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राजनीति

हिन्दू पक्षकारों के विरोध के बावजूद सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या विवाद में नियुक्त किये तीन मध्यस्थ

Prema Negi
8 March 2019 5:12 PM IST
हिन्दू पक्षकारों के विरोध के बावजूद सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या विवाद में नियुक्त किये तीन मध्यस्थ
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सुन्नी वक्फ बोर्ड मध्यस्थता के लिए तैयार है, और बोर्ड के वकील राजीव धवन ने दावा किया है कि निर्मोही अखाड़ा भी मध्यस्थता के लिए तैयार है। मगर रामलला विराजमान और अन्य हिन्दूवादी संगठन मध्यस्थता का विरोध कर रहे हैं....

वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह की रिपोर्ट

सुन्नी वक्फ बोर्ड और निर्मोही अखाड़ा को छोडकर हिन्दू पक्षकारों और उत्तर प्रदेश सरकार के विरोध के बावजूद उच्चतम न्यायालय ने अयोध्या के राम मंदिर-बाबरी मस्जिद मामले को सुलझाने के लिए उच्चतम न्यायालय ने मध्यस्थ नियुक्त कर दिये हैं।

उच्चतम न्यायालय ने मध्यस्थता के लिए जिस पैनल को गठित किया है, उस पैनल में पूर्व जस्टिस एफ एम खलीफुल्ला, धर्मगुरु श्रीश्री रविशंकर और मद्रास हाईकोर्ट के वरिष्ठ वकील श्रीराम पांचू हैं। उच्चतम न्यायालय ने अपने आदेश में कहा कि मध्यस्थता में कोई कानूनी अड़चन नजर नहीं आती है।

उच्चतम न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश एफएम खलीफुल्ला मध्यस्थता करने वाले पैनल के मुखिया होंगे। इस पैनल को 8 हफ्तों में रिपोर्ट सौंपनी होगी।हालांकि रविशंकर का विरोध शुरू हो गया है और उन पर तटस्थ नहीं होने का आरोप लगाया जा रहा है। श्रीश्री रविशंकर पर दोनों पक्षों को आपत्ति है।न्यायालय ने कहा कि मध्यस्थता कार्यवाही की सफलता सुनिश्चित करने के लिए ‘अत्यंत गोपनीयता’ बरती जानी चाहिए और प्रिंट तथा इलेक्ट्रॉनिक मीडिया इस कार्यवाही की रिपोर्टिंग नहीं करेगा।

संविधान पीठ ने कहा है कि मध्यस्थता कार्यवाही उत्तर प्रदेश के फैजाबाद में होगी और यह प्रक्रिया एक सप्ताह के भीतर शुरू हो जानी चाहिए। संविधान पीठ में मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति डी वाई चन्द्रचूड़, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर शामिल हैं।

पीठ ने कहा कि मध्यस्थता करने वाली यह समिति चार सप्ताह के भीतर अपनी कार्यवाही की प्रगति रिपोर्ट दायर करेगी। पीठ ने कहा कि यह प्रक्रिया आठ सप्ताह के भीतर पूरी हो जानी चाहिए। पीठ ने यह भी कहा कि मध्यस्थता समिति इसमें और अधिक सदस्यों को शामिल कर सकती है और इस संबंध में किसी भी तरह की परेशानी की स्थिति में समिति के अध्यक्ष उच्चतम न्यायालय की रजिस्ट्री को इसकी जानकारी देंगे।

राम मंदिर-बाबरी मस्जिद मामले में मुख्यत: तीन पक्षकार (रामलला विराजमान, निर्मोही अखाड़ा और सुन्नी वक्फ बोर्ड) हैं। इसके अलावा कई अन्य संगठन और वकीलों ने याचिका दाखिल की है। यूपी सरकार भी एक पक्ष है। सुन्नी वक्फ बोर्ड मध्यस्थता के लिए तैयार है। वहीं सुन्नी वक्फ बोर्ड के वकील राजीव धवन ने दावा किया है कि निर्मोही अखाड़ा भी मध्यस्थता के लिए तैयार है, वहीं हिंदू पक्षकार रामलला विराजमान मध्यस्थता का विरोध कर रहा है। पिछली सुनवाई के दौरान उत्तर प्रदेश सरकार ने अयोध्या भूमि विवाद में मध्यस्थता का विरोध किया था। यूपी सरकार ने उच्चतम न्यायालय से कहा था कि मामले की प्रकृति को देखते हुए यह उचित नहीं है।

मध्यस्थता की बात क्यों उठी?

