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राजनीति

राजस्थान में 31 पहाड़ियां गायब, सुप्रीम कोर्ट ने पूछा क्या उठा ले गए हनुमान जी

Prema Negi
25 Oct 2018 8:20 AM GMT
राजस्थान में 31 पहाड़ियां गायब, सुप्रीम कोर्ट ने पूछा क्या उठा ले गए हनुमान जी
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माफियाओं, भ्रष्टाचारियों, मीडिया के दलालों और नेताओं की चौकड़ी ने राजस्थान में अरावली की 31 पहाड़ियां गायब कर दीं हैं और सरकार चोर की मुद्रा में खड़ी है...

जेपी सिंह की रिपोर्ट

उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को राजस्थान सरकार को निर्देश दिया कि 48 घंटे के भीतर अरावली पहाड़ियों के 115.34 हेक्टेयर क्षेत्र में अवैध खनन बंद किया जाए। न्यायालय ने पूछा कि क्या इन पहाड़ियों को हनुमान जी उठा के ले गए हैं। ये पहाड़ियां गईं कहां। केंद्रीय अधिकार प्राप्त समिति ने अदालत में रिपोर्ट दी थी। इसमें कहा गया था कि भारतीय वन सर्वेक्षण ने 128 सैंपल लिए थे, इनमें से करीब 31 पहाड़ियां या टीले गायब हो गए हैं।

न्यायमूर्ति मदन बी. लोकूर और न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता की पीठ ने कहा कि वह यह आदेश देने के लिए बाध्य हो गई, क्योंकि राजस्थान सरकार ने इस मामले को बहुत ही हल्के में लिया है। उच्चतम न्यायालय ने केंद्रीय अधिकार प्राप्त समिति की रिपोर्ट का भी जिक्र किया कि राज्य के 128 के लिए गए नमूनों में से अरावली इलाके में 31 पहाड़ियां अब गायब हो चुकी हैं।

उच्चतम न्यायालय ने कहा कि राजस्थान सरकार अरावली में खनन गतिविधियों से करीब 5 हजार करोड़ रुपए राजस्व हासिल कर रही है। लेकिन, इसके चलते दिल्ली के लाखों लोगों का जीवन संकट में नहीं डाला जा सकता है, क्योंकि अरावली के इलाके में पहाड़ियों का गायब होना एनसीआर में प्रदूषण बढ़ने की एक अहम वजह हो सकता है।

दिल्ली में प्रदूषण का बड़ा कारण

पीठ ने कहा कि दिल्ली में प्रदूषण स्तर में बढ़ोतरी का एक कारण राजस्थान में इन पहाड़ियों का गायब होना भी हो सकता है। उच्चतम न्यायालय ने कहा कि यद्यपि राजस्थान को अरावली में खनन गतिविधियों से करीब पांच हजार करोड़ रुपये की रायल्टी मिलती है, लेकिन वह दिल्ली में रहने वाले लाखों लोगों की जिंदगी को खतरे में नहीं डाल सकता। पीठ ने राजस्थान सरकार द्वारा पेश स्थित रिपोर्ट का जिक्र किया और कहा कि इससे संकेत मिलता है कि राज्य में अरावली रेंज में 115.34 हेक्टेयर इलाके में गैरकानूनी खनन की गतिविधियां चल रही हैं।

अक्षमता पर बिफरा कोर्ट

न्यायमूर्ति लोकूर ने राजस्थान के वकील से कहा कि यदि देश में पहाड़ियां गायब होंगी तो फिर क्या होगा? क्या लोग हनुमान हो गए हैं जो पहाड़ियां ले जा रहे हैं?’ पीठ ने कहा कि आप किसे अंधेरे में रखना चाहते हैं। राज्य अरावली पहाड़ियों को गैरकानूनी खनन से बचाने में विफल हो गया है। पीठ ने कहा कि ऐसा लगता है कि राज्य सरकार ने इस मामले को बहुत ही हल्के में लिया है और उच्चतम न्यायालय उसकी स्थिति रिपोर्ट से बिल्कुल भी संतुष्ट नहीं है, क्योंकि इसमें से अधिकांश वन सर्वेक्षण विभाग की तथाकथित अक्षमता के बारे में है।

क्या कदम उठाए

सुनवाई के दौरान पीठ ने राज्य सरकार के वकील से जानना चाहा कि उसने गैरकानूनी खनन की गतिविधियां रोकने के लिये क्या कदम उठाए। इस पर वकील ने कहा कि हमने कारण बताओ नोटिस जारी करने के अलावा इस संबंध में कई प्राथमिकी भी दर्ज की हैं। पीठ ने पहाड़ियों के महत्व को इंगित करते हुए कहा कि पहाड़ियों का सृजन ईश्वर ने किया है। कुछ तो ऐसी वजह होंगी जो ईश्वर ने ऐसा किया। ये अवरोधक की भूमिका निभाती हैं। यदि आप सभी पहाड़ियों को हटाने लगेंगे तो राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के आसपास के इलाकों के विभिन्न हिस्सों से प्रदूषण दिल्ली आएगा।’

वकील ने कहा कि उसके यहां के सभी विभाग गैरकानूनी खनन रोकने के लिए काम कर रहे हैं। इस पर, पीठ ने कहा कि किस तरह का काम कर रहे हैं? दिल्ली को पहले ही नुकसान पहुंचाया जा चुका है। आपने केंद्रीय अधिकार प्राप्त समिति के इस तथ्य का खंडन नहीं किया है कि 31 पहाड़ियां गायब हो गई हैं।

अगली सुनवाई 29 को

अधिकार प्राप्त समिति के वकील ने पीठ से अनुरोध किया कि अरावली क्षेत्र में गैरकानूनी खनन की गतिविधियां रोकने के लिए कठोर से कठोर कदम उठाने चाहिए, क्योंकि राज्य सरकार उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं करेगी। पीठ ने अपने आदेश पर अमल के बारे में एक हलफनामा दाखिल करने का राज्य के मुख्य सचिव को निर्देश भी दिया है। न्यायालय इस मामले में अब 29 अक्तूबर को आगे विचार करेगा।

राज्य सरकार ने बजरी पर बैन को बताया था गलत

इसके पहले उच्चतम न्यायालय ने पर्यावरण मंत्रालय को 6 सप्ताह के भीतर अध्ययन रिपोर्ट पेश करने को कहा था।उच्चतम न्यायालय में पर्यावरण मंत्रालय को ये भी बताने को कहा था कि निर्माण कार्यों के लिए बजरी या फिर बालू क्यों आवश्यक है। राजस्थान सरकार ने उच्चतम न्यायालय में हलफनामा दाखिल कर राज्य में पूरी तरह से बजरी पर बैन को गलत बताया था।

82 लाइसेंस हुए हैं रद्द

राज्य सरकार ने उच्चतम न्यायालय से मांग की थी कि जिन 12 लाइसेंस होल्डरों को पर्यावरण मंजूरी मिल गई है, उन्हें बजरी खनन की इजाजत दी जाए। उच्चतम न्यायालय ने साफ किया था कि बजरी खनन के लिए सबसे पहले यह बताना होगा कि निर्माण कार्यों के लिए बजरी या फिर बालू क्यों आवश्यक है और इनके बिना निर्माण क्यों नहीं हो सकता। दरअसल पिछले साल सुनवाई में उच्चतम न्यायालय ने बजरी खनन से जुड़े 82 लाइसेंस को रद्द कर दिया था। न्यायालय ने कहा था कि बिना पर्यावरणीय मंजूरी और अध्ययन रिपोर्ट के खनन की इजाजत नहीं दी जा सकती है.

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