Begin typing your search above and press return to search.
जनज्वार विशेष

हिमालय पर घासों और झाड़ियों का बढ़ता दायरा और ग्लेशियरों का घटता क्षेत्रफल

Prema Negi
19 Jan 2020 2:44 PM IST
हिमालय पर घासों और झाड़ियों का बढ़ता दायरा और ग्लेशियरों का घटता क्षेत्रफल
x

हिमालय के ग्लेशियर का क्षेत्र कम होता जा रहा है, और अब वनस्पतियों का दायरा बढ़ता जा रहा है, और इन सबका प्रभाव गंगा और ब्रह्मपुत्र समेत अनेक नदियों के बहाव पर पड़ेगा....

महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी

पिछले कुछ वर्षों से जलवायु परिवर्तन और तापमान वृद्धि के प्रभावों के कारण हिमालय लगातार चर्चा में रहा है। पर यह चर्चा हिमालय के ग्लेशियर के पिघलने की बढ़ती दर से शुरू होकर इसी पर ख़त्म भी हो जाती है।

हाल में ही प्रकाशित एक नए अध्ययन के अनुसार, हिमालय के ग्लेशियर में परिवर्तन के साथ-साथ वहां के वनस्पति भी प्रभावित हो रहे हैं और अब पहले से अधिक ऊंचाई पर पनपने लगे हैं। इस अध्ययन को यूनिवर्सिटी ऑफ़ एक्सेटर के वैज्ञानिकों ने ग्लोबल चेंज बायोलॉजी नामक जर्नल के नवीनतम अंक में प्रकाशित किया है।

सके अनुसार माउंट एवेरेस्ट और हिमालय के ऊंचाई वाले दूसरे हिस्सों में पनपने वाले घासों और झाड़ियों की संख्या बढ़ गयी है। इस अध्ययन को नासा के लैंडसैट नामक उपग्रह द्वारा वर्ष 1993 से 2018 के बीच प्राप्त चित्रों के आधार पर किया गया है। इसमें उपग्रह द्वारा प्राप्त चित्रों द्वारा ट्रीलाइन (जिस ऊंचाई तक बड़े पेड़ पनपते हैं) और स्नोलाइन (जिस ऊचाई से ग्लेशियर या बर्फ का आवरण शुरू होता है) के बीच मिलने वाले घासों और झाड़ियों का अध्ययन किया गया है।

यूनिवर्सिटी ऑफ़ एक्सेटर स्थित एनवायर्नमेंटल एंड सस्टेनेबिलिटी इंस्टीट्यूट की वैज्ञानिक डॉ करेन एंडरसन के अनुसार इन चित्रों के अध्ययन से स्पष्ट होता है कि हिमालय पर पिछले कुछ वर्षों के दौरान 4150 मीटर से 6000 मीटर के बीच की ऊंचाई पर वनस्पति में प्रभावी परिवर्तन आया है। सबसे अधिक अंतर 5000 से 5500 मीटर की ऊंचाई पर देखा गया है।

पूरे हिमालय में ग्लेशियर का बारीकी से अध्ययन किया गया है, पर वनस्पतियों का नहीं। पिछले वर्ष एक अध्ययन में खुलासा किया गया था कि हिमालय के ग्लेशियर के सिकुड़ने की दर वर्ष 2000 से 2016 के बीच दुगुनी हो चुकी है। हिमालय के ग्लेशियर से एशिया की 10 सबसे बड़ी नदियाँ निकलती हैं और इनके पानी पर 1.4 अरब आबादी निर्भर है। हिन्दुकुश हिमालय को वाटर टावर भी कहा जाता है, और इसे दुनिया का तीसरा ध्रुव भी माना जाता है।

ट्रीलाइन और स्नोलाइन के बीच मिलने वाले घासों और झाड़ियों का क्षेत्र बहुत महत्वपूर्ण है और इसका क्षेत्र हिमालय के बर्फ से ढके क्षेत्र की तुलना में 5 से 15 गुणा तक अधिक है, पर अत्यधिक ऊंचाई और दुरूह रास्तों के कारण इनका विस्तृत अध्ययन नहीं किया गया है।

