पिछले 25 वर्षों से जरूरतमंद विद्यार्थियों के लिए किताबों का ठिकाना है 'विद्यार्थी बंधू'
'विद्यार्थी बंधू' नामक संस्थान को चलाने वाले सलिल सक्सेना बताते हैं हम पुरानी किताबें 40 प्रतिशत मूल्य पर खरीदते हैं और 60 प्रतिशत मूल्य पर बेचते हैं। फिर वही विद्यार्थी वही किताबें हमें 40 प्रतिशत मूल्य में बेच जाते हैं, इस तरह विद्यार्थी 20 प्रतिशत मूल्य में ही अपनी पढ़ाई आसानी से कर पाते हैं...
नैनीताल से संजय रावत की रिपोर्ट
जनज्वार ब्यूरो। किसी भी दौर में स्कूली शिक्षा पाना कभी आसान नहीं रहा है। मौजूदा दौर में भी शिक्षा और चिकित्सा बजट उन सभी नागरिकों के माथे पर अब भी बल ला देता है जिन्हें दो जून की रोटी मय्यसर तो हो ही जाती है। स्कूल फीस का किसी तरह इंतजाम हो भी जाए तो किताब प्रकाशन घराने आम आदमी की कमर तोड़ देते हैं।
पहले हर गांव और कस्बों में रवायत थी कि हम पास हुए विधर्थियों की पुरानी किताबों से पढ़ लिया करते थे या कक्षा बदल जाने पर अपनी किताबें दूसरे जरूरतमंद बच्चों को दे दिया करते थे लेकिन अब स्कूलों में हर वर्ष स्लेबस बदल दिए जाने से ये रवायत भी खुद ब खुद खत्म हो गयी।
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उत्तराखंड के नैनीताल जनपद के हल्द्वानी में इस रवायत को व्यवसायिक रूप दिया है 'विद्यार्थी बंधू' नामक उस संस्थान ने, जहां करीब 25 सालों से जरूरतमंद विद्यार्थियों के लिए पुरानी किताबें खरीदी और बेची जाती हैं जिससे जरूरतमंद विद्यार्थी लाभान्वित होते रहे हैं।
'विद्यार्थी बंधू' नामक संस्थान को चलाने वाले सलिल सक्सेना बताते हैं कि यह कारोबार उनके पिता स्वर्गीय शिव चंद्र सक्सेना ने वर्ष 1994-95 में शुरू किया था। जहां 9वीं कक्षा से लेकर प्रतियोगिता परीक्षा तक की पुस्तकें बहुत कम कीमत पर मिल जाती हैं।
इस सुलभ खरीद फरोख्त के बारे में सलिल बताते हैं कि हम पुरानी किताबें 40 प्रतिशत मूल्य पर खरीदते हैं और 60 प्रतिशत मूल्य पर बेचते हैं। फिर वही विद्यार्थी वही किताबें हमें 40 प्रतिशत मूल्य में बेच जाते हैं, इस तरह विद्यार्थी 20 प्रतिशत मूल्य में ही अपनी पढ़ाई आसानी से कर पाते हैं।
सलिल बताते हैं कि पिताजी का मकसद था कि पहाड़ के गरीब बच्चे आसानी पढ़ सकें, इसलिए ये काम उन्होंने घर से ही मेरी और मेरी बहिन की किताबों से शुरू किया। महंगी किताबों पर बात करते हुए सलिल ने बताया कि आज सी.बी.एस. ई. की 9वीं कक्षा की रिफ्रेश बुक ही 1600 रुपए की आती है जो सबके लिए खरीद पाना आसान नहीं होता, उसे हम विद्यार्थियों को 400 रुपए में उपलब्ध करा देते हैं।
इसके अलावा यहां कॉलेज की किताबें हम 50 प्रतिशत में खरीदते हैं और 65 प्रतिशत में देते हैं इस प्रकार उनकी पढ़ाई मात्र 15 प्रतिशत मूल्य में हो जाती है, चूंकि वही किताबें वो हमें फिर से 50 प्रतिशत मूल्य में दे जाते हैं। सलिल बताते हैं कि जनपद नैनीताल के अलावा आस पास के जिलों से भी विद्यार्थी यहां आते हैं, जिला उधमसिंह नगर के विद्यार्थी तो साइकिलों पर ही आ जाते हैं।
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बेहतर होता कि हर स्कूल में ऐसी व्यवस्था होती जिससे जरूरतमंद विद्यार्थियों की पढ़ाई आसान हो जाती और विद्यार्थियों में सामाजिक सरोकारों की भावना व्यवहारिक रूप से पैदा की जा सकती । पर अफसोस कि ऐसा नहीं किया जा सका। इस पर सलिल कहते हैं कि स्कूल अपने प्रकाशकों से बड़ा मुनाफा नहीं छोड़ सकते हैं और दूसरा किताबें जिस हाल में हम तक पहुंचती हैं उनकी दुबारा से बाइंडिंग करनी होती है, इस काम में स्कूल अपनी ऊर्जा नष्ट नहीं करना चाहेंगे।