उमा लिखती हैं, उत्तराखंड के लोग अखबार बहुत पढ़ते हैं, उन्हें मेरे गंगा प्रवास की पहले से ही जानकारी है, इसलिए मुझे देखकर खूब खुश होते हैं तथा चाय पीने के लिए अपने-अपने ढाबे पर रोकते हैं, मैं बिल्कुल परमानंद में हूं, जय गंगा मैया...
जनज्वार। जब पूरे देशभर में राजनेता खासकर भाजपा नेता कुछ राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों में व्यस्त रहे, वहीं भाजपा की फायरब्रांड नेता नहीं उमा भारती चुनाव प्रचार से दूर उत्तराखण्ड के गंगोत्री प्रवास पर हैं। कुछ लोग उनके प्रवास को उनके राजनीति से दूर होने का संकेत मान रहे हैं।
उमा भारती ट्वीटर के जरिये अपने गंगोत्री प्रवास की सूचनायें साझा कर रही हैं। उन्होंने आज 21 अक्टूबर को दिन में साढ़े तीन बजे ट्वीट किया है, 'परसों मैंने ट्विटर के जरिए आप सबको गंगोत्री से अपने गंगा प्रवास शुरू करने की सूचना दी थी। उसके बाद 2 दिन मैं बहुत गहरी घाटी में थी जहां से फोन नहीं लग पा रहा था।'
वहीं एक अन्य ट्वीट में उमा लिखती हैं, 'मेरे भोपाल ऑफिस ने मुझे जानकारी दी है कि कुछ लोग मेरे साथ गंगा प्रवास पर रहने के लिए आना चाहते हैं, साथ ही कुछ लोगों ने मेरे प्रवास की व्यवस्थाओं की चिंता व्यक्त की है। मैं दोनों के क्रमशः उत्तर देती हूं।'
उमा भारती ने फिर से ट्वीट किया है, 'गंगोत्री से लगभग भटवारी तक कोई भी गांव रोड पर नहीं है सिर्फ छोटे-छोटे ढाबे हैं, जहां सीमित मात्रा में चाय या भोजन मिल सकता है। मैं परसों राणा जी नाम के एक किसान की झोपड़ी में रही, जो उन्होंने सेब के बगीचे में रखवाली के लिए बनाई हुई है।'
उमा ने फिर ट्वीट किया है, 'पति-पत्नी ने पुष्प वर्षा करके मेरा स्वागत किया तथा गोबर से लिपी-पुती हुई झोपड़ी में हल्की-सी आग जलाकर रोशनी का इंतजाम किया। मुझे ऐसा लगा जैसे उन्होंने मुझे स्वर्ग में रखा है। मेरे साथ करीब 10 लोग जिसमें मेरे सुरक्षाकर्मी, मेरे निजी सहयोगी तथा डोली वाले शामिल हैं। अभी तक हमें इतनी लोगों की व्यवस्था करने में भी कठिनाई हो रही है।'
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उमा लिखती हैं, 'मैंने अभी तक लगभग 60 किलोमीटर की दूरी तय की है, जिसमें से 10 किलोमीटर की दूरी डोली में बैठकर करना पड़ा है। आप सबको पता ही है कि 1996 की दुर्घटना में मेरे दोनों घुटनों को काफी नुकसान पहुंचा था, जो अब तक पूरे तरीके से ठीक नहीं हो पाया है। मैं सपाट एवं उतार वाली सड़क पर पैदल चलती हूं, फिर जैसे ही चढ़ाई की सड़क आती है, मैं डोली में बैठ जाती हूं। इस दौरान मैं गाड़ी का प्रयोग नहीं कर रही हूं। गंगा के किनारे अकेले बहुत आनंद में चलती आती हूं।'
उमा भारती अपने समर्थकों से आग्रह करते हुए लिखती हैं, 'जो लोग मेरे साथ प्रवास में शामिल होना चाहते हैं, उन्हें उत्तरकाशी के बाद भैयादूज के बाद मेरे ऑफिस के लोग सूचना देंगे, क्योंकि उत्तरकाशी से देव प्रयाग तक भी रुकने की व्यवस्थाओं में भारी अड़चन होगी, इसलिए सबको मेरे देवप्रयाग पहुंचने की प्रतीक्षा करनी होगी। यह मेरे जिंदगी के सबसे खुशनुमा दिन है मुझे आप सबका आशीर्वाद एवं सहयोग चाहिए। मैं ट्वीटर के माध्यम से आपसे संपर्क बनाए रखूंगी।'
उमा भारती अपने गंगोत्री पहुंचकर वहां के अनुभवों को साझा करते हुए लिखती हैं, 'मैं जहां भी पहुंच जाती हूं, वहीं पर रात में आसपास के ढाबे वाले या सेब की खेती करने वाले किसान मुझे खूब प्रेम से भोजन कराते हैं और रखते हैं। आपको जानकारी दे रही हूं कि उत्तराखंड के लोग अखबार बहुत पढ़ते हैं। उन्हें मेरे गंगा प्रवास की पहले से ही जानकारी है, इसलिए मुझे देख कर खूब खुश होते हैं तथा चाय पीने के लिए अपने-अपने ढाबे पर रोकते हैं। जिले के प्रशासन ने भी नियमानुसार मेरी सभी सुविधाओं की व्यवस्था की है। मैं बिल्कुल परमानंद में हूं। जय गंगा मैया।'