एक औसत मनुष्य प्रतिवर्ष भोजन के साथ और सांस के साथ प्रतिवर्ष लगभग सवा लाख प्लास्टिक के टुकड़े को अपने शरीर के अन्दर पहुंचा रहा है। यह अनुसंधान एनवायर्नमेंटल साइंस एंड टेक्नोलॉजी नामक जर्नल के हाल में प्रकाशित अंक में आया है...
महेंद्र पाण्डेय, वरिष्ठ लेखक
प्लास्टिक के कचरे से पूरी दुनिया भर गयी है। पहाड़ों की चोटियों से लेकर महासागर की गहराइयों तक प्लास्टिक पहुँच चुका है। प्लास्टिक का कचरा महासागर के जीवों से लेकर गायों के पेट तक पहुँच रहा है। इन सबकी खूब चर्चा भी की जाती है, मगर एक नया अनुसन्धान यह बताता है कि एक औसत मनुष्य प्रतिवर्ष भोजन के साथ और सांस के साथ प्रतिवर्ष लगभग सवा लाख प्लास्टिक के टुकड़े को अपने शरीर के अन्दर पहुंचा रहा है। यह अनुसंधान एनवायरनमेंटल साइंस एंड टेक्नोलॉजी नामक जर्नल के हाल में प्रकाशित अंक में आया है।
इस शोधपत्र के मुख्य लेखक यूनिवर्सिटी ऑफ़ विक्टोरिया के वैज्ञानिक डॉ किएरन कॉक्स हैं। इस दल ने खाद्य पदार्थों में मौजूद प्लास्टिक से सम्बंधित प्रकाशित अनेक शोधपत्रों के अध्ययन, वायु में मौजूद प्लास्टिक की सांद्रता और मनुष्य के प्रतिदिन के औसत खाद्य पदार्थ के आधार पर यह बताया कि उम्र और लिंग के आधार पर औसत मनुष्य प्रतिवर्ष 74000 से 121000 के बीच प्लास्टिक के टुकड़ों को ग्रहण करता है।
कुल मिलाकर हालत यह है कि प्रतिदिन एक सामान्य मनुष्य प्लास्टिक के 142 टुकड़े खाद्य पदार्थों के साथ और 170 टुकड़े सांस के साथ अपने शरीर के भीतर डालता है। इस शोधपत्र के अनुसार यदि कोई केवल बोतलबंद पानी ही पीता है, तब उसके शरीर में प्रतिवर्ष 90000 प्लास्टिक के अतिरिक्त टुकड़े जाते हैं।
सवाल यह है कि प्लास्टिक के ये टुकड़े आते कहाँ से हैं? प्लास्टिक अपशिस्ट, जो इधर-उधर बिखरा पड़ा होता है वह समय के साथ और धूप के कारण छोटे-छोटे टुकड़ों में बाँट जाता है, फिर और छोटे टुकड़े होते हैं और अंत में पाउडर जैसा हो जाता है। यह हल्का होता है, इसलिए हवा के साथ दूर तक फैलता है और अंत में खाद्य-चक्र का हिस्सा बन जाता है। यह हवा में मिलकर श्वांस के साथ फेफड़े तक भी पहुंच जाता है।
शोधपत्र में बताया गया है कि शरीर में जाने वाले प्लास्टिक के टुकड़े का स्वास्थ्य से सम्बंधित आकलन नहीं किया गया है। फिर भी मानव स्वास्थ्य पर दो बड़े खतरे तो अनेक अध्ययन बता चुके हैं। प्लास्टिक से खतरनाक रसायनों का रिसाव होता रहता है, जिससे शरीर को नुक्सान पहुँच सकता है। प्लास्टिक के टुकड़ों पर रोग फैलाने वाले जीवाणु और विषाणु भी पनपते हैं और ये इसके साथ-साथ लम्बी दूरी भी तय करते हैं।
कुछ समय पहले एक अध्ययन में अमेरिका के सागर तटों पर प्लास्टिक के टुकड़ों के अध्ययन में ऐसे जीवाणु मिले जो भारत के लोगों के आँतों में पनपते हैं, यानी ये जीवाणु प्लास्टिक के टुकड़ों के साथ बहकर अमेरिका तक सक्रिय अवस्था में पहुँच गए।
प्लास्टिक के छोटे टुकड़ों को माइक्रो-प्लास्टिक कहा जाता है, जबकि बहुत छोटे टुकड़े जो आँखों से नहीं दिखाते हैं, वे नैनो-प्लास्टिक हैं। यही नैनो-प्लास्टिक सारी समस्या की जड़ हैं और ये अब पूरी दुनिया की हवा और पानी तक पहुँच चुके हैं। यही हमारे खाद्य पदार्थों में, पानी में और हवा में फ़ैल गए हैं। अब इनसे मुक्त न तो हवा है। न ही पानी और ना ही खाने का कोई सामान।