पड़ेगी। अभी टीबी से प्रतिवर्ष लगभग 15 लाख लोगों की मौत होती है, पर वर्ष 2025 तक यह मृत्यु दर दुगुनी हो जायेगी। किसी भी संचारी रोग की तुलना में सर्वाधिक मौतें टीबी के कारण होतीं हैं।

र्ल्ड टीबी रिपोर्ट 2019 के अनुसार दुनिया के सभी देशों की तुलना में भारत में इसके मरीजों की संख्या सर्वाधिक है। भारत में दुनिया के कुल टीबी मरीजों में से 27 प्रतिशत से अधिक हैं, और यहाँ इससे लगभग 1200 व्यक्ति रोज मरते हैं। भारत में प्रतिवर्ष टीबी के लगभग 27 लाख नए मामले आते हैं। हमारे देश के कुल मरीजों में से 20 प्रतिशत से अधिक उत्तर प्रदेश में, 10 प्रतिशत महाराष्ट्र में; और राजस्थान, मध्य प्रदेश और गुजरात में प्रत्येक राज्य में 7 प्रतिशत मरीज हैं।

ब टीबी के मरीज अपना ठीक तरीके से इलाज नहीं करवाते या फिर दवा पूरी अवधि तक नहीं लेते तब ड्रग-रेसिस्टेंट टीबी का खतरा बढ़ जाता है और यह पूरी दुनिया के लिए खतरा बन रहा है। ड्रग-रेसिस्टेंट टीबी का इलाज कठिन और महंगा होता है। दुनिया के कुल ड्रग-रेसिस्टेंट टीबी में से 27 प्रतिशत अकेले भारत में हैं, और इसके बाद चीन का स्थान है जहां इसके 14 प्रतिशत मरीज हैं।

कुछ दिनों पहले ही विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार लॉकडाउन के समय भारत में टीबी के परीक्षण में 75 प्रतिशत की कमी आंकी गई है, जिसके भविष्य में परिणाम घातक होंगे और यह रोग तेजी से फैलेगा। भारत की स्वास्थ्य सेवाओं के लिए टीबी सबसे बड़ी चुनौती है और इससे प्रतिवर्ष 2.2 लाख व्यक्ति असमय मरते हैं। 22 मार्च के बाद से यानि जनता कर्फ्यू के बाद के तीन सप्ताह में प्रति सप्ताह केवल 11367 मामले दर्ज किये गए, जबकि इससे पहले के सप्ताहों में यह दर 45875 प्रति सप्ताह थी।

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म जांच से कम मामले सामने आ रहे हैं, इसके कारण अधिकतर लोगों में टीबी का पता ही नहीं है। टीबी संक्रामक रोग है, इसलिए जिन लोगों को टीबी है पर उन्हें पता नहीं है, वे इस रोग को अपने आसपास के लोगों में फैलायेंगे। इससे टीबी के मामले अधिक आयेंगे और अनुमान है कि इस वर्ष देश में टीबी से मरने वालों की संख्या 1,90,000 से अधिक होगी।

ह संख्या सामान्य अवस्था में टीबी से होने वाली कुल 16.6 लाख मौतों के अतिरिक्त होगी। इस तरह देश टीबी निवारण के मामले में 5 वर्ष पीछे पहुँच जाएगा। जाहिर है, इस समय जब देश की स्वास्थ्य सेवा पूरी तरह कोविड 19 में व्यस्त है, अन्य बीमारियाँ उपेक्षित होती जा रहीं हैं और इसके परिणाम भयानक हो सकते हैं।

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