प्रधानमंत्री मोदी का स्वच्छ भारत अभियान और सर पर मैला उठाते लाखों लोग
एक सर्वेक्षण के अनुसार सर पर मैला उठाने वालों की की संख्या देश में 150000 से अधिक है, जबकि एक गैर सरकारी संगठन से जुड़े ओबलाश कहते हैं, वास्तविक संख्या इससे कहीं बहुत अधिक है, अकेले कर्नाटक में ही इनकी संख्या 20000 से भी है ज्यादा....
महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी
देश में स्वच्छ भारत अभियान शौचालय बनाने तक सीमित रहा, पर इससे सम्बंधित समस्याएं बढ़ती रहीं। शौचालयों की संख्या बढ़ाने के लिए लालायित सरकार ने इससे उत्पन्न समस्याओं की तरफ ध्यान ही नहीं दिया। सीवर में उतरकर सफाई करने वाले या फिर सर पर मैला उठाने वाले आज भी हैं और इनकी समस्याएं भी पहले जैसी ही हैं।
प्रधानमंत्री जी केवल शौचालयों की संख्या बताकर पुरस्कार लेते रहे और दूसरी तरफ पिछले वर्ष 112 सीवर कर्मियों की मृत्यु सीवर की सफाई के दौरान हुई। स्वच्छ भारत अभियान सफाई से जुड़े सबसे खतरनाक कार्य को ख़त्म नहीं कर पाया। सबसे बड़ी समस्या यह है कि ऐसे कर्मियों को सीवर में भेजने वाले ठेकेदारों या फिर अधिकारियों पर कोई भी ठोस कार्यवाही नहीं की जाती है, जबकि सर्वोच्च न्यायालय ने वर्ष 2013 में ही इस प्रकार के कार्य को गैर-कानूनी करार दिया था।
वाटरऐड इंडिया नामक संस्था के नीतिनिर्धारक वीआर रमण के अनुसार ग्रामीण क्षेत्रों की लगभग एक-चौथाई आबादी के पास अब तक शौचालय की सुविधा नहीं है, हालांकि सरकार सबके पास शौचालय के दावा लम्बे समय से करती आ रही है। ग्रामीण क्षेत्रों में यदि शौचालय हैं भी, तब भी सीवरेज की सुविधा नहीं है।
अधिकतर ग्रामीण शौचालय केवल एक होल्डिंग पिट से जुड़े हैं, जिसमें मल खाद में परिवर्तित नहीं होता। ऐसे पिट को कुछ समय बाद हाथ से ही खाली करना पड़ता है। मानव मल को सर पर उठाने की प्रथा को समाप्त करने वाले एक गैर-सरकारी संगठन के प्रमुख के ओबलाश कहते हैं कि यह काम जाति पर आधारित है, और सबसे निचली जाति के लोग यह काम करते हैं, इसलिए सरकारें इस समस्या पर कभी गंभीर नहीं होती।
सर पर मैला उठाने वाले देश में कितने लोग हैं, इस संख्या का भी अता-पता नहीं है। कुछ समय पहले एक सर्वेक्षण के अनुसार इसकी संख्या देश में 150000 से अधिक है, जबकि ओबलाश कहते हैं कि वास्तविक संख्या इससे बहुत अधिक है, अकेले कर्नाटक में ही इनकी संख्या 20000 से अधिक है।
सरकारी आंकड़ों के अनुसार देश के 13 राज्यों में कुल 12742 लोग सर पर मैला उठाने का काम करते हैं, दूसरी तरफ वर्ष 2011 की जाति-आधारित सोसिओ-इकनोमिक सेन्सस के अनुसार देश में इस काम को करने वाले परिवारों की संख्या 182505 है। वर्ष 2011 के सेन्सस के अनुसार देश में 740078 घरों में ड्राई लैट्रिन हैं, जिन्हें हाथ से साफ़ करने की जरूरत होती है।
3 जुलाई 2019 को संसद में जानकारी दी गयी कि पिछले 3 वर्षों के दौरान 88 सीवर मजदूरों की मौत हो गई। जुलाई 2019 में ही नेशनल कमीशन फॉर सफाई कर्मचारीज के अनुसार वर्ष 2019 में जुलाई तक देश में 50 सीवर कर्मी की मौत हो चुकी थी। यह कमीशन देश के केवल 8 राज्यों उत्तर प्रदेश, हरयाणा, दिल्ली, पंजाब, गुजरात, महाराष्ट्र, कर्णाटक और तमिलनाडु से ही जानकारी एकत्रित करता है। इसके अनुसार देश में 1993 से अब तक 817 सीवर कर्मियों की मौत काम के दौरान हो चुकी है। कमीशन के अनुसार अकेले दिल्ली में पिछले 2 वर्षों के दौरान 38 सीवर कर्मियों की मौत हो गयी।
दिल्ली सरकार ने इस समस्या को मिटाने के लिए कुछ काम किया है। यहाँ पर 200 से अधिक स्वचालित मशीने खरीदी गयीं हैं जो सीवर की सफाई का काम करती हैं। पर पुराने सीवर तंत्र और तंग गलियों में इन मशीनों के नहीं पंहुच पाने के कारण हरेक जगह इनका उपयोग नहीं किया जा सकता है।
सैनिटेशन वर्कर्स मूवमेंट के बी विल्सन के अनुसार स्वच्छ भारत अभियान एक पागलपन से अधिक कुछ नहीं है क्योंकि शौचालयों का निर्माण बिना किसी इंफ्रास्ट्रक्चर को विकसित किये ही किया जा रहा है।