आश्रय गृहों में बलात्कार का शिकार होती ये बच्चियां किसकी बेटियां हैं
ये क्यों इतनी बेबस और लाचार हैं कि इनके साथ मानवता को कंपा देने वाला व्यवहार भी किया जाये तो वे इसका विरोध नहीं कर सकतीं, प्रतिवाद नहीं कर सकतीं? ये क्यों कुछ भी सहने को विवश हैं...
सिद्धार्थ का विश्लेषण
बिहार के मुजफ्फरपुर और उत्तर प्रदेश के बालिका संरक्षण गृह या शेल्टर होम में रहने वाली बच्चियों का इस्तेमाल प्रभावशाली लोगों की यौन पिपाशा शान्त करने के लिए किया जाता था, यह सच सामने आने के बाद हर संवेदनशील व्यक्ति शर्मसार महसूस कर रहा है।
इन बच्चियों ने जो आपबीती सुनाई है, उससे किसी की भी रूह कांप जाय। सबसे दुखद और भीतर से तोड़ देने वाली बात यह है इन बेटियों के साथ शर्मसार कर देने वाला अपराध उन लोगों के देखरेख में हुआ, जिन्हें उनकी परवरिश और सुरक्षा की जिम्मेदारी दी गई थी। यानी जिन्हें एक तरह से इनका मां-बाप बनाया गया था।
केंद्रीय महिला और बाल विकास मंत्री मेनका गांधी के अनुसार देश भर के 9 हजार बाल संरक्षण गृहों में कुल 2 लाख 33 हजार बच्चे रहते हैं। इनमें बड़ी संख्या में बच्चियां हैं। अधिकांश बालिका गृहों के वही हालात हैं, जो मुजफ्फरपुर या देवरिया में सामने आये हैं। इस तरह के तथ्य पहले भी देश के अन्य हिस्सों से आते रहे हैं।
जब 2017 में तमिलनाडु के महाबलीपुरम् में एक एनजीओ और सरकार के साझे में चलाये जाने वाले अनाथालय के संदर्भ में यह तथ्य आया कि यहां के बच्चे-बच्चियों का इस्तेमाल देशी-विदेशी पर्यटकों की यौन पिपासा शान्त करने के लिए होता है और इसके बदले में उनसे पैसे लिए जाते हैं, तो भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने इस तरह के सभी गृहों के पंजीकरण और जांच के संदर्भ में सख्त निर्देश मई 2017 में दिया था।
प्रश्न यह है कि आखिर कौन हैं, ये बच्चियां? कहां से संरक्षण गृहों में लायी जाती हैं, ये किनकी बेटियां है? इनके मां-बाप कहां गए? ये क्यों इतनी बेबस और लाचार हैं कि इनके साथ मानवता को कंपा देने वाला व्यवहार भी किया जाये तो वे इसका विरोध नहीं कर सकतीं, प्रतिवाद नहीं कर सकतीं? ये क्यों कुछ भी सहने को विवश हैं?
ये वे बेटियां हैं, जिनका दुनिया में ऐसा कोई नहीं है, जिन्हें वे अपना कह सकें। ये अनाथ, बेसहारा, लाचार, मजबूर या परिवार और समाज द्वारा दुत्कारी गई हैं, फेंक दी गई हैं। इनकी कई श्रेणियां हैं। कुछ बच्चियां ऐसी हैं, जिन्हें जन्म लेते ही उनकी मां ने छोड़ दिया। ये किसी अस्पताल, किसी कूड़ेदान, किसी सार्वजनिक स्थल पर या अन्य कहीं पाई गईं।
सभी लोग आये दिन अखबार पढ़ते होंगे कि एक नवजात बच्ची पाई गई। संरक्षण गृहों में जो कुछ इनके साथ हो रहा है, उसे देखते हुए दुर्भाग्य कहें या सौभाग्य इनमें से कुछ नवजात बच्चियों पर किसी की नजर पड़ जाती है, वह पुलिस के सहयोग इन्हें अनाथालय पहुंचा देता है।
इनमें से कुछ बेटियां ऐसी हैं, जो सड़कों पर घूमते और भीख मांगते पुलिस या किसी एनजीओ को मिलती हैं, जो इन्हें इन संरक्षण गृहों में पहुंचा देते हैं। इनमें अधिकांश बलात्कार या हवस का शिकार बन चुकी होती हैं। ये शारीरिक और मानसिक तौर पर कमजोर और भीतर से टूटी हुई लड़कियां होती हैं। शेल्टर होम इन्हें थोड़ा सहारा देते हैं।
