पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने निर्मोही अखाड़े से कहा कि जिस क्षण आप कहते हैं आप 'शबैत (रामलला के भक्त) हैं, आपका संपत्ति पर मालिकाना हक नहीं रह जाता...
जनज्वार। उच्चतम न्यायालय ने सुनवाई के दसवें दिन गुरुवार 22 अगस्त को हिंदू संस्था निर्मोही अखाड़े से कहा कि अगर वे भगवान राम लला का उपासक (शबैत) होने का दावा करते हैं, तो वे विवादित संपत्ति पर मालिकाना हक खो देंगे। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने अपने 2010 के फैसले में अयोध्या में 2.77 एकड़ की विवादित जमीन को तीन पक्षों-सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और रामलला के बीच बराबर-बराबर बांटने को कहा था।
अखाड़े ने अनंतकाल से विवादित स्थल पर भगवान राम लला विराजमान का एकमात्र आधिकारिक शबैत (उपासक) होने का दावा करते हुए कहा था कि वह वहां पर पूजा के लिये पुरोहित नियुक्त करता रहा है। पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने कहा कि जिस क्षण आप कहते हैं कि आप 'शबैत (रामलला के भक्त) हैं, आपका (अखाड़ा) संपत्ति पर मालिकाना हक नहीं रह जाता है।
संविधान पीठ में मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति एसए बोबडे, न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एसए नजीर भी शामिल हैं। न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने एकमात्र उपासक के तौर पर अखाड़ा की प्रकृति में भेद करते हुए कहा कि उसका विवादित जमीन पर मालिकाना हक नहीं रह जाता है। उन्होंने अखाड़ा के वकील सुशील कुमार जैन से कहा कि आपका संपत्ति पर एक तिहाई का दावा सीधे चला जाता है।
उन्होंने जैन से पूछा कि आपने कैसे सवालों के घेरे में आई संपत्ति पर मालिकाना हक का दावा किया। वरिष्ठ अधिवक्ता ने कहा, 'नहीं, मेरा अधिकार समाप्त नहीं होता है। शबैत होने के नाते संपत्ति पर मेरा कब्जा रहा है।' हिंदू संस्था के दावे को सही ठहराते हुए उन्होंने कहा कि यद्यपि देवता को न्यायिक व्यक्ति बताया गया है, शबैत को देवता की तरफ से मुकदमा करने का कानूनी अधिकार प्राप्त है।
राम लला के वकील से उल्टा रुख अपनाते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता जैन ने कहा कि 'मूर्तियों को पक्षकार नहीं बनाया जाना चाहिये था। पीठ ने पूछा, 'क्या आप शबैत होने के नाते संपत्ति पर कब्जे का दावा कर रहे हैं।' वकील ने इसका सकारात्मक जवाब दिया। उन्होंने कहा कि मेरे शबैत होने की अर्जी पर किसी ने भी आपत्ति नहीं जताई है। उन्होंने कहा कि सारी पूजा अखाड़ा द्वारा नियुक्त पुजारी करा रहे हैं। जहां तक शबैत के रूप में मेरे अधिकार का सवाल है तो उसपर कोई विवाद नहीं है।
अखाड़े ने उस विवादित स्थल पर अपना दावा पेश किया जहां बाबरी मस्जिद को छह दिसंबर 1992 को गिरा दिया गया था। अखाड़ा ने कहा कि मुसलमानों को वहां 1934 से घुसने और नमाज अदा करने की अनुमति नहीं दी गई है।