Begin typing your search above and press return to search.
जनज्वार विशेष

शोध में हुआ खुलासा, फलों और सब्जियों का पोषण हो रहा कम

Prema Negi
28 Oct 2018 4:25 PM IST
शोध में हुआ खुलासा, फलों और सब्जियों का पोषण हो रहा कम
x

जलवायु परिवर्तन और तापमान बृद्धि का यही हाल रहा तो वर्ष 2050 तक विश्व में सब्जियों और दालों के उत्पादन में एक तिहाई की कमी हो जायेगी...

पर्यावरण लेखक महेंद्र पाण्डेय की रिपोर्ट

एक नए अध्ययन के अनुसार जलवायु परिवर्तन, तापमान बृद्धि, वायुमंडल में बढ़ती कार्बन डाइऑक्साइड गैस की सांद्रता और पृथ्वी की सतह के पास ओजोन की बढ़ती सांद्रता के कारण फलों और सब्जियों में पोषक पदार्थों की कमी हो रही है या फिर पोषक पदार्थों का अनुपात बदल रहा है. इसका सीधा मतलब यह है कि धीरे-धीरे फलों और सब्जियों के खाने से सेहत को उतना फायदा नहीं होगा, जितना अब तक होता रहा है.

एकेडेमिक प्रेस द्वारा प्रकाशित एक पुस्तक, एमर्जिंग टेकनोलोजीस एंड मैनेजमेंट ऑफ़ क्रॉप स्ट्रेस टोलरेंस, के अनुसार जलवायु परिवर्तन प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष तरीके से फलों और सब्जियों की गुणवत्ता को प्रभावित कर रहा है. बढ़ती कार्बन डाइऑक्साइड की सांद्रता से प्रकाश संश्लेषण की क्रिया प्रभावित हो रही है, इससे शर्करा, ओर्गानिक एसिड्स, फ़्लवोनोइड और एंटीओक्सिदेंट्स की सांद्रता प्रभावित होती है. आलू और इसी तरह की दूसरी फसलों में शर्करा की सांद्रता कम होती जा रही है. ओजोन की बढ़ती सांद्रता से फलों में विटामिन सी की मात्रा प्रभावित हो रही है और टमाटर में बीटा-कैरोटीन की सांद्रता कम हो रही है.

कुछ वर्षों पहले तक वैज्ञानिक समुदाय जलवायु परिवर्तन के बारे में एकमत नहीं था, पर अब यह एक सच्चाई है. आंधी, तूफ़ान, चक्रवात, सूखा, बिना मौसम बारिश इत्यादि इसकी गवाही दे रहे हैं. हरेक साल पिछले साल से अधिक गरम होता जा रहा है. दक्षिणी ध्रुव की बर्फ अभूतपूर्व तेजी से पिघल रही है. इसीलिए अब वैज्ञानिक समुदाय इसके होने वाले प्रभावों के अध्ययन पर अपने ध्यान केन्द्रित कर रहे हैं.

लन्दन स्कूल ऑफ़ हाइजीन एंड ट्रॉपिकल मेडिसिन द्वारा किये गए एक अध्ययन के अनुसार जलवायु परिवर्तन और तापमान बृद्धि का यही हाल रहा तो वर्ष 2050 तक विश्व में सब्जियों और दालों के उत्पादन में एक तिहाई की कमी हो जायेगी. इसका कारण बढता तापमान और इसके कारण पानी की कमी है. अध्ययन के मुख्य लेखक डॉ पौलिन स्चील्बीक के अनुसार सब्जियों और दालों के उत्पादन में कमी का सीधा असर जन स्वास्थ्य पर पड़ेगा क्यों कि भोजन में अनेक पोषक तत्वों की कमी हो जायेगी.

डॉ पौलिन के अनुसार उनके अध्ययन से स्पष्ट है कि तापमान बृद्धि और पानी की कमी जैसे पर्यावरणीय प्रभावों से विश्व में कृषि उत्पादकता को वास्तविक खतरा है, जिसका सीधा असर खाद्य सुरक्षा और जन स्वास्थ्य पर पड़ना निश्चित है. सब्जियां और दालें, स्वस्थ्य, संतुलित और सतत पोषण के लिए सबसे आवश्यक हैं. पोषण के दिशानिर्देश लगातार लोगों को अपने भोजन में इनको अधिक से अधिक शामिल करने का सुझाव देते हैं. ऐसे में दालों और सब्जियों के उत्पादन में कमी का सीधा असर आबादी के पोषण और स्वास्थ्य पर पड़ना तय है. डॉ पौलिन के दल ने यह अध्ययन वर्ष 1975 के बाद इसी विषय पर प्रकाशित पूरे विश्व के शोध पत्रों के आधार पर किया है, इसीलिए इस निष्कर्ष से दीर्घकालीन अनुमान लगाना आसान है. इनके अनुसार वर्ष 2050 तक दालों के उत्पादन में 9 प्रतिशत और सब्जियों के उत्पादन में 35 प्रतिशत तक की कमी आ सकती है.