यहां लाई जाने वाली लड़कियों का एक समूह ऐसा है, जो लड़कियों की तस्करी करने वाले गिरोहों के हाथ लग गईं। इन तस्करों ने उन्हें देह व्यापार करने वालों के हाथों बेच दिया। ये कई बार बेचीं और खरीदी जाती हैं। ऐसे भी तथ्य सामने हैं, जब एक लड़की पचासों बार खरीदी और बेची गई। इनमें से कुछ लड़कियां छापेमारी या किसी अन्य तरीके से पुलिस के हाथ लग जाती हैं और पुलिस उन्हें किसी शेल्टर होम में भेज देती है।
इनमें कुछ तो खुद भागकर ऐसी जगहों से निकल आती हैं और शेल्टर होम ही उनका सहारा होता है। एक अच्छी-खासी संख्या में लड़कियां साम्प्रदायिक, जातीय या अन्य संघर्षरत क्षेत्रों से आती हैं। जिन संघर्षों में इनके माता-पिता मार दिए जाते हैं और ये अनाथ और बेसहारा हो जाती हैं।
कुछ लड़कियां वेश्यालयों से मुक्त कराई जाती हैं। ये लड़कियां अपना जिस्म बेचने वाली महिलाओं की नाबालिग बेटियां होती हैं या जिन्हें इस धंधे में झोक दिया गया होता है। पुलिस अक्सर समय-समय पर ऐसी जगहों पर छापे मारती है और दावा करती है कि इतनी लड़कियों को मुक्त कराया गया। तथाकथित मुक्त कराई गई लड़कियों को इन्हीं बालिका संरक्षण गृहों में भेज दिया जाता है।
लड़कियों का एक और समूह को यहां लाया जाता है। ये वे लड़कियां हैं, जो किसी के प्रेम में पड़ जाती हैं, घर छोड़कर भाग निकलती हैं। बाद में प्रेमी द्वारा छोड़ दी जाती हैं और घर वापस लौटने का हिम्मत नहीं दिखा पाती और मारी-मारी फिरती हैं। अन्ततोगत्वा इनमें से कुछ के लिए ये शेल्टर होम ही उनका आश्रय स्थल बनते हैं। इन संरक्षण गृहों में लाई जाने वाली कुछ लड़कियां कुछ तुच्छ अपराध करते हुए पकड़ी जाती हैं जिसमें ब्रेड चुराने जैसा अपराध भी शामिल है।
इन अनाथ और बेसहारा लड़कियों में एक बड़ी संख्या उन लड़कियों की है, जिनके मां-बाप और परिवार के अन्य सदस्यों की असमय मृत्यु हो गई या वे इस हालात में नहीं रहे कि अपनी बेटियों को दो जून की रोटी भी दे सकें। इसके कई कारण हैं। पहला तो यह कि देश के अलग-अलग हिस्सों में समय-समय पर प्राकृतिक आपदायें आती रहती हैं। कभी कभी बाढ़, कभी सूखा, कभी तूफान,कभी भूकंप और कभी सूनामी।
इन प्राकृतिक आपदाओं के समय बहुत सारे बच्चे- बच्चियां अनाथ और बेसहारा हो जाती हैं और इन्हें संरक्षण गृहों में भेज दिया जाता है।
इसके अलावा देश का एक बड़ा हिस्सा गरीबी में जीता है, प्रतिदिन कमाकर खाने से ही उनका जीवन चलता है, यदि परिवार के कमाऊ सदस्य की असमय मृत्यु हो जाती है या वह विकलांग हो जाता है या गंभीर तौर बीमार हो जाता है, तो परिवार गंभीर आर्थिक संकट में आ जाता है।
ऐसे परिवारों की भी बच्चियां विभिन्न तरीकों से इन संरक्षण गृहों में आती हैं। इसके साथ गांवों को छोड़कर शहरों की मलिन बस्तियों में रहने वाले एकल परिवार की बच्चियों को भी माता-पिता के न रहने पर मजबूरन यहां शरण लेना पड़ता है।
सिद्धार्थ फॉरवर्ड प्रेस हिंदी के संपादक हैं।