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प्रेस रिलीज

रामनगर के सावल्दे पूर्वी गांव में पहली महिला शिक्षक सवित्रीबाई फुले के जन्मदिवस पर होगी सभा आयोजित

Prema Negi
2 Jan 2020 5:51 PM IST
रामनगर के सावल्दे पूर्वी गांव में पहली महिला शिक्षक सवित्रीबाई फुले के जन्मदिवस पर होगी सभा आयोजित
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धर्मग्रंथों में महिलाओं को शिक्षा की इजाजत नहीं होने के कारण समाज का एक हिस्सा हो गया था सावित्रीबाई के खिलाफ, जब वह पढ़ाने के लिए स्कूल जाती थीं तो लोग उनके ऊपर कीचड़ फेंकते, उनको ताने मारते थे ताकि वे लड़कियों को शिक्षित-प्रशिक्षित करना बंद कर दें...

जनज्वार, रामनगर। देश की पहली महिला शिक्षिका सावित्री बाई फुले का नाम देश के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में दर्ज है। उन्होंने महिलाओं को शिक्षित करने तथा उनके जीवन को बेहतर बनाने के लिए अपना समूचा जीवन समर्पित कर दिया। उन्हीं के जन्मदिवस 3 जनवरी को उत्तराखण्ड के रामनगर स्थित सावल्टे पूर्वी गांव में एक सभा और सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन महिला एकता मंच के तत्वावधान में किया जायेगा।

3 जनवरी, 1831 को महाराष्ट्र के एक किसान परिवार में जन्मी सावित्रीबाई फुले का विवाह मात्र 9 वर्ष की उम्र में ज्योतिबा फुले के साथ हो गया था। ज्योतिबा फुले ने उन्हें शिक्षित-प्रतिक्षित किया तथा महिलाओं को शिक्षा देने के लिए प्रेरित किया।

सावित्रीबाई फुले ने लड़कियों को शिक्षित करने के लिए जनवरी, 1848 को पुणे में पहला कन्या स्कूल खोला। धर्मग्रंथों में महिलाओं को शिक्षा की इजाजत नहीं होने के कारण समाज का एक हिस्सा उनके खिलाफ हो गया। जब वह पढ़ाने के लिए स्कूल जाती थीं तो लोग उनके ऊपर कीचड़ फेंकते थे, उनको ताने मारते थे ताकि वे लड़कियों को शिक्षित-प्रशिक्षित करना बंद कर दें।

पने उद्देश्य के लिए दृढ़ संकल्प सावित्रीबाई ने इस सबसे हार नहीं मानी। उनसे निबटने के लिए सावित्रीबाई एक साड़ी अपने थैले में रखकर ले जातीं तथा स्कूल पहुंचकर गन्दी साड़ी बदलकर लड़कियों को शिक्षा देती थीं।

सावित्रीबाई व ज्योतिबा फुले ने शुद्रों व अल्पसंख्यक वर्ग के स्त्री-पुरुषों की शिक्षा को भी बेहद जरूरी माना। फातिमा शेख जो कि उनके स्कूल की एक छात्रा थी। उसे अपने एक स्कूल में अध्यापिका बनाकर फातिमा शेख को देश की पहली मुस्लिम महिला अध्यापक होने का सम्मान प्रदान किया।

सावित्रीबाई फुले ने विधवा स्त्रियों की मदद का बीड़ा भी उठाया। उस दौर में उन्होंने पुणे शहर में विधवा गर्भवती स्त्रियों की देखभाल व उन्हें सहारा देने के लिए ‘बाल हत्या प्रतिबंधक गृह’ की स्थापना की। विधवा महिलाओं की स्थिति कितनी खराब थी इसका अंदाजा इसी बात से लग जाता है कि उनके गृह में 4 वर्षां के अंदर ही 100 से अधिक विधवाओं ने बच्चों को जन्म दिया, जिसमें से अधिकतर ब्राहमण स्त्रियां थीं।

सावित्रीबाई फुुले ने देश में महिलाओं को शिक्षित व सबल बनाने का जो बीड़ा उठाया था, वह आज भी अधूरा है। आज देश में महिलाओं के साथ अत्याचार लगातार बढ़ रहे हैं। देश के संविधान में महिलाओं को बराबरी का अधिकार दर्ज होने के बावजूद भी आज तक ज्यादातर महिलाओं को बराबरी का अधिकार नहीं मिल पाया है। दोहरी शिक्षा प्रणाली को समाप्त कर सभी को वैज्ञानिक, मानवीय मूल्यों का सृजन करने वाली समान शिक्षा तथा सभी को रोजगार की गारन्टी दिये बगैर हम महिलाओं व आम आदमी के जीवन में बदलाव सम्भव नहीं है।

हिलाओं को जो भी नाममात्र के अधिकार मिले हैं, वह सावित्रीबाई फुले जैसीे महिलाओं के संघर्षों का ही परिणाम है। सावित्रीबाई फुले को याद करते हुए, महिलाओं व आम आदमी के शिक्षा व रोजगार आदि के मुद्दों पर चर्चा करने के लिए ग्राम सावल्दे पूर्वी में एक सभा का आयोजन किया जा रहा है, जिसमें महिला एकता मंच ने सभी से शामिल होने की अपील की है।

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