कोरोना : क्या सोनिया गांधी और रघुराम राजन की सलाह मानेंगे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ?
आरबीआई के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने कोरोनावायरस के असर से बचने के लिए सुझाव दिया हैं कि इस वक्त गरीबों पर खर्च करने और कम जरूरी व्यय को टालने पर ध्यान देना चाहिए ...
जेपी सिंह की रिपोर्ट
जनज्वार। कौटिल्य ने कहा है कि राजा का कर्तव्य अपना हित साधना और सत्तासुख भोगना नहीं है। लोकतंत्र में राजा की अवधारणा ही समाप्त हो गयी है और उनका स्थान जनप्रतिनिधियों ने ले लिया है जिन्हें आम जनता शासकीय व्यवस्था चलाने का दायित्व सौेपती है। कौटिल्य की बातें तो उनपर अधिक ही प्रासंगिक मानी जाएंगी क्योकि वे जनता के हित साधने के लिए जनप्रतिनिधि बनने की बात करते हैं।
दुर्भाग्य से अपने समाज में उन उद्येश्यों की पूर्ति विरले जनप्रतिनिधि ही करते हैं क्योंकि जनप्रतिनिधियों के मन में कहीं न खिन राजा छिपा बैठा है जो कुर्सी पर बैठते ही राजा सरीखा आचरण करने लगता है और जिस जनता का वह प्रतिनिधि है उसके प्रति अपने कर्तव्यों को भूल जाता है ।
इन श्लोकों के माध्यम से राजधर्म संबंधी नीतिवचन (कौटिलीय अर्थशास्त्र, प्रथम अधिकरण, अध्याय 18) में कौटिल्य ने कहा है -
प्रजासुखे सुखं राज्ञः प्रजानां तु हिते हितम् ।
नात्मप्रियं हितं राज्ञः प्रजानां तु प्रियं हितम् ॥
प्रजा के सुख में राजा का सुख निहित है, प्रजा के हित में ही उसे अपना हित दिखना चाहिए । जो स्वयं को प्रिय लगे उसमें राजा का हित नहीं है, उसका हित तो प्रजा को जो प्रिय लगे उसमें है।
तस्मान्नित्योत्थितो राजा कुर्यादर्थानुशासनम्् ।
अर्थस्य मूलमुत्थानमनर्थस्य विपर्ययः ॥
इसलिए राजा को चाहिए कि वह नित्यप्रति उद्यमशील होकर अर्थोपार्जन तथा शासकीय व्यवहार संपन्न करे । उद्यमशीलता ही अर्थ (संपन्नता) का मूल है एवं उसके विपरीत उद्यमहीनता अर्थहीनता का कारण है ।
अनुत्थाने ध्रुवो नाशः प्राप्तस्यानागतस्य च ।
प्राप्यते फलमुत्थानाल्लभते चार्थसम्पदम् ॥
उद्यमशीलता के अभाव में पहले से जो प्राप्त है एवं भविष्य में जो प्राप्त हो पाता उन दोनों का ही नाश निश्चित है। उद्यम करने से ही वांछित फल प्राप्त होता है और उसी से आर्थिक संपन्नता मिलती है।
लेकिन क्या कोरोना वायरस की महामारी में केंद्र और राज्य सरकारें अपने राजधर्म का और जनता के प्रति अने कर्तव्यों का समुचित अनुपालन कर रही हैं? क्या सरकार ने अपने विशाल अनाज भंडारों का मुंह आम जनता के लिए खोल दिया है?
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क्या कोरोना के इलाज और रोकथाम की समुचित व्यवस्था सरकार ने की है? क्या कोरोना के अलावा अन्य संघातिक बिमारियों के इलाज में मरीजो की अनदेखी नहीं हो रही है? क्या गरीब और दैनिक कमेरों और उनके परिवारों को आसानी से दो वक्त का भोजन मिल रहा है? क्या सरकार की फिजूलखर्ची पर रोक लगी है? क्या मुनाफाखोरों, कालाबाजारियों पर अंकुश लगा है? क्या लॉकडाउन करने से उद्यमशील होकर अर्थोपार्जन देश में हो रहा है? हकीकत यही है कि इन सभी सवालों के जवाब नकारात्मक हैं।
यह सरकार धर्मनिष्ट, मनुवादी और सांस्कृतिक परम्पराओं को मानने वाली बतायी जाती है तो मेरा मन हुआ कि कौटिल्य के राजधर्म का उल्लेख करके पूछूँ कि क्या इनका पालन किया जा रहा है? इस बीच बिना राजधर्म का नाम लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लिखी एक चिट्ठी कांग्रेस कार्यकारी अध्यक्ष सोनिया गांधी ने फ़िजूलखर्च रोकने और पैसे बचा कर उसे कोरोना रोकथाम व इलाज में लगाने की सलाह दी है।
