Begin typing your search above and press return to search.
शिक्षा

कूड़ा बीनता बचपन, सरकार आंकड़ों में मशगूल

Janjwar Team
21 Sep 2017 3:20 PM GMT
कूड़ा बीनता बचपन, सरकार आंकड़ों में मशगूल
x

जहां सरकार ऐसी योजनाओं पर भारी-भरकम धनराशि खरचने का दावा करती है, वहीं आज भी गरीब व मजदूर तबके के मासूम बच्चे होटलों, ढाबों में मजदूरी करने के अलावा कूड़ा-करकट बीनते नजर आ रहे हैं...

हल्द्वानी से सलीम खान

शिक्षा मनुष्य को समाज में रहने के तौर-तरीकों से अवगत कराती है। यही एक ऐसा माध्यम है जिससे हम सामाजिक कुरीतियों व अंधविश्वास के खिलाफ समाज को खड़ा कर सकते हैं। पर आजादी के इतने वर्षों के बावजूद हम जहां से शुरू हुए थे उस स्थिति में कोई ज्यादा सुधार नहीं हो पाया है।

आज भी शिक्षा जन सुलभ नहीं बन सकी है, जबकि शिक्षा के नाम पर हर साल करोड़ों रुपए की योजनाएं बन रही हैं। उत्तराखण्ड में भी यही हाल है। यहां भी ये योजनाएं धरातल पर उतरते ही दम तोड़ती नजर आ रही हैं।

दिनोंदिन महंगी हो रही शिक्षा आम आदमी के बच्चों के लिए दूर की कौड़ी साबित हो रही है। खासकर गरीब मजदूर और मलिन बस्ती में रहने वाले परिवारों के बच्चों के लिए वर्तमान दौर में शिक्षा हासिल करना एक सपना बन गया है।

कहने को सरकार ने इन बच्चों को शिक्षा से जोड़ने के लिए विशेष योजनाएं भी बनायी हैं, पर वहां पर ईमानदारी व जिम्मेदारी के अभाव में योजना का ढोल पीटने तक सीमित है। दम तोड़ रही इन योजनाओं से प्रदेश के लोगों की मेहनत की गाढ़ी कमाई का कुछ अंश सरकार के खजाने के तौर पर बर्बाद हो रहा है। वहीं इन गरीब मजदूर व मलिन बस्तियों के बच्चों का भविष्य भी रोजी-रोटी की भूख तक सीमित होकर रह गया है।

ऐसे हालातों में गरीब बच्चे शिक्षा की ओर कैसे उन्मुख होंगे। इन बस्तियों के बच्चे आज भी शिक्षा से काफी हद तक वंचित हैं। ऐसी बस्तियों में मौजूदा हालात की यदि पड़ताल की जाए तो तस्वीर खुदबखुद कहानी बयां कर देती है। पर एक बात जो अच्छी है निरक्षर अभिभावकों का भी शिक्षा के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण। वहीं सरकार का रुख ठीक विपरीत है।

वर्ष 2001 में गरीब व मजदूर बच्चों को शिक्षा से जोड़ने के लिए उत्तराखण्ड ‘मुस्कान’ योजना शुरू की गयी थी, पर सरकारी लापरवाही के चलते 2009 में इस योजना ने दम तोड़ दिया। सरकार ने फिर से प्रयास करते हुए 2012 में दूसरे नाम स्पेशल ट्रेनिंग सेंटर व विशेष प्रशिक्षण केंद्र के नाम से योजना शुरू की, जो अभी कछुआ गति से चल रही है, कब दम तोड़ दे कहा नहीं जा सकता।

मुख्य शिक्षा अधिकारी केके गुप्ता कहते हैं कि गरीब व मजदूर तबके के लोगों के 6-14 वर्ष तक बच्चों तक शिक्षा की पहुंच बनाने को स्पेशल ट्रेनिंग सेंटर व विशेष प्रशिक्षण केंद्र के नाम से एक योजना की शुरुआत 2012 में की गयी है। इस योजना के तहत प्रदेश भर में 47 सेंटर चल रहे हैं, जिससे उत्तराखंड में 1700 बच्चे लाभान्वित हो रहे हैं।

उनके मुताबिक देहरादून व हरिद्वार के सेंटरों में सबसे अधिक बच्चे पढ़ रहे हैं। गरीब परिवारों के बच्चों को मलिन बस्तियों में जाकर दो शिक्षक पढ़ाते हैं, ताकि वे भी समाज की मुख्यधारा से जुड़ सकें। हल्द्वानी नगर में इस समय 88 बच्चे उक्त योजना का लाभ उठा रहे हैं, जिनमें से करीब दर्जन भर बच्चों का प्राइमरी पाठशाला में दाखिला कराया जा रहा है। इसी तरह इनकी पढ़ाई का कुछ वहन भी सरकार द्वारा किया जाता है।

इस योजना के प्रचार-प्रसार के लिए उत्तराखंड के कुमाऊं व गढ़वाल मंडल में दो वाहन हैं। पर यह वाहन कुमाऊं मंडल में अपनी सेवाएं ज्यादा नहीं दे सके। वर्तमान में दोनों वाहन गढ़वाल मंडल में हैं, जो जगह-जगह जाकर बच्चों को शिक्षा सुलभ करा रहे हैं।

जहां सरकार ऐसी योजनाओं पर भारी-भरकम धनराशि खरचने का दावा करती है, वहीं आज भी गरीब व मजदूर तबके के मासूम बच्चे होटलों, ढाबों में मजदूरी करने के अलावा कूड़ा-करकट बीनते नजर आ रहे हैं। इन बच्चों का भविष्य अंधकार में डूबता नजर आ रहा है। पर सरकार है कि अपने आंकड़ों के खेल में मशगूल है। इन हालात में बच्चों का भविष्य सुधर पाएगा मुश्किल जान पड़ता है।

Janjwar Team

Janjwar Team

    Next Story

    विविध