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पुण्य प्रसून वाजपेयी का वह सवाल जिसके पूछने पर रामदेव करने लगे थे 'कपालभाति'
सुनने में आ रहा है कि बाबा रामदेव से सवाल पूछने के बाद आजतक प्रबंधन ने वरिष्ठ पत्रकार पुण्य प्रसून वाजपेयी को नौकरी से निकाल दिया है। ऐसे में वह सवाल जानना सर्वाधिक जरूरी है, जिसको सुनकर रामदेव को पतंजलि के विज्ञापन के लिए आजतक से बार्गेन करना पड़ गया...
गिरीश मालवीय का विश्लेषण
आखिरकार बाबा रामदेव पुण्य प्रसून वाजपेयी के किस सवाल पर हत्थे से उखड़ गए? दरअसल वाजपेयी ने बाबा की दुखती हुई रग पर हाथ रख दिया था और वह रग थी टैक्स चोरी की।
बाबा रामदेव दान के नाम पर कारोबार कर रहे हैं, ये कहना था देश के आयकर विभाग का, उस वक्त आयकर विभाग योग गुरु बाबा रामदेव के ट्रस्ट का चैरिटेबल संगठन के तौर पर रजिस्ट्रेशन रद्द करने की तैयारी में था।
2012 में आयकर विभाग का कहना था कि योग गुरु का पतंजलि योगपीठ ट्रस्ट कारोबार कर रहा है उनकी सूचना के अनुसार बाबा रामदेव का ट्रस्ट पतंजलि योगपीठ ट्रस्ट 2009-10 के दौरान कई व्यवसायिक गतिविधियों में शामिल था। दरअसल आयकर छूट उसी ट्रस्ट को मिलती है, जो अपनी आय का 85 फीसदी हिस्सा चैरिटेबल कामों पर खर्च करता है।
लेकिन इसी वक्त बाबा ने काले धन को लेकर एक आंदोलन खड़ा करने की कोशिश की जिसमें वह बीजेपी के सहयोग से पूरी तरह से कामयाब भी रहे और बाद बीजेपी सरकार आने पर उनके खिलाफ सारी जांच बन्द कर दी गई।
वर्ष 2004-05 में बाबा रामदेव के ट्रस्ट दिव्य फार्मेसी ने 6,73,000 रुपये की दवाओं की बिक्री दिखाकर 53,000 रुपये सेल्स टैक्स के तौर पर चुकाए। रिपोर्ट में कहा गया है कि जिस तरह से पतंजलि योग पीठ के बाहर लोगों को हुजूम लगा रहता था, उस हिसाब से आयुर्वेदिक दवाओं का यह आंकड़ा बेहद कम था। इसकी वजह से उत्तराखंड के सेल्स टैक्स ऑफिस (एसटीओ) को बाबा रामदेव के ट्रस्ट की ओर से उपलब्ध कराए गए बिक्री के आंकड़ों पर शक हुआ।
एसटीओ ने उत्तराखंड के सभी डाकखानों से जानकारी मांगी। पोस्ट ऑफिस से मिली जानकारी ने एसटीओ के शक को पुख्ता कर दिया। तहलका में छपी रिपोर्ट में डाकखानों से मिली सूचना के हवाले से कहा गया है कि वित्त वर्ष 2004-05 में दिव्य फार्मेसी ने 2509.256 किलोग्राम दवाएं 3353 पार्सल के जरिए भेजा था। इन पार्सलों के अलावा 13,13000 रुपये के वीपीपी पार्सल भी किए गए थे। इसी वित्त वर्ष में दिव्य फार्मेसी को 17,50,000 रुपये के मनी ऑर्डर मिले थे।
इसी सूचना के आधार पर एसटीओ की विशेष जांच शाखा (एसआईबी) ने दिव्य फार्मेसी में छापा मारा। तत्कालीन डिप्टी कमिश्नर जगदीश राणा ने छापे के दौरान एसआईबी टीम का नेतृत्व किया था। रिपोर्ट में राणा के हवाले से कहा गया है, 'तब तक मैं भी रामदेवजी का सम्मान करता था, लेकिन वह टैक्स चोरी का सीधा-सीधा मामला था। राणा के मुताबिक उस मामले में ट्रस्ट ने करीब 5 करोड़ रुपये की टैक्स चोरी की थी।'
उस दौरान बाबा के ट्रस्ट पर पड़े छापे से तत्कालीन गवर्नर सुदर्शन अग्रवाल बहुत नाराज हुए थे। उन्होंने राज्य सरकार को छापे से जुड़ी रिपोर्ट देने को कहा था।
कई अधिकारियों का मानना है कि रेड के बाद राणा पर इतना दबाव पड़ा कि उन्होंने चार साल पहले ही रिटायरमेंट ले ली। एसआईबी की इस कार्रवाई के बाद राज्य या केंद्र सरकार की दूसरी कोई भी एजेंसी बाबा रामदेव के साम्राज्य के खिलाफ कार्रवाई करने का साहस नहीं जुटा पाई।
पर यह सब तो पुरानी बातें हैं। रामदेव बाबा ने आज मीडिया के मुँह में विज्ञापन ठूस ठूस कर उसकी बोलती बंद कर दी है। आप अगर ढूंढ़ें तो 2013-14 के बाद से उसके खिलाफ चल रही जांचों की रिपोर्ट को कहीं भी पब्लिश नही किया गया और न ही बड़े अधिकारियों ने उसके खिलाफ कोई कार्यवाही के हिम्मत दिखाई।
आज भी बाबा 'पतंजलि' की बेहिसाब कमाई ट्रस्ट के जरिए दिखाकर टैक्स में घपले कर रहा है लेकिन कौन पूछता है, कहा भी गया है 'जब सैंया भये कोतवाल तब डर काहे का'