सोनिया गाँधी ने 20 हज़ार करोड़ रुपए की दिल्ली केंद्रित इस योजना के बारे में कहा कि ‘मौजूदा समय में इस तरह की योजना को आत्म-मुग्ध होना ही कहा जा सकता है। यह ऐसा कोई ज़रूरी खर्च नहीं है, जिसे इस संकट के ख़त्म होने तक नहीं टाला जा सकता है।सोनिया गाँधी ने कहा कि मुझे विश्वास है कि संसद की मौजूदा बिल्डिंग से काम किया जा सकता है, इस पैसे से जाँच और अस्पताल की नई सुविधाएं बनाई जा सकती हैं और स्वास्थ्य कर्मियों को पर्सनल प्रोटेक्टिव इक्विपमेंट जैसे ज़रूरी उपकरण दिए जा सकते हैं।
उन्होंने अपनी चिट्ठी में यह भी कहा है कि अगले दो साल तक के लिए सरकार की ओर से दिए जाने वाले टेलीविज़न, प्रिंट और ऑनलाइन विज्ञापनों पर रोक लगा दी जाए। कोरोना वायरस से जुड़ी जानकारियों को अपवाद बनाया जा सकता है। केंद्र सरकार फ़िलहाल 1,250 करोड़ रुपए का खर्च विज्ञापनों पर करती है, इसके अलावा सरकारी कंपनियाँ भी लगभग इतनी ही रकम इस मद में खर्च करती है। यदि इन विज्ञापनों पर रोक लगा दी जाए तो बहुत पैसा बच जाएगा जिसे कोरोना से लड़ने में लगाया जा सकता है।’
सोनिया गाँधी ने प्रधानमंत्री को यह सलाह भी दी कि सरकार अपने खर्च में भी 30 प्रतिशत की कटौती करे। इससे बचने वाले सालाना 2.50 लाख करोड़ रुपए का बेहतर इस्तेमाल दिहाड़ी मज़दूरों, असगंठित क्षेत्र के लोगों की आर्थिक स्थिति सुधारने और लघु, सूक्ष्म व मझोले उद्यमों की मदद करने में किया जा सकता है। सोनिया गाँधी ने यह सलाह भी दी है कि प्रधानमंत्री समेत तमाम सरकारी कर्मचारियों की विदेश यात्रा पर रोक लगा दी जाए। इससे बचने वाले 393 करोड़ रुपए का इस्तेमाल कोरोना से लड़ाई में किया जा सकता है।
सोनिया ने यह भी कहा है कि पीएम केअर्स कोष के सारे पैसे प्रधानमंत्री राहत कोष में ट्रांसफर कर दिए जाएं ताकि पारदर्शिता और कार्यकुशलता बढ़ सके। उन्होंने यह भी कहा है कि एक ही काम के लिए दो अलग-अलग कोष चलाने का कोई मतलब नहीं है। इसके अलावा यह भी सच है कि पीएम राहत कोष में पहले से ही 3,800 करोड़ रुपए हैं। यह फंड तथा ‘पीएम-केयर्स' की राशि को मिलाकर उपयोग में लाकर, समाज में हाशिए पर रहने वाले लोगों को तत्काल खाद्य सुरक्षा प्रदान किया जाए।
इससे ऑडिट भी संभव हो सकेगा कि पैसा कहां गया। यह चिट्ठी ऐसे समय लिखी गई जब हाल ही में प्रधानमंत्री मोदी ने विपक्षी दलों के नेताओं से फोन पर बात करके कोरोना संकट के संबंध में सुझाव मांगे थे। उन्होंने कहा कि अब विधायिका एवं सरकार द्वारा लोगों के विश्वास व भरोसे पर खरा उतरने का समय आ गया है. देश के समक्ष उत्पन्न हुई कोविड-19 की चुनौतियों से निपटने में हमारा संपूर्ण सहयोग आपके साथ है।
इसी बीच भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने कोरोनावायरस के असर से बचने के लिए सुझाव दिया हैं कि इस वक्त गरीबों पर खर्च करने और कम जरूरी व्यय को टालने पर ध्यान देना चाहिए।रघुराम राजन ने कहा है कि कोरोना वायरस महामारी की वजह से देश आजादी के बाद सबसे आपातकालीन दौर में है।
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आरबीआई के पूर्व गवर्नर ने कहा है कि गरीबों पर खर्च करना सही है बावजूद इसके की सरकार के पास संसाधनों के मोर्चे पर कुछ दिक्कतें हैं। उन्होंने कहा, 'सीमित संसाधन हमारे लिए चिंता का विषय है। हालांकि, जरूरतमंद लोगों पर खर्च बढ़ाना इस समय जरूरी है। एक राष्ट्र के रूप में और कोरोना वायरस के खिलाफ जंग में योगदान करने के लिए लिहाज से यह सही है।'
'हम कोरोना वायरस के संकट में ऐसे समय फंसे हैं जब पहले से ही राजकोषीय घाटा ऊंचा है और खर्च बढ़ाने की जरूरत है।' उन्होंने कहा कि यदि उचित तरीके और प्राथमिकता के साथ काम किया जाए तो भारत के पास इतने स्रोत हैं कि वह महामारी से उबर सकता है।