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संस्कृति

एक कश्मीरी बच्चे का बयान

Prema Negi
6 Oct 2019 4:38 AM GMT
एक कश्मीरी बच्चे का बयान
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रोहतक के युवा कवि संदीप कुमार की कविता 'एक कश्मीरी बच्चे का बयान'

मेरे घर में जब भी

भारत शब्द सुनायी दिया

गुस्सा, चुप्पी और तनाव

एक साथ नजर आए हैं

मैंने बचपन में देखा है

दादी मां को रोते हुए

उस चाचू के लिए

जिसे पूछताछ के लिए ले जाया गया

और लौटकर कभी नहीं आया

मां को भी रोते हुए देखा है मैंने

बापू के उस गुस्से पर

जब मां की ओर लगातार

घूरे जा रहे थे सैनिक

और बापू प्रतिरोध में

पांव पटक रहे थे

मेरी बड़ी बहन

सुनाती है किस्से-कहानियां

दादी सुनाती है लोरियां

उन किस्से-कहानियों और लोरियों में

खुशी कम, दुख ज्यादा होते हैं

मैं नहीं समझ पाता था?

क्यों कई कई दिनों तक

घरों के दरवाजे बंद रहते हैं

और रातों को बुझा दिए जाते हैं

रोशनी फैलाते चिराग?

मैं नहीं समझ पाता था?

क्यों अचानक परीक्षाओं के दिनों में

स्कूलों पर ताले जड़ दिए जाते थे?

स तरह वक्त और हालातों ने

समय से पहले ही समझदार बना दिया

ब गाड़ी का सायरन बजता है

अब कोई नहीं बताता मुझे

मैं खुद ही दीवार का सहारा ले

खड़ा हो जाता हूँ गर्दन झुकाकर

और खड़ा रहता हूं तब तक

जब तक सायरण वाली गाड़ी

दूर तक नहीं चली जाती।

क दिन

मैंने अपनी आंखों से देखा

अब्दुल चाचा को बीच सड़क पर

बेइज्जत होते हुए

मैंने उस बुड्डे अब्बा को भी देखा

सैनिकों द्वारा गाली देते हुए

जिसकी दाढ़ी और सिर के बाल

सफेद हो चुके हैं

क दिन मेरे सहपाठी को

सैनिक उठाकर ले गए

शक के बिनाह पर

जिसने कभी लड़ाई नहीं की कक्षा में

और जब वह लौटकर आया

उसकी पीठ पर कोड़ों के निशान थे

उसकी पेशानी को

करंट के झटके दिए गए थे

तब पहली बार मुझे गुस्सा आया

और बंद मुठी हवा में लहराई

परिगाम के निवासी पर छापे के दौरान सैनिक यातना के निशान

जिन्हें लगता है

हम बच्चों को इस्तेमाल किया जा रहा है

सेना के खिलाफ युद्ध में

उन्हें फिर से बता दूं

मेरी बड़ी इच्छा है

प्यार पर लिखी कविताएं पढ़ने की

अपनी पीठ पर बैग लटकाकर स्कूल जाने की

लेकिन जब हर चौक पर खोलनी पड़े

बैग की चैन, अपने नागरिक होने के

सबूत पेश करने के लिए

और अपनी ही जन्म भूमि पर

गालियां खाते हुए आगे बढ़ना पड़े

फिर भी तुम ये चाहते हो

हम शांत रहें

मैं बस इतना कहूंगा

अपना सुझाव अपने पास रखें

हमारी लोक कथाएं खून से सनी हैं

वो शांत खूनों में

हलचल पैदा करती हैं

जब हमारे पास पत्थर नहीं होंगे

प्रतिरोध में फेंकने को, तब हम

सामूहिक भूख हड़ताल पर चले जाएंगे

और दुनिया के महान लोकतंत्र को

भूख से मरते हुए नंगा कर देंगे

च्चाई तो यह भी है कि

हम बच्चे ही हैं

मगर हालातों ने हमें

लड़ाकू बना दिया है।

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