भविष्य में फलों और सब्जियों की पैदावार और इनमें पोषक पदार्थों की कमी ही एकमात्र समस्या नहीं है. समस्या फलों और सब्जियों की विश्व में कुल पैदावार से भी जुडी है. एक नए अध्ययन से पता चलता है कि यदि विश्व की पूरी आबादी को आदर्श पोषण देना है तब जितनी सब्जियों और फलों की आवश्यकता होगी इनका उतना पैदावार ही नहीं किया जाता. कनाडा के यूनिवर्सिटी ऑफ़ ग्येल्फ के वैज्ञानिकों ने प्लोस वन नामक जर्नल के हाल के अंक में इस सम्बन्ध में एक शोध पत्र प्रकाशित किया है.

इस शोध पत्र में आदर्श पोषण का आधार हावर्ड यूनिवर्सिटी के हेल्थी ईटिंग प्लेट्स गाइड को बनाया है. इसके अनुसार आदर्श पोषण में किसी भी मनुष्य के दिनभर के खाने में 50 प्रतिशत सब्जियां और फल, 25 प्रतिशत अनाज और शेष 25 प्रतिशत प्रोटीन, दूध से बने उत्पाद और वसा होना चाहिए. पर दुनियाभर के किसान अनाजों के उत्पादन पर ही ध्यान दे रहे हैं, इसका नतीजा यह है कि अनाजों का उत्पादन जरूरत से अधिक हो रहा है और बाकी सारी फसलें उपेक्षित हो रही हैं.

शोध पत्र के अनुसार वर्ष 2050 तक विश्व की कुल आबादी लगभग 9.8 अरब हो जायेगी. उस समय दुनिया में आदर्श पोषण के अनुसार अनाज डेढ़ गुना अधिक, वसा और तेल तीन गुना अधिक और शर्करा वाली फसलों का उत्पादन चार गुना अधिक हो रहा होगा. दूसरी तरफ फलों और सब्जियों का उत्पादन एक-तिहाई और प्रोटीन का उत्पादन 60 प्रतिशत तक कम हो रहा होगा.

इस शोध पत्र में इसका भी आकलन किया गया है कि आदर्श पोषण को पूरा करने में कितनी भूमि पर कृषि करनी होगी. यदि आदर्श पोषण के अनुसार अनाजों की पैदावार कुछ कम करके फलों और सब्जियों का उत्पादन बढ़ाना है तब अभी जितनी भूमि पर खेती होती है, उसके मुकाबले 5 करोड़ हेक्टेयर कम भूमि की आवश्यकता पड़ेगी क्यों कि फलों और सब्जियों की पैदावार में कम भूमि की जरूरत होती है.

दूसरी तरफ यदि सब कुछ वर्तमान जैसा चलता रहा तब वर्ष 2050 तक कृषि के लिए 1.2 करोड़ हेक्टेयर अधिक भूमि की आवश्यकता होगी. स्पष्ट है कि फलों और सब्जियों के उत्पादन को बढ़ाने से केवल पोषण का स्तर ही नहीं अच्छा होगा बल्कि भूमि सहित पर्यावरण का भी भला होगा.

वैज्ञानिकों के अनुसार वर्ष 2050 तक बहुत कुछ बदलने वाला है. जलवायु परिवर्तन के कारण अभूतपूर्व मानव विस्थापन होगा और बहुत सारे सागर तटीय क्षेत्र डूब चुके होंगे. पृथ्वी का एक बड़ा हिस्सा मरूभूमि बन चुका होगा. कुल मिलाकर इतना तो तय है कि दुनिया का नक्शा बदल चुका होगा. इसीलिए पूरे विश्व समुदाय हो मिलकर इस समस्या पर ध्यान देना होगा तभी हम भविष्य के लिए तैयार हो सकेंगे,

Next Story

विविध