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समाज

दूल्हे की होगी 'सेल्फी विद टॉयलेट' तभी कमलनाथ सरकार देगी कन्यादान के 51 हजार रुपये

Prema Negi
11 Oct 2019 6:04 AM GMT
दूल्हे की होगी सेल्फी विद टॉयलेट तभी कमलनाथ सरकार देगी कन्यादान के 51 हजार रुपये
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मध्य प्रदेश सरकार के अजीबोगरीब फरमान पर उठे कई सवाल, जब शौचालयों में पानी ही नहीं तो कैसे हो इनका उपयोग

भोपाल से रोहित शिवहरे की रिपोर्ट

पानी के बिना न तो स्वच्छता है और न ही गरिमा। यह बात मध्यप्रदेश सरकार के हालिया फरमान के बाद सही साबित होती है, जिसमें यह कहा गया है कि दूल्हे को मुख्यमंत्री कन्यादान योजना का लाभ लेने के लिए पहले शौचालय के आगे सेल्फी खींचकर पोस्ट करनी होगी। इस अजीबो-गरीब फरमान पर अब सवाल उठ रहे हैं कि सेल्फी से शौचालय की असलियत और उसका वास्तविक उपयोग कैसे सुनिश्चित होगा, अगर परिवार के पास पानी ही उपलब्ध न हो।

मुख्यमंत्री कन्यादान योजना के तहत नवविवाहित जोड़े को 51 हजार रुपए मिलते हैं। यह योजना 2011 में राज्य के पूर्व सीएम शिवराज सिंह चौहान ने शुरू की थी। इस पर सरकारी स्तर पर दहेज जैसी कुप्रथा को बढ़ावा देने का आरोप लगते रहे हैं। लेकिन अब मौजूदा कांग्रेस सरकार के सीएम कमलनाथ ने इसमें एक नई शर्त जोड़ दी है।

स्वच्छता को बढ़ावा देने के नाम पर जोड़ी गई इस शर्त के बारे में सामाजिक न्याय विभाग के अफसरों का कहना है कि चूंकि सरकार हर घर में जाकर शौचालय का उपयोग सुनिश्चित नहीं कर सकती, इसलिए यह शर्त जोड़ी गई है। हालांकि, इसमें भी कई पेंच हैं। दूल्हा शौचालय के सामने खड़े होकर सेल्फी खिंचवाएगा और उसे सरकारी महकमे को भेजेगा। लेकिन इससे यह सुनिश्चित नहीं होता कि शौचालय उसके ही घर का है। लेकिन सामाजिक न्याय विभाग इस शर्त पर अड़ा हुआ है।

नका कहना है कि सरकार यह तय करना चाहती है कि लड़की शादी करके जिस घर में जा रही है, वहां शौचालय है या नहीं यह तय करने के लिए सेल्फी जरूरी है, वरना सरकार प्रायोजित सामूहिक विवाह सम्मेलन में भाग लेने का मौका नहीं मिलेगा। जो लड़का शौचालय समेत फोटो नहीं भेजा वह विवाह के योग्य नहीं माना जायेगा।

जानकारी के मुताबिक मुख्यमंत्री कन्या विवाह व निकाह योजना के आवेदन फार्म में शर्त है कि दुल्हन के होने वाले पति के घर में शौचालय होना अनिवार्य है, इसके लिए शासकीय अधिकारियों व कर्मचारियों को वेरीफिकेशन करना होता है कि वे जाकर इस बात का पता लगाएं कि घर में शौचालय है या नहीं। मगर अब अधिकारियों व कर्मचारियों ने अपने काम से बचने के लिए एक अनोखी सी शर्त रख दी है, जिसमें कहा जा रहा है दूल्हा अपने घर के शौचालय में जाकर सेल्फी लेकर उन्हे भेजे, इसके बाद उन्हे शादी के योग्य माना जाएगा।

