प्रधानमंत्री महिला सशक्तीकरण की बात करते हैं और उनके नेता लड़कियों को उठाने की
नोटबंदी के बाद तो यह साबित हो गया कि देश के जनता की सहनशक्ति अकल्पनीय है और अभूतपूर्व भी। विपक्ष का कोई अस्तित्व नहीं है और न्यायपालिका समेत सभी लोकतांत्रिक संस्थाएं केवल सरकारी इशारे पर काम करेंगी...
पढ़िए महेंद्र पाण्डेय का विश्लेषण
कुछ साल पहले जब स्मार्टफोन और मोबाइल नहीं था तब गणेश जी को दूध पिलाकर हिन्दुवादी संगठनों ने समाज में अपनी पैठ और साथ में शक्ति का आकलन किया था। परीक्षण सफल रहा, इसके बाद गोधरा किया गया। यह परीक्षण भी सफल रहा। इससे इन तथाकथित राष्ट्रवादी उन्मादी शक्तियों को यह भी पता चल गया की दोषियों को आराम से बचाया जा सकता है, जो आपकी बात नहीं माने उसे जिन्दगी भर के लिए जेल में ठूंसा जा सकता है या फिर जरूरत पड़े तो मारा भी जा सकता है।
गोधरा से यह भी स्पष्ट हो गया की विपक्ष को किसी भी मौके पर चुप कराया जा सकता है। दरअसल अब देश का कोई अस्तित्व रह नहीं गया है, बस भारत एक प्रयोगशाला रह गया है। एक ऐसी प्रयोगशाला जहां सनकी प्रयोग किये जा रहे हैं।
बहुत लोग मानते हैं धर्म का असर अफीम जैसा होता है, पर अब इसे मानने की जरूरत नहीं है, क्योंकि दुनिया के सबसे बड़े तथाकथित लोकतंत्र में इसका नशा तो सर चढ़कर बोल रहा है। यही धर्म तो सत्ता की शक्ति बन बैठा है। हालत यहाँ तक पहुँच गयी है की पाकिस्तान भेजने की चर्चा इतनी मधुर लगाने लगी है कि बेरोजगार को रोजगार की जरूरत नहीं रह गयी है, किसानों की समस्या समाप्त हो गयी है और लोग अपने आप को पहले से अधिक आजाद मान बैठे हैं। इस समय हार उसी की हो रही है, जो तथ्यात्मक बात कर रहा है।
दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में एक सफलतम प्रयोग दादरी में अख़लाक़ को मारकर भी किया गया था। उस समय प्रदेश में ऐसे दल की सरकार थी, जो अपने आपको इन राष्ट्रवादी शक्तियों का विरोधी कहता था। पर तत्कालीन उत्तर प्रदेश की सरकार ने जिस तरीके से पूरे मामले पर आँखें बंद कीं उससे उन्मादी शक्तियों में नया जोश भर गया। यह जोश आज भी बरकरार है, आज अनेक अखलाक देश के कोने-कोने में मारे जा रहे हैं और सब शांत हैं।
नोटबंदी के बाद तो यह साबित हो गया कि देश के जनता की सहनशक्ति अकल्पनीय है और अभूतपूर्व भी। विपक्ष का कोई अस्तित्व नहीं है और न्यायपालिका समेत सभी लोकतांत्रिक संस्थाएं केवल सरकारी इशारे पर काम करेंगी। सत्ता को यदि इतना पता चल जाए तब फिर रास्ता साफ़ हो जाता है।
अनुच्छेद 370 को हटाना तो इसी की अगली कड़ी है। देश की सत्ता और जनता कश्मीर की स्वायत्तता के बारे में तो सोचेगी ही नहीं, उसे तो कश्मीरी लड़कियों के ख़्वाब आ रहे हैं, कश्मीर में प्रॉपर्टी समझ में आ रही है, कश्मीर में उद्योग नजर आ रहे है। कश्मीर के लोग तो अपने घरों में कैद हैं, अनगिनत सुरक्षाबल तैनात हैं, देश की जनता खुश है क्यों की प्रभावित लोग वही हैं जिनके पाकिस्तान भेजे जाने की बात दुहराई जाती है।
प्रधानमंत्री जी महिलाओं और लड़कियों के सशक्तीकरण की बात करते हैं और इसी दल के दूसरे नेता उसी समय लड़कियों को उठाने की बात करते हैं, बलात्कार की बात करते हैं, बलात्कार भी करते हैं और फिर पीडिता की जान लेने की भी कोशिश करते हैं। प्रधानमंत्री जी इनमें से अनेक को ट्विटर पर फॉलो करते हैं, पर कोई वक्तव्य नहीं देते। यह भी एक तरह का प्रयोग ही है, जो लगातार सफल होता जा रहा है। मेनस्ट्रीम मीडिया में आपको यह खबर कहीं देखने को मिली की अनुराग कश्यप की बेटी को रेप की धमकी देने वाले को प्रधानमंत्री ट्विटर पर फॉलो करते हैं।
इन प्रयोगों में तो हरेक जगह की पुलिस सबसे अधिक भागीदारी निभा रही है। प्रधानमंत्री जी कहते हैं, लड़की बचाओ और लड़की पढाओ। 10 अगस्त को कानपुर में 13 वर्षीय बलात्कार पीडिता ने पुलिस की अकर्मण्यता से परेशान होकर फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली। 27 जुलाई को ऐसे ही कारण से जयपुर में पुलिस स्टेशन के सामने एक महिला ने आत्मदाह किया।
17 जून को बदायूं में पोलिस द्वारा मामला दर्ज नहीं किये जाने के कारण एक 24 वर्षीय महिला ने आत्महत्या कर ली। 14 जनवरी को गोंडा में एक बालिका ने आत्महत्या की, क्योंकि पुलिस ने कसूरवारों को बेक़सूर साबित कर दिया था। ऐसे बहुत से मामले हैं, पर प्रधानमंत्री जी तीन तलाक पर गर्व से चर्चा करते हैं, क्योंकि यह हिन्दुओं का मामला नहीं है।
यदि आप इन प्रयोगों को सही मानते हैं, तब तो आप निःसंदेह सुरक्षित हैं। दूसरे दलों के नेता भी जब सरकार के हर कदम की सराहना करते हैं तब उन पर से सारे केस या फिर आर्थिक गड़बड़ियों के मामले तुरंत हट जाते हैं। पर यदि आप इन प्रयोगों पर सवाल उठा रहे हैं, तब समझ जाइए की आप पर भी जल्दी ही कोई प्रयोग किया जाने वाला है।