सत्यवादी की समझ में बात आ गई। झट से झोला उतारा और मंत्री जी पर एक ‘इम्पैक्ट फीचर’ लिख मारा। सालभर के राशन के साथ-साथ बाइक का इंतजाम भी हो गया...
मनु मनस्वी
सत्यवादी जी न जाने कब से लगे थे अपनी गर्लफ्रेंड लक्ष्मी को पटाने में, लेकिन वो थी कि सोने के भाव की मानिंद पहुंच से दूर ही रहती। हर दिन को ‘वेलेंटाइन डे’ मानकर अपने पत्रकारों वाले पुराने दरिद्री झोले में फूल-पत्ती समेत न जाने क्या-क्या गिफ्ट भरकर उसके घर के चक्कर काटते रहते, यहां तक कि उसके मुच्छड़ बाप और खतरनाक ‘टॉमी’ तक की फिक्र न की, लेकिन उसने न पटना था और न ही पटी।
थक हारकर सत्यवादी ने घर बैठकर आत्मचिंतन किया। आईने के आगे घंटों खड़े रहकर ढूंढते कि आखिर कौन सी बुराई है कि लक्ष्मी धोरे नहीं आती। आईना धुंधला गया लेकिन बुराई समझ न आई।
पुराने पत्रकार दोस्त जो कुछ वर्षों के एक्सपीरियंस से ही मुटिया गया था, जबकि जन्म से कागज-पेन लटकाए सत्यवादी जी नून-तेल का इंतजाम भी बामुश्किल कर पाते थे, से पूछा तो उसने सारी बुराइयों की जड़ उधेड़कर सामने रख दीं।
बोला, भैय्या! लड़के के खीसे में नोट हों, तो सारी बुराइयां छिप जाती हैं। तुम ठहरे मसिजीवी और कोढ़ में खाज ये कि नाम और काम दोनों से सत्यवादी। ऐसे में कौन लेगा रिस्क? सत्ता पक्ष को खुश रखो, तारीफें करो अपनी जेब भरो और मजे करो।
सत्यवादी जी बिफर पड़े कि भैये जिन आदर्शों को जीवन भर ढोया, उन्हें कैसे तिलांजलि दे दूं? ग्लाबल हंगर इंडेक्स में भले ही हम नीचे हों, पर भ्रष्टाचार में अपन दिनों दिन टाॅपमटाॅप जा रहे है। कोई तो हो इन दुष्टों की खबर लेने वाला। हर कोई अपने कर्तव्यों से मुख मोड़ेगा तो देश सही पटरी पे कैसे आएगा?
दोस्त बोला, तो फिर लेते रहो खबर। कल कोई तुम्हारी खबरलेवा नहीं बचेगा तब कहना। भई। अपन भी तो ऐसा ही कर रहे हैं। क्या तकलीफ है। बैंगन की तरह जहां वजन देखा, वहीं ढुलक जाओ। और यदि सच्चाई छापनी ही है तो एक्सीडेंट, धरना प्रदर्शन आदि की खबरें भी तो हैं, पेलते रहो।
बाबाओं—वाबाओं का सत्संग तो हर रोज होता ही रहता है। उस पर भी फोकस करो। हर हाल में नेताओं और हाईक्लास पर्सनेलिटी की तारीफें छापो। तुम्हारी सच्चाई की सनक भी पूरी होती रहेगी और काम भी चलता रहेगा टनाटन। और हां, सबसे पहले इस दरिद्दरी झोले को उतार फेंको। पर्सनेलिटी डाउन करता है।
सत्यवादी की समझ में बात आ गई। झट से झोला उतारा और मंत्री जी पर एक ‘इम्पैक्ट फीचर’ लिख मारा। सालभर के राशन के साथ-साथ बाइक का इंतजाम भी हो गया। अब वे पर्सनेलिटी को सूट करता बैग लटकाए फिरते हैं।
लक्ष्मी उन्हें ‘स्माइल’ देने लगी है, एक बार ‘आई लव यू’ भी बोल चुकी है और ‘टॉमी’ भी उनके आने पर भौंकता नहीं। मुच्छड़ बाप भी क्लीन शेव हो गया है। अब झोले के साथ-साथ उन्होंने अपना नाम भी बदल लिया है-चंपू।