उच्चतम न्यायालय ने विवादास्पद 2.77 एकड़ भूमि तीन पक्षकारों-सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और रामलला के बीच बराबर-बराबर बांटने के इलाहाबाद हाईकोर्ट के 2010 के फैसले के खिलाफ दायर 14 अपील पर सुनवाई के दौरान मध्यस्थता के माध्यम से विवाद सुलझाने की संभावना तलाशने का सुझाव दिया था। उच्चतम न्यायालय ने बुधवार 6 मार्च को कहा था कि वह अयोध्या के राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद को मध्यस्थता के लिये भेजा जाए या नहीं इस पर आदेश देगा। साथ ही इस बात को रेखांकित किया कि मुगल शासक बाबर ने जो किया, उस पर उसका कोई नियंत्रण नहीं और उसका सरोकार सिर्फ मौजूदा स्थिति को सुलझाने से है।

उच्चतम न्यायालय ने कहा था कि उसका मानना है कि मामला मूल रूप से तकरीबन 1,500 वर्ग फुट भूमि भर से संबंधित नहीं है, बल्कि धार्मिक भावनाओं से जुड़ा हुआ है। उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने कहा था कि न्यायालय को यह मामला उसी स्थिति में मध्यस्थता के लिये भेजना चाहिए, जब इसके समाधान की कोई संभावना हो। उन्होंने कहा कि इस विवाद के स्वरूप को देखते हुये मध्यस्थता का मार्ग चुनना उचित नहीं होगा। इन तीनों मध्यस्थों का काम है कि सभी पक्षों की राय को सुनकर उच्चतम न्यायालय को दें और गोपनीय रखा जाए।

इससे पहले, फरवरी महीने में उच्चतम न्यायालय ने सभी पक्षकारों को दशकों पुराने इस विवाद को मैत्रीपूर्ण तरीके से मध्यस्थता के जरिये निपटाने की संभावना तलाशने का सुझाव दिया था। न्यायालय ने कहा था कि इससे ‘संबंधों को बेहतर’ बनाने में मदद मिल सकती है।

गौरतलब है कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय के 2010 के फैसले के खिलाफ उच्चतम न्यायालय में 14 याचिकाएं दायर हुई हैं। उच्च न्यायालय ने अपने फैसले में कहा था कि अयोध्या में 2.77 एकड़ की विवादित भूमि तीनों पक्षकारों- सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और रामलला के बीच बराबर बांट दी जाए।

कौन मध्यस्थता के पक्ष में है और कौन विरोध में

सुन्नी वक्फ बोर्ड मध्यस्थता के लिए तैयार है। वहीं सुन्नी वक्फ बोर्ड के वकील राजीव धवन ने दावा किया है कि निर्मोही अखाड़ा भी मध्यस्थता के लिए तैयार है। मगर रामलला विराजमान और अन्य हिन्दूवादी संगठन मध्यस्थता का विरोध कर रहे हैं।

पिछली सुनवाई के दौरान उत्तर प्रदेश सरकार ने अयोध्या भूमि विवाद में मध्यस्थता का विरोध किया था। यूपी सरकार ने उच्चतम न्यायालय से कहा था कि मामले की प्रकृति को देखते हुए यह उचित नहीं है। हिंदू संगठनों का कहना है कि श्रीश्री रविशंकर को राम मंदिर मामले में लाना गलत है और हम कोर्ट के फैसले पर विचार करने के बाद आगे का कदम उठाएंगे।

मुस्लिम पक्षकार इकबाल अंसारी का कहना है कि मध्यस्थता के लिए पैनल बनाया गया है, इससे हल हो जाए तो बेहतर है। लेकिन ऐसा हो पाना मुश्किल है क्योंकि कई पक्षकार हैं। पहले भी हमारे वालिद और ज्ञानदास ने कोशिश की थी, मगर इसमें राजनीति होती रही।

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