सरना आदिवासी-ईसाई आदिवासी के झगड़े में पेसा एक्ट 1996 को नहीं लागू करने की कौन कर रहा बड़ी साजिश !

झारखंड के सामाजिक कार्यकर्ता लक्ष्मीनारायण मुंडा की टिप्पणी
PESA act Jharkhand : झारखंड में सैकड़ों सरना समितियां, सैकड़ों आदिवासियों के संगठन और तथाकथित कई सरना धर्मगुरु हैं। अकेले राजधानी रांची में ही पांच केंद्रीय सरना समिति है, लेकिन झारखंड के पांचवीं अनुसूची क्षेत्र (शिड्यूल एरिया) के लिए पेसा कानून लागू करने को लेकर घमासान मचा हुआ है। हाईकोर्ट ने स्पष्ट कहा है पेसा कानून 1996 की अनुरुप झारखंड सरकार पांचवी अनुसूचित क्षेत्र (शिड्यूल एरिया) के लिए पेसा नियमावली बनाए और लागू करे। इसी आदेश के अनुसार राज्य सरकार की पंचायती राज विभाग इसकी नियमावली बनाने के लिए जुटी हुई है।
इसको लेकर सैकड़ों सुझाव, विचार आ रहे हैं। इस पर सकारात्मक और नियम संगत नियमावली बने इसकी कोशिश जारी है, लेकिन सबसे अहम बात यह है कि इस पूरे मामले में आदिवासी/सरना करनेवाले भजन मंडली चुप हैं। शायद इन लोगों को लगता है कि सरना धर्म-सरना धर्म रटने और इसको लेकर पाखंड करने में ही आदिवासी सरना धर्मावलंबी समुदाय का बचाया जा सकता है। अधिकांश तथाकथित सरना समिति/ संगठन और आदिवासी संगठन सरना-ईसाई / सरना-ईसाई का विवाद को ही अपना सबसे बड़ा काम समझते हैं। उन्हें यह एहसास ही नहीं कि पूरे आदिवासी समुदाय को मिटाने, दबाने, कुचले जाने की व्यवस्था (सत्ता/सरकार और राज्य मशीनरी) बन चुकी है, जो चुनौती बनकर आदिवासियों के सामने खड़ा है।
आज़ जब पांचवीं अनुसूची क्षेत्र (शिड्यूल एरिया) में पेसा कानून 1996 को लागू करने का दबाव सब तरह से झारखंड सरकार के ऊपर है। यदि पेसा एक्ट के तहत पेसा नियमावली पांचवीं अनुसूची क्षेत्र (शिड्यूल एरिया) में लागू हो जाता है तो बहुत हद तक आदिवासी समुदाय में आर्थिक, सामाजिक राजनीतिक और सांस्कृतिक पुनर्जागरण जागरण का दौर शुरू हो जाएगा। इससे समझने की कोशिश नहीं हो रही है। आज़ समुदाय के ऊपर चौतरफा संकट आ रहा है। यह संकट सत्ता/ सरकारों और राज्य मशीनरी के द्वारा हम आदिवासियों पर लाया गया है। इसका प्रमुख कारण संवैधानिक हक-अधिकारों को आदिवासियों के लिए लागू नहीं किया जाना रहा है। वहीं विकास की अंधी दौड़ और कॉर्पोरेट औद्योगिक पूंजीपति घरानों की अंधाधुंध लूट-दोहन का शिकार आदिवासी समुदाय को बर्बादी के कगार पर ला खड़ा कर दिया है।
आज़ आदिवासियों के सामने ये मुख्य संकट हैं —
1.पांचवीं अनुसूची क्षेत्र
(शिड्यूल एरिया) के कानून का उल्लघंन।
2.पेसा एक्ट 1996
3.यूसीसी कानून
4.परिसीमन
5.डेमोग्राफी
6.सीएनटी-एसपीटी एक्ट का उल्लघंन
7.वन अधिकार कानून-2023
8.आदिवासी आबादी का घटना
9.आदिवासियों के लिए बने विशेष कानूनों का ईमानदारी से लागू नही किया जाना
10. आदिवासियों का विस्थापन और पलायन
यहां बताना चाहेंगे कि इसके लिए हम आदिवासी समुदाय के लोग इसके जिम्मेदार नहीं है। बेशक इसके लिए हम आदिवासी समुदाय से आने वाले सांसद/विधायक/ राजनेतागण इसके जिम्मेदार हो सकते हैं। इसका कारण या तो हमारे सांसद/विधायक/ राजनेतागण अपने-अपने राजनीतिक पार्टियों की गुलाम और महज मोहरे हैं या फिर वोट बैंक के लिए इतने महत्वपूर्ण मामलों पर भी चुप रहते हैं।