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संस्कृति

जीने का आइडिया देती है 102 नॉटआउट

Janjwar Team
8 May 2018 11:43 AM GMT
जीने का आइडिया देती है 102 नॉटआउट
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जब 102 वर्ष तक जीने वाले उम्रदराज लोग मौजूद हैं और अपने पचहत्तर वर्षीय पुत्र को उसके स्वार्थी पुत्र के खतरनाक इरादों से परिचित करा रहे हैं तब बढ़ती आबादी के खिलाफ ‘एवेंजर्स’ का खलनायक थानोस खड़ा है...

जयप्रकाश चौकसे, ख्यात फिल्म समीक्षक

इस समय बॉक्स ऑफिस पर दो फिल्में धन कमा रही हैं और वे एक-दूसरे से जुदा किस्म की फिल्में हैं परंतु उनमें एक रिश्ता जोड़ा जा सकता है। पहली फिल्म हॉलीवुड की ‘एवेंजर्स’ है, जो इतिहास की सबसे अधिक धन कमाने वाली फिल्म होने जा रही है और दूसरी फिल्म अमिताभ बच्चन और ऋषि कपूर अभिनीत ‘102 नॉट आउट’ भी अपनी लागत पर अच्छा-खासा मुनाफा कमाकर सफल फिल्म सिद्ध हुई, परंतु सफलता के पैमाने में अंतर है।

‘एवेंजर्स’ सभी देशों में प्रदर्शित हुई है और ‘102 नॉट आउट’ का प्रदर्शन कम सिनेमाघरों में हुआ है। ‘एवेंजर्स’ के पात्र थानोस का यह विश्वास है कि धरती पर मनुष्यों की संख्या बहुत अधिक है और संसाधनों का अभाव है। उसका बेहूदा खयाल यह है कि धरती पर आधी आबादी को मार दिया जाए, ताकि बची हुई आबादी पेटभर भोजन करे। तमाम लोग कम पर गुजारा करें, इससे बेहतर है कि आधे लोग मार दिए जाएं।

इस सनकी पागल के खिलाफ दस नायक युद्ध करते हैं, जो विभिन्न फिल्मों में एकमात्र नायक थे। जब 102 वर्ष तक जीने वाले उम्रदराज लोग मौजूद हैं और अपने पचहत्तर वर्षीय पुत्र को उसके स्वार्थी पुत्र के खतरनाक इरादों से परिचित करा रहे हैं तब बढ़ती आबादी के खिलाफ ‘एवेंजर्स’ का खलनायक थानोस खड़ा है।

दरअसल, साहित्य और सिनेमा में रचनाओं की विविध व्याख्याएं ही उसे महान बनाती हैं। शेक्यपीयर के पात्र हेमलेट की दुविधा ‘टू बी ऑर नॉट टू बी’ पर भी बहुत-सी व्याख्याएं लिखी गईं हैं। शरत बाबू का ‘देवदास’ अनेक बार फिल्माया गया है। सुधीर मिश्रा ‘देव डी’ बना चुके हैं और उनकी ताज़ा फिल्म ‘दास देव’ में उन्होंने देवदास को राजनीतिक पृष्ठभूमि में रोपित किया है। सारांश यह है कि तरह-तरह की व्याख्याएं की जाती हैं और साहित्य तथा सिनेमा की संपत्ति में ऐसे प्रयासों से ही वृद्धि होती है।

‘टाइम्स’ के ‘मिरर’ में दुष्यंत नामक व्यक्ति ने एक कल्पना इस तरह से प्रस्तुत की है कि ‘एवेंजर्स’ के थानोस को चुनाव लड़ना चाहिए और विजयी होकर अपने मंसूबे पूरा करना चाहिए अर्थात आधी आबादी को खत्म करना चाहिए। समीक्षक दुष्यंत कहते हैं कि यह तय नहीं है कि इस धरती के परे किसी जगह बहुत बुद्धिमान लोग रहते होंगे, परंतु इस धरती पर जो दुष्टता मौजूद है वैसी शायद ही ब्रम्हांड में कहीं संभव है।

हमने धरती पर हिंसक जानवरों को पालतू बना दिया है, पहाड़ों को बौना सिद्ध कर दिया है, तो इंसानी कमीनेपन को भी कम कर सकते हैं। दुष्यंत यह भी कहते हैं कि दुष्टता हमारे बीच ही मौजूद है और हमें निरंतर ठगती रहती है, सत्ता हथिया लेती है। इस फिल्म में थानोस से लड़ने की एकजुटता खयाली ही रह जाती है। क्या थानोस जैसा व्यक्ति धरती पर सफल होगा या वह आंशिक रूप से सफल है और शासक भी है? इस तरह यह सतही तौर पर तर्कहीनता का उत्सव मात्र मनाने वाली फिल्म नहीं है परंतु समीक्षक दुष्यंत-सी निगाह चाहिए।

अमिताभ बच्चन और ऋषी कपूर अभिनीत ‘102 नॉट आउट में पात्र प्राय: कैफी आज़मी का लिखा गीत गुनगुनाते हैं। गुरुदत्त की कागज के फूल का गीत है, ‘वक़्त ने किया, क्या हसीं सितम/ तुम रहे ना तुम.. हम रहे ना हम/ बेक़रार दिल, इस तरह मिले जिस तरह कभी, हम जुदा ना थे/ तुम भी खो गए हम भी खो गए एक राह पर, चल के दो क़दम/ वक़्त ने किया, क्या हसीं सितम … फिल्म में उम्रदराज पात्र यह गीत गुनगुनाते हैं।

यथार्थ जीवन में हर उम्र का व्यक्ति इसी गीत की तरह सोचता है कि वक्त ने किया क्या हसीं सितम… थानोस की कल्पना भी इस तरह सामने आती है कि आधी आबादी सचमुच समाप्त-सी हो गई है। वे संख्या में शुमार हैं परंतु उन्हें समाप्त कर कहें कि ‘यह जीना भी कोई जीना है लल्लू।’ मरदुमशुमारी यानी जनगणना में मुर्दे भी शामिल हैं।

(ख्यात फिल्म समीक्षक जयप्रकाश चौकसे का यह लेख दैनिक भास्कर से साभार)

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