लॉकडाउन में गरीब भूख से मर रहा है, BJP अध्यक्ष कह रहे हैं कि दुनिया भारत की तारीफ कर रही है
अगर जान की कीमत न हो, तो लोग चाहे जैसे मर जाएं, क्या फर्क पड़ता है! कोरोना से मरें या भूख से या पैदल चलकर. कोरोना से अब तक 69 मौतें हुई हैं तो शहरों से पैदल गांव भाग रहे 37 लोगों की मौत हो चुकी है...
जनज्वार। अगर जान की कीमत न हो, तो लोग चाहे जैसे मर जाएं, क्या फर्क पड़ता है! कोरोना से मरें या भूख से या पैदल चलकर. कोरोना से अब तक 69 मौतें हुई हैं तो शहरों से पैदल गांव भाग रहे 37 लोगों की मौत हो चुकी है.
अगर सड़क बनाना राष्ट्र निर्माण का काम है तो बिहार के बिलास महतो इसी राष्ट्र निर्माण में जुटे थे. वे यूपी के प्रयागराज की एक सड़क निर्माण कंपनी में मजदूरी करते थे. वे प्रयागराज से चले थे और पैदल ही बिहार के वैशाली जा रहे थे. यूनिवार्ता की खबर के अनुसार, पुलिस ने बताया है कि लॉकडाउन के चलते बंदी हुई तो कंपनी ने बिलास महतो को काम से हटा दिया. बिलास तीन दिन में पैदल चलकर बिहार के रोहतास पहुंच गए थे. वहां उनके पेट में तेज दर्द हुआ और कुछ देर में उनकी मौत हो गई. परिजनों से पता चला है कि बिलास महतो को अपेंडिक्स था.
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इसी तरह एक युवक महाराष्ट्र से चला था. वह मात्र 23 साल का था. अपने मजदूर साथियों के साथ महाराष्ट्र से तमिलनाडु के लिए निकला था. वे लोग लगभग 500 किलोमीटर पैदल चल चुके थे. अभी हैदराबाद पहुंचे थे कि वह युवक गश खाकर गिर गया और उसकी मौत हो गई. एनडीटीवी का कहना है कि उसके साथ मौजूद लोगों ने बताया है कि उन्हें न डॉक्टरी सहायता मिली, न सिर छिपाने का ठिकाना, और उन्हें हर जगह से लौटा दिया गया. उन्हें कोई वाहन भी उपलब्ध नहीं हुआ, और जब उन्होंने ट्रकों या ऑटोरिक्शाओं या ट्रालियों से लिफ्ट लेनी चाही तो पुलिस ने उन्हें पीटा और वाहनों से उतरने के लिए मजबूर किया.
दमोह के सुखलाल दिल्ली में मजदूरी करते थे. लॉकडाउन के बाद वे अपनी पत्नी के साथ पैदल ही मध्य प्रदेश जा रहे थे. ग्वालियर हाईवे पर तेज रफ्तार कार ने उन्हें टक्कर मार दी. वे करीब 5 फुट दूर जाकर सिर के बल गिरे. कार चली गई. पत्नी कुसुमा पति का सिर गोद में रखे लोगों से मदद मांगती रही, जब तक कोई मदद के लिए आता, सुखलाल दुनिया से जा चुके थे. दैनिक भास्कर ने खबर प्रकाशित की है. शहरी मजदूरों में भगदड़ को आज कई दिन हो गए हैं, वह मामला करीब शांत हो गया है, लेकिन मौतें अब भी जारी हैं.
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31 मार्च को मैंने मीडिया में छपी फुटकर सूचनाओं के आधार पर सड़कों पर पैदल चलने के मारण हुई 34 मौतों की बात लिखी थी. मेरी निगाह में जितनी खबरें आई हैं, उनके आधार पर अब यह संख्या 37 हो चुकी है. कोई पैदल चलते चलते मर गया, कोई सड़क दुर्घटना में मर गया. दुखद है कि यह संख्या बढ़ रही है. और तमाम घटनाएं होंगी जिनकी सूचना मुझे नहीं होगी.
सोनिया गांधी ने कहा कि लॉकडाउन अनियोजित तरीके से हुआ इसलिए गरीबों को तकलीफ हुई तो अमित शाह और जेपी नड्डा ने कहा है कि दुनिया भारत की तारीफ कर रही है लेकिन कांग्रेस राजनीति कर रही है. कौन सी दुनिया है जिसने पैदल चलाकर 37 मजदूरों को मार डालने की तारीफ की है. मैं उस अनूठी दुनिया के बारे में जानना चाहता हूं.