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संदीप कुमार की कविता
मैंने शिक्षा मांगी
उन्होंने मुझे जेल दी
मैंने रोजगार मांगा
उन्होंने मुझे जेल दी
मैंने संविधान की कसम याद दिलाई
और अधिकारों की बात की
उन्होंने मुझे देशद्रोही कहा
उनकी आवाज इतनी ऊंची थी
कि मुझे भरे चौक पर गोली मार दी गई
और अंधभक्तों ने तालियां बजाईं
ठीक उसी वक्त
कुछ मुट्ठियां हवा में लहरा उठीं
जिनका हवा में लहराना इतना मजबूत था कि
ऊंची आवाज लड़खड़ा उठी
और तालियों की गड़गड़ाहट शांत
जैसे कुछ हुआ ही न हो
उन्हें कौन बताए
हवा में लहराती मुट्ठियों का डर
पेट की भूख और बेरोजगारी की मार ने
खत्म कर दिया है।
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