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उत्तराखंड

Exclusive : मुस्लिम महिला को लेकर कोरोना पॉजिटिव होने की फैली अफवाह, ने​गेटिव रिपोर्ट के बावजूद सहनी पड़ रही जलालत

Nirmal kant
18 May 2020 10:20 AM GMT
Exclusive : मुस्लिम महिला को लेकर कोरोना पॉजिटिव होने की फैली अफवाह, ने​गेटिव रिपोर्ट के बावजूद सहनी पड़ रही जलालत
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पीड़ित महिला रेशमा परवीन किसी तरह अचार बेचकर अपना घर चला रही थीं। जनज्वार से बातचीत में रेशमा ने कहा कि 'कोरोना की झूठी अफवाह ने मेरा रोजगार भी छीन लिया है। अब कोई अचार भी नहीं खरीदता। ऐसे में बार-बार मन में ख्याल आता है कि आत्महत्या ही कर लूं...'

अल्मोड़ा से विमला की​ रिपोर्ट

जनज्वार ब्यूरो। उत्तराखंड के अल्मोड़ा में एक गरीब मजदूर महिला को सिर्फ इस आधार पर कोरोना पॉजिटिव करार दे दिया गया था, क्योंकि उसके शरीर का तापमान 98 डिग्री था। महिला धूप में पैदल चलकर अस्पताल पहुंचीं थीं। इस वजह से उसके शरीर का तापमान बढ़ा हुआ था लेकिन तापमान चेक करने वाली महिला स्वास्थ्यकर्मी ने ऐसा हल्ला मचा दिया कि अब मजदूर महिला को जीना ही मुश्किल हो गया है।

कोरोना की झूठी अफवाह फैलाकर अब महिला का उत्पीड़न किया जा रहा है। उसकी सारी मेडिकल रिपोर्ट नेगेटिव आयी हैं। महिला को केवल इस आधार पर कोरोना पॉजिटिव बताया जा रहा था कि तेज धूप में चलने की वजह से उसके शरीर तापमान बढ़ गया था जबकि वह सामान्य है। डॉक्टर भी इस बात को मानते हैं कि धूप में चलने से किसी भी सामान्य व्यक्ति के शरीर का तापमान घट या बढ़ सकता है।

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पीड़ित महिला का नाम रेशमा परवीन है जो दिव्यांग है। वह किसी तरह अचार बेचकर अपना घर चला रही थीं। जनज्वार से बातचीत में रेशमा कहती हैं, 'कोरोना की झूठी अफवाह ने मेरा रोजगार भी छीन लिया है। एक तो लाकडाऊन के कारण वैसे ही मेरा काम बंद था। अब इस झूठी अफवाह ने मुझे अंदर तक तोड़ दिया है। अब कोई अचार भी नहीं खरीदता। ऐसे में बार-बार मन में ख्याल आता है कि आत्महत्या ही कर लूं।'

रेशमा को आज भी 14 मई की वह घटना याद है जिसने उसे अपने ही कस्बे में इतना लाचार कर दिया कि हर कोई उसकी परछायी से भी डरने लगा है। उसने बताया कि 14 मई को नगरपालिका से फोन आया कि 15 मई को एक मीटिंग हैं, आपको आना है, इन्द्रा अम्मा योजना के तहत समूह द्वारा जो माल उत्पादन किया जाता था उसकी पैकेजिंग करके आपको सेल्समैन का काम दिया जाएगा।

य वक्त पर जब रेशमा सुबह 11 बजे वहां पहुंची, गेट पर थर्मल स्क्रीनिंग की गई जिसमें मेरा तापमान 37 मिला। जांच करने वाली महिला ने कहा, 'तुम्हें बुखार है, मैंने कहा नहीं। बस फिर क्या था, उसने हल्ला मचा दिया। इसका तापमान ज्यादा है, यह कोरोना की मरीज है। फिर बोलने लगी हास्पिटल जाओ चैकअप कराओ। तभी नगरपालिका के एक कर्मचारी ने कहा नहीं कि मैं इसे जानता हूं, यह रोज आती है मेरे घर।

रेशमा आगे बताती हैं, 'मैं अपनी नैतिक जिम्मेदारी समझकर अस्पताल गईं, अस्पताल में डाक्टर नहीं था तो वहीं बैठ गई। उसी समय नगरपालिका से फोन आया अस्पताल मे रेशमा नाम की एक कोरोना की मरीज आयी है। यह सुनकर अस्पताल में हंगामा मच गया। सभी मुझसे दूर जाने लगे। अस्पताल में डॉक्टर न होने से मेरा वहां चेकअप नहीं हुआ। मैंने प्राइवेट में अपना टेस्ट करवाया जो सामान्य था।'

सके बाद रेशमा अपने घर आ गईं। इसी बीच अगले दिन उसे क्वारंटीन कर दिया गया। उसकी टेस्ट की हुई रिपोर्ट नेगेटिव निकली। लेकिन अब उसे कस्बे में हर कोई कोरोना का मरीज बोलकर उससे दूर भाग रहा है। इससे वह बहुत ही परेशान है। कोई उसके साथ बातचीत नहीं करता। इससे तंग आकर उसने एक ज्ञापन अल्मोड़ा के जिला अधिकारी सौंपा ताकि झूठी अफवाह फैलाने वालों पर उचित कार्यवाही की जा सके। रेशमा कहती हैं, 'मेरा प्रशासन से एक सवाल है कि अगर मुझमे कोरोना के लक्षण दिख रहे थे तो क्या सरकार की जिम्मेदारी नहीं थी कि वह मुझे उचित इलाज मुहैया कराये?लेकिन मुझसे सब दूर होने लगे।

ना गाड़ी की सुविधा, ना कोई इलाज, मैं खुद ही लगभग तीन किलोमीटर तेज धूप में पैदल चलकर अस्पताल गई। नगरपालिका से बार-बार फोन आता है कि कहां पहुंच गईं और इसी दौरान कुछ लोग मेरे पिता की दुकान पर जाकर उनको धमकाने लगे, तुम्हारे घर में कोरोना का मरीज है। तुम लोग बीमार हो उनसे दुकान बन्द करने को बोलने लगे।

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'मेरे पिता को धमकी देने लगे कि दुकान का लाइसेंस जब्त कर देंगे दुकान को बन्द करवा देंगे। जबकि मैं अपने माता-पिता से अलग किराए के मकान में रहती हूं। इस के चलते लोगों ने मुझे छुआछूत की नजर से देखना शुरू कर दिया जिसकी वजह से मैं बहुत ज्यादा मानसिक तनाव में हूं।'

ह कहती हैं, 'मैं गरीब मजदूर महिला जरूर हूं लेकिन मैं अपने जैसे उन तमाम लोगों की सहायता के लिए हमेशा तत्पर रहती थी। कुछ लोगों का कहना है कि मैं बहुत घूमती रहती हूं, मुझे घर मे बैठे रहना चाहिए। मैं घर में कैसे बैठ सकती हूं मैं अकेले रहती हूं, मुझे अपनी जरूरतों का सामान लेने जाना पड़ता है। मेरे पास इतना पैसा तो नहीं है जो मैं महीनेभर का सामन घर मे रख लूं, मैं जब रोज मेहनत मजदूरी करती हूं तभी शाम को घर में सामान आता है।

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