सास के साथ रहने वाली बहुओं में होती है आत्मविश्वास की कमी : शोध में हुआ खुलासा
सास बहुओं पर इसलिए रखती हैं नियंत्रण क्योंकि अपने स्वास्थ्य, प्रजनन और गर्भ निरोध जैसे विषयों पर भी न रहे उसका अधिकार, अधिकतर सास अधिक से अधिक बेटों की चाह में गर्भ निरोध के रहती हैं खिलाफ, 48 प्रतिशत महिलाओं ने स्वीकारा सास नहीं करतीं गर्भ निरोध का समर्थन...
महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी
हमारे देश में सास और बहू के संबंधों पर बहुत चर्चा की जाती है, अनेक फ़िल्में बंटी हैं और अधिकतर टीवी सीरियल सालोंसाल इसी विषय पर चलते रहते हैं। फिर भी, इस रिश्ते की गंभीर विवेचना नहीं होती और ना ही कोई विस्तृत अध्ययन किया जाता है।
द इकोनॉमिस्ट ने वर्ष 2013 के एक अंक में भारतीय सास-बहू के रिश्तों पर एक निबंध प्रकाशित किया था, जिसका शीर्षक था, कर्स ऑफ़ द मम्मीजी – यानी सास का अभिशाप। इसका सारांश था कि आधुनिक समय में एकल परिवारों के पनपने के कारण सास का प्रभाव कम होता जा रहा है।
हाल में ही बोस्टन यूनिवर्सिटी, देलही स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स और नार्थ ईस्टर्न यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों और समाज शास्त्रियों के एक संयुक्त दल ने एक शोधपत्र प्रकाशित किया है, जिसका शीर्षक भी द इकोनॉमिस्ट वाला ही है, कर्स ऑफ़ द मम्मीजी। यह अध्ययन वर्ष 2018 में किया गया था। उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले के 28 गाँव की 671 विवाहित महिलायें इस अध्ययन में शामिल की गयी थीं। इन महिलाओं की उम्र 18 से 30 वर्ष थी।
अध्ययन में शामिल महिलाओं की औसत उम्र 26 वर्ष थी, और इनके पतियों की औसत उम्र 33 वर्ष थी। अधिकतर महिलायें हिन्दू थीं और पिछड़ी जातियों की थीं। इनमें से 60 प्रतिशत परिवारों के पास कृषि भूमि थी और 70 प्रतिशत महिलायें अपनी सास के साथ रहती थीं। इस अध्ययन में महिलाओं पर उनकी सास के नियंत्रण का अध्ययन किया गया था।
इस अध्ययन के अनुसार सास के साथ रहने वाली महिलाओं के घूमने-फिरने और लोगों से मिलने-जुलने पर सास का प्रभावी नियंत्रण होता है। इसलिए इनका सामाजिक दायरा बहुत सीमित होता है, जिससे इनके पास आवश्यक सूचना का अभाव रहता है। ऐसी महिलाओं में सेल्फ-कॉन्फिडेंस की कमी रहती और धीरे-धीरे इनकी इच्छाएं और अरमान ख़त्म हो जाते हैं। इन महिलाओं के स्वास्थ्य, प्रजनन और गर्भ निरोध जैसे विषयों पर भी सास का हुक्म चलता है।
अध्ययन में शामिल कुल महिलाओं में से 36 प्रतिशत महिलाओं की कोई सहेली पूरे जौनपुर जिले में नहीं थी, और 22 प्रतिशत महिलाओं की कोई सहेली कहीं नहीं थी। केवल 14 प्रतिशत महिलायें ऐसी थीं, जिन्हें स्वास्थ्य केन्द्रों तक अकेले जाने की इजाजत थी, और मात्र 12 प्रतिशत महिलाओं को अपने गाँव में रिश्तेदारों के यहाँ अकेले जाने की इजाजत मिलती थी।
सास का प्रभाव इस कदर हावी रहता है कि इन महिलाओं ने सास और पति के अलावा औसतन केवल 2 और लोगों के साथ बात की है। जो महिलायें अपनी सास के साथ एक ही घर में रहती हैं, उन्होंने 18 प्रतिशत कम लोगों से बात की है, या फिर उनकी सहेलियां कम हैं।
अध्ययन के अनुसार सास बहुओं पर नियंत्रण इसलिए रखती हैं, क्योंकि उनके स्वास्थ्य, प्रजनन और गर्भ निरोध जैसे विषयों पर उनका नियंत्रण रहे। अधिकतर सास अधिक से अधिक बेटे की चाह में गर्भ निरोध के विरुद्ध रहती हैं। लगभग 48 प्रतिशत महिलाओं के अनुसार उनकी सास गर्भ निरोध का समर्थन नहीं करतीं। यदि किसी महिला का पति कहीं बाहर काम करता है और महिला गाँव में ही रहती है तब सास का नियंत्रण और सख्त हो जाता है।
जाहिर है कि सास के साथ रहने वाली बहुएं दबाव और तनाव में रहती हैं और किसी और राजदार या सहेली के अभाव में पूरी दुनिया से कटी रहती हैं। इन महिलाओं के प्रजनन, स्वास्थ्य और गर्भ निरोध पर भी सास की हुकूमत चलती है। अधिकतर महिलायें तो स्वास्थ्य के बारे में पूरी जानकारी भी नहीं जुटा पातीं और गर्भ निरोध के नए तरीकों का पता नहीं है।
सरकारी आंकड़ों के अनुसार मोबाइल सेवाओं के इतने प्रसार के बाद भी ग्रामीण क्षेत्रों की महज एक तिहाई महिलाओं के पास ही अपना फ़ोन है। कुल मिलाकर इतना तो स्पष्ट है कि अधिकतर महिलायें आज भी किसी स्वतंत्र निर्णय लेने के लिए आजाद नहीं हैं, यही देश की आधी दुनिया का सच है।