इस स्त्री समय में उनकी वे कविताएँ विलक्षण हैं, जो उन्होंने औरतों पर लिखी हैं...
हिंदी के सुप्रसिद्ध रचनाकार चंद्रकांत देवताले का कल 14 अगस्त की रात निधन हो गया। वे पिछले कुछ समय से बीमार चल रहे थे और उनका इलाज चल रहा था। वे 81 साल के थे। उनका अंतिम संस्कार आज दिन में दिल्ली के लोधी रोड स्थित श्मशान घाट पर किया जाएगा।
चंद्रकांत देवताले को उनके कविता-संग्रह ‘पत्थर फेंक रहा हूं’ के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से नवाजा गया था।इसके अलावा भी देवताले को उनकी रचनाओं के लिए कई पुरस्कारों से पुरस्कृत किया गया था। माखन लाल चतुर्वेदी पुरस्कार, मध्य प्रदेश शासन का शिखर सम्मान आदि प्रमुख उनके प्रमुख सम्मानों में शामिल हैं।
देवताले की कविताओं का विषय ज्यादातर गांव—कस्बे और वहां रहने वाले लोगों का जीवन है। निम्न मध्यवर्ग को विषय बनाकर भी उन्होंने कई रचनाएं लिखी हैं। देवताले साठोत्तरी हिंदी कविता के प्रमुख हस्ताक्षर माने जाते हैं।
साहित्यकार ज्योतिष जोशी उनकी मौत की खबर साझा करते हुए अपनी वॉल पर लिखते हैं कि 'श्री देवताले हिंदी के उन विरले कवियों में गिने जाते थे, जिनका काव्य मुहावरा सबसे तीक्ष्ण प्रभाव पैदा करने वाला था। अपनी कविताओं में व्यंग्य, विनोद और प्रहार की समन्वित शैली के कारण उन्होंने अखिल भारतीय प्रतिष्ठा अर्जित की थी। जन सामान्य की ज़िंदगी के सच्चे प्रहरी बनकर उन्होंने कविता से एक बड़े समाज् विमर्श को जन्म दिया। हड्डियों में छिपा ज्वर, दीवारों पर खून से, लकड़बग्घा हंस रहा है, रोशनी के मैदान की तरफ, भूखंड तप रहा है, हर चीज आग में बताई गई थी और इतनी पत्थर रोशनी जैसे अमूल्य संग्रहों के जरिये उन्होंने हिंदी कविता को अपना अविस्मरणीय योगदान दिया है। उनका जाना हिंदी साहित्य समाज और भाषा की अपूरणीय क्षति है। मैं सदा ही उनके स्नेह का कायल रहा हूँ। उनसे जब भी मिलना हुआ उन्होंने अपार प्रेम दिया। हम उनकी स्मृति को अपनी अश्रुपूरित भावांजलि अर्पित करते हैं।'
वरिष्ठ पत्रकार अजित राय उन्हें याद करते हुए लिखते हैं, 'उनके अचानक चले जाने की खबर सचमुच हृदयविदारक है । पिछले 25 वर्षों में इतना आत्मीय संग- साथ दुर्लभ है। दिल्ली, भोपाल, जबलपुर, इंदौर और उज्जैन में हुई अनगिनत मुलाकातें अविस्मरणीय हैं। इस स्त्री समय में उनकी वे कविताएँ विलक्षण हैं, जो उन्होंने औरतों पर लिखी हैं।'