डॉ. करेन एंडरसन के अनुसार इस वर्त्तमान अध्ययन में वनस्पतियों के दायरा बढ़ने का अध्ययन तो किया गया है, पर इसके कारण पर चर्चा नहीं की गयी है। अधिकतर वैज्ञानिकों के अनुसार इसका कारण तापमान वृद्धि है, जिसके कारण अधिक ऊंचाई पर भी पौधे पनप रहे हैं।

र्ष 2009 में उत्तराखंड के स्टेट कौंसिल फॉर साइंस एंड टेक्नोलॉजी के वैज्ञानिकों ने उपग्रहों द्वारा प्राप्त आंकड़ों के आधार पर बताया था कि हिमालय के क्षेत्र में प्राकृतिक वन पहले से अधिक ऊंचाई पर पनप रहे हैं। वर्ष 1976 तक जहां प्राकृतिक वन अधिकतम 3840 मीटर तक पनपते थे, वहीं 2008 तक ये 4230 मीटर की ऊंचाई तक भी मिलने लगे हैं। समय के साथ वनों के अधिक ऊंचाई तक पनपने की दर भी तेज हो रही है। वर्ष 1990 से 1999 तक इस ऊंचाई में परिवर्तन केवल 10 मीटर था, पर इसके बाद के दशक में यह अंतर 350 मीटर तक पहुँच गया।

गस्त 2014 में प्रतिष्ठित वैज्ञानिक जर्नल, नेचर, में शिमला स्थित हिमालयन फारेस्ट रिसर्च इंस्टिट्यूट के वैज्ञानिकों द्वारा प्रकाशित एक शोधपत्र के अनुसार भी हिमालय के क्षेत्र में वनस्पतियों का दायरा बढ़ता जा रहा है, और ये पहले से अधिक ऊंचाई पर भी पनपने लगे हैं। हिमालयन ब्लू पाइन दो दशक पहले तक 3000 मीटर से अधिक ऊंचाई पर नहीं मिलता था, पर अब इसे 4000 मीटर की ऊंचाई पर भी आसानी से देखा जा सकता है। यही स्थिति पार्थेनियम नामक झाड़ी की है और पानी में पनपने वाले कुछ वनस्पतियों की भी। सेव और नाशपाती के बागों की भी यही स्थिति है, अब पहले से अधिक ऊंचाई के क्षेत्रों पर भी इनकी पैदावार की जा रही है।

स शोधपत्र में सबसे महत्वपूर्ण बात यह कही गयी थी कि हिमालय के वनस्पति पहले से अधिक ऊंचाई पर पनपने तो लगे हैं, पर इन पूरे वनस्पतियों का विस्तृत अध्ययन अब तक नहीं किया गया है। जब, इनका दायरा बढ़ रहा है तब संभव है कि कुछ वनस्पति विलुप्त भी होंगे, और यदि ऐसा हुआ तो हम इन वनस्पतियों के बारे में कभी नहीं जान पायेंगे।

हिमालय की वनस्पतियों की सम्पदा अतुलनीय है। सबसे अधिक ऊंचाई पर पनपने वाले वनस्पतियों और इसमें रहने वाले वाले जीवों की दुनिया में मिलाने वाली कुल प्रजातियों में से 10 प्रतिशत से अधिक हिमालय में मिलते हैं। इनमें भी आधे से अधिक प्रजातियाँ स्थानिक हैं, यानी हिमालय के अलावा दुनिया में कहीं भी प्राकृतिक अवस्था में नहीं मिलते। इसके बाद भी यूरोपियन ऐल्प्स या फिर एंडीज पर्वतमाला का जितने विस्तार से अध्ययन किया गया है, वैसा हिमालय में नहीं किया गया है।

डॉ करेन एंडरसन के अनुसार अधिक ऊंचाई पर वनस्पतियों के पनपने का प्रभाव जल संसाधनों पर क्या होगा, इसका विस्तृत अध्ययन करना आवश्यक है, क्योंकि हिमालय के ग्लेशियर से निकालने वाली नदियों के पानी पर 1.4 अरब लोग आश्रित हैं। इतना तो तय है कि हिमालय के ग्लेशियर का क्षेत्र कम होता जा रहा है, और अब वनस्पतियों का दायरा बढ़ता जा रहा है, और इन सबका प्रभाव गंगा और ब्रह्मपुत्र समेत अनेक नदियों के बहाव पर पड़ेगा।

Next Story

विविध