प्रशांत भूषण ने किया दावा, राफेल डील इतना बड़ा घोटाला जिसकी नहीं की जा सकती कल्पना भी
देश की जनता के लिए बनी मोदी सरकार बन चुकी है अंबानी की चीज, देश की संपत्ति का अरबों रुपया सिर्फ इसलिए मोदी सरकार कर रही बर्बाद कि मोदी के सबसे नजदीकी अंबानी घराने को पहुंचे फायदा....
जनज्वार। लगातार एक से बढ़कर एक भ्रष्टाचारों का खुलासा करने वाले सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण देश की वह शख्सियत हैं जिन्होंने सभी पार्टियों के भ्रष्टाचार को जनता के बीच पूरे तथ्यों के साथ लाने का हमेशा से सराहनीय काम किया है। वे राफेल डील के भ्रष्टाचार को बहुत तथ्यगत, तार्किक और सिलसिलेवार ढंग से बता चुके हैं, मगर अब उन्होंने कहा है कि राफेल विमान सौदा इतना बड़ा घोटाला है जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती।
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राफेल डील पर वो पहले भी कह चुके हैं कि देश की जनता के लिए बनी मोदी सरकार अंबानी के जेब की चीज बन गयी है और देश की संपत्ति का अरबों रुपया सिर्फ इसलिए बर्बाद कर रही है कि प्रधानमंत्री मोदी के सबसे नजदीकी अंबानी घराने को फायदा हो।
मीडिया में आ रही खबरों के मुताबिक प्रशांत भूषण ने आरोप लगाया कि ऑफसेट करार के जरिये अनिल अम्बानी के रिलायंस समूह को दलाली (कमीशन) के रूप में 21,000 करोड़ रुपये मिले। प्रशांत भूषण ने इस सौदे से जुड़ी कथित दलाली की 1980 के दशक के बोफोर्स तोप सौदे में दी गयी दलाली से भी तुलना की।
प्रशांत भूषण ने कहा कि भाजपा नेतृत्व वाली सरकार ने केवल सौदे में अनिल अम्बानी की कंपनी को जगह देने के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा से समझौता किया और भारतीय वायु सेना को ‘बेबस’ छोड़ दिया.
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प्रशांत भूषण की मानें तो राफेल विमान सौदा इतना बड़ा घोटाला है जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती। बोफोर्स 64 करोड़ रुपये का घोटाला था, जिसमें चार प्रतिशत कमीशन दिया गया था। इस घोटाले में कमीशन कम से कम 30 प्रतिशत है। अनिल अम्बानी को दिए गए 21,000 करोड़ रुपये केवल कमीशन के हैं, कुछ और नहीं।
प्रशांत भूषण ने सरकार से सवाल किया कि वायुसेना को 126 विमानों की जरूरत थी और उसने अपनी जरूरत ‘कम की’ और नये सौदे से तकनीक वाली उपधारा गायब होने पर सवाल किए।
गौरतलब है कि कांग्रेस द्वारा इस मुद्दे को उठाने के बाद अंबानी ने राहुल गांधी को पिछले माह एक पत्र लिखा था, जिसके बाद रिलायंस ग्रुप की तरफ से बयान दिया गया कि रिलायंस को करोड़ों रुपये का लाभ पहुंचाने के आरोप महज कल्पना की उपज है, जिन्हें निहित स्वार्थों द्वारा बढ़ावा दिया जा रहा है।