शादी लायक लड़कों का कहना है कि उन्हें शौचालय में जाकर सेल्फी लेने में शर्मिंदगी महसूस हो रही है। गौरतलब है कि सेल्फी विद टॉयलेट मामला सिर्फ ग्रामीण क्षेत्रों तक सीमित नहीं है, बल्कि राजधानी भोपाल में नगर निगम अधिकारियों ने शहरी दूल्हों को भी निर्देश दिया है कि जब वे सेल्फी विद टॉयलेट जमा करायेंगे तभी वे शादी योग्य माने जायेंगे और योजना का लाभ ले पायेंगे।

पिछले साल मध्य प्रदेश में 18 स्थानों पर सामूहिक सम्मेलन किए गए। इनमें 782 विवाह और 533 निकाह कराए गए। यानी कुल 1315 जोड़ों को लाभ दिया गया। सामाजिक न्याय विभाग के अधिकारियों के पास इस सवाल का कोई जवाब नहीं है कि अगर शौचालय बने भी हैं तो अकेले सेल्फी से यह कैसे सुनिश्चित होगा कि उनका उपयोग हो रहा है। खासकर अगर उस परिवार के पास पानी की उपलब्धता नहीं है। भोपाल में अभी तक 78 दूल्हों ने सेल्फी भेजी है।

जिला उमरिया ग्राम गांधीग्राम किशन भूमिया के घर में 2 साल पहले शौचालय बना था, पर पानी की व्यवस्था ना होने के कारण वह आज तक जस का तस पड़ा हुआ है। पूरा परिवार खुले में शौच करने को मजबूर है। इसी गांव के भोरा बताते हैं कि कुछ सालों पहले यहां की प्राथमिक साला में बना शौचालय अब इस्तेमाल नहीं है, क्योंकि यहां पानी की कोई व्यवस्था ही नहीं है। कांग्रेस ने अपने घोषणापत्र पर हर घर पानी पहुंचाने का वादा किया था और पानी के बिना शौचालयों का कोई उपयोग ही नहीं है। ऐसे में वर्तमान स्थितियों को देखते हुए तो यह सब सिर्फ एक मजाक सा लग रहा है।

पानी न जमीन के ऊपर, न नीचे

प्रदेश के 22 जिले में जलस्तर दो से 4 मीटर तक कम हो गया है। मध्यप्रदेश के 24 विकासखण्ड ऐसे हैं, जहां संग्रहीत होने वाले भूजल का 100 फीसदी से ज्यादा दोहन कर लिया गया। जबकि 23 विकासखण्डों में 65 से 100 फीसदी यानी अधिकतम औसत से ज्यादा पानी का उपयोग किया गया। केन्द्रीय भूजल बोर्ड की नवीनतम रिपोर्ट के अनुसार उनके द्वारा अध्ययन किये गये कुंओं में से 40.73 प्रतिशत कुंओं का जलस्तर दो मीटर उतर चुका है। कई जिलों में तो यह गिरावट चार मीटर से ज्यादा दर्ज की गई।

पानी को लेकर जंग

मध्य प्रदेश में पानी को लेकर जंग की स्थिति है। वर्ष 2005 में मध्यप्रदेश में पानी के लिये होने वाले टकराव के 227 मामले दर्ज हुए थे, 2006 के वर्ष में ऐसे 303 मामले हुये और वर्ष 2007 में अब तक 587 मामले दर्ज हो चुके हैं, जो कि मध्यप्रदेश में पानी की उपलब्धता की यह सच्ची तस्वीर बयान करता है। प्रदेश सरकार पानी की उपलब्धता को लेकर राईट टू वॉटर ऐक्ट के जरिए शहरों में 130 लीटर प्रति व्यक्ति और गांवों में 70 लीटर अधिकतम और 55 लीटर न्यूनतम प्रति व्यक्ति जल देने का निर्धारण किया है। इसके लिए राज्य सरकार स्टेट वॉटर मैनेजमेंट अथॉरिटी बनाने जा रही है जिसके अध्यक्ष मुख्यमंत्री होंगे, पर यह अभी तक सिर्फ कागजों पर ही सीमित है।

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