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आंदोलन

मजदूरों की दिल्ली में ललकार —युद्ध नहीं अधिकार चाहिए, 8 घंटे का पूरा दाम चाहिए

Prema Negi
3 March 2019 5:05 PM GMT
मजदूरों की दिल्ली में ललकार —युद्ध नहीं अधिकार चाहिए, 8 घंटे का पूरा दाम चाहिए
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मज़दूर अधिकार संघर्ष रैली में हुई मज़दूर हक़ की आवाज़ बुलंद

मजदूरों के हर अधिकार को कुचलने के लिए सरकारें दमन तेज कर रही हैं। इससे भटकाने के लिए साम्प्रदायिक व जातिवादी हमले बढ़े हैं। अंध राष्ट्रवाद का जुनूनी माहौल भयावह रूप ले रहा है...

नई दिल्ली, जनज्वार। मज़दूर वर्ग पर बढ़ते हमलों के खिलाफ देश के विभिन्न हिस्सों से पहुँचे हजारों मजदूरों ने राजधानी दिल्ली के संसद मार्ग पर अपनी आवाज़ बुलंद की।

मजदूर अधिकार संघर्ष रैली के तहत दिल्ली के रामलीला मैदान में एकत्रित हुए मजदूरों का यह कारवां संसद भवन के लिए कूच किया। अपनी मांगों को बुलंद करते हुए संसद भवन के पास जोरदार सभा की। गौरतलब है कि 17 सूत्रीय मांगों को लेकर मजदूर अधिकार संघर्ष अभियान (मासा) के आह्वान पर आज देश के विभिन्न हिस्सों से मजदूर जुटे थे।

मोदी सरकार द्वारा श्रम कानूनों में किए जा रहे बदलाव के खिलाफ, 25000 रुपए मासिक न्यूनतम मजदूरी करने, असंगठित क्षेत्र के मजदूरों के हक हकूक, महिलाओं के अधिकार, फिक्सड टर्म, नीम ट्रेनी के नाम पर मजदूरों की नौकरियों की प्रकृति में हो रहे परिवर्तन, स्थाई रोजगार खत्म करने के खिलाफ, सम्मानजनक रोजगार और रोजगार नहीं मिलने तक ₹15000 बेरोजगारी भत्ता देने, समान काम का समान वेतन देने, मनरेगा मजदूरों और अलग-अलग सेक्टर के मजदूरों के हक के लिए, अन्यायपूर्ण सजा झेलते मारुति, प्रिकाल, गर्जियानो के मज़दूरों की रिहाई व दमन सहित 17 सूत्रीय मांग पत्र पर आवाज़ बुलंद हुई। इसके साथ ही धर्म, जाति व राष्ट्रीयता के नाम पर बढ़ते उन्माद पर भी जबरदस्त हमला बोला गया।

रैली में भाग लेने के लिए आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटका, तमिलनाडु, महाराष्ट्र, गुजरात, उड़ीसा, बंगाल, बिहार, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, राजस्थान, हरियाणा, केरल, असम, दिल्ली-एनसीआर आदि राज्यों सहित देश के विभिन्न संघर्षशील मजदूर संगठनों के नेतृत्व में मजदूरों का कारवां दिल्ली पहुंचा था।

सभा में वक्ताओं ने कहा कि मोदी सरकार आने के बाद मजदूर मेहनतकशों पर हमले और तेज हुए हैं। पूंजीपतियों के हित में श्रम कानून में परिवर्तन किया जा रहा है। नई उदारवादी आर्थिक नीतियों के चलते हर क्षेत्र में स्थाई नौकरी की जगह पर ठेका प्रथा अपरेंटिस, ट्रेनी का दबदबा बढ़ा है। मजदूरों को ट्रेड यूनियन का और सामूहिक मांग पत्र पर सम्मानजनक समझौता करने के अधिकार का हनन हो रहा है।

मजदूरों पर काम का बोझ बढ़ता जा रहा है। पूंजीपतियों द्वारा श्रम कानूनों का खुला उल्लंघन किया जा रहा है। गैरकानूनी तालाबन्दी, क्लोज़र, ले-ऑफ, छंटनी व मनरेगा में वार्षिक बजट कम कर मजदूरों को बेरोजगार किया जा रहा है। मजदूरों के हर अधिकार को कुचलने के लिए सरकारें दमन तेज कर रही हैं। इससे भटकाने के लिए साम्प्रदायिक व जातिवादी हमले बढ़े हैं। अंध राष्ट्रवाद का जुनूनी माहौल भयावह रूप ले रहा है। इनके खिलाफ एक जुझारू आंदोलन खड़ा करना आज मज़दूर वर्ग का प्रमुख कार्यभार बन गया है।

गौरतलब है कि केंद्र तथा विभिन्न राज्य सरकारों द्वारा लागू किए जा रहे नव उदारवादी नई आर्थिक नीतियों के साथ समझौताहीन जुझारू संघर्ष व देश में मजदूर आंदोलन का एक वैकल्पिक ताकत खड़ा करने की जरूरत के लिए मजदूर अधिकार संघर्ष अभियान (मासा) का गठन हुआ था, जिसमें देश के अलग-अलग राज्यों से 15 से ज्यादा घटक संगठन शामिल हैं।

ट्रेड यूनियन सेंटर ऑफ इंडिया (TUCI) से संजय सिंघवी, स्ट्रगलिंग वर्कर्स कोआर्डिनेशन कमेटी, वेस्ट बंगाल (SWCC) से कुशल देवनाथ, ग्रामीण मजदूर यूनियन, बिहार से अशोक कुमार, इंडियन सेंटर ऑफ ट्रेड यूनियन्स (ICTU) से नरेंद्र, इंडियन फेडरेशन ऑफ ट्रेड यूनियन्स ( IFTU) से एस बी रॉव, आईएफटीयू (सर्वहारा) से अजय कुमार, इंकलाबी केंद्र पंजाब से सुरिंदर, इंकलाबी मजदूर केंद्र (IMK) से श्यामबीर, जन संघर्ष मंच हरियाणा से फूल सिंह, मजदूर सहयोग केंद्र, गुड़गांव से राम निवास, मजदूर सहयोग केंद्र, उत्तराखंड से मुकुल, श्रमिक शक्ति, कर्नाटका से वरदा राजेन्द्र, सोशलिस्ट वर्कर्स सेंटर, तमिलनाडु से सतीश, ऑल इंडिया वर्कर्स काउंसिल(AIWC) से शिवजी राय के अलावा मारुति सुजुकी वर्कर्स यूनियन से अजमेर, डाइकिन एयरकंडीशनिंग से मनमोहन, चायबागान संग्राम समिति दार्जलिंग से आशा प्रधान, भगवती प्रोडक्ट्स माइक्रोमैक्स से सूरज ने अपनी बातें रखीं। संचालन अमिताभ, स्वदेश कुमारी, आर मन्सिया, अजित और एम श्रीनिवास ने किया।

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