Begin typing your search above and press return to search.
राजनीति

टांय टांय फिस्स हुआ राम मंदिर आंदोलन

Prema Negi
27 Nov 2018 10:21 AM IST
टांय टांय फिस्स हुआ राम मंदिर आंदोलन
x

यह धर्मसंसद नहीं राजनीतिक संसद थी जिसका एकमात्र मकसद मोदी की नकारा प्रधानमंत्री की बनती छवि को दुरुस्त करना और फिर से 2019 में प्रधानमंत्री पद पर काबिज करवाना था....

जनज्वार। विहिप की धर्मसभा, शिवसेना का शक्ति प्रदर्शन और संघ की मंदिर के नाम पर की जाने वाली चालबाजी अपने स्तर पर पूर्ण असफल रही। देश—प्रदेश की जनता ने पूरे तौर पर इस फसादी प्रयास को सिरे से नकार दिया। इससे साबित होता है कि लोग भाजपा की जुमलेबाजी से उब चुके हैं और मंदिर—मस्जिद की लड़ाई उनके लिए रोटी और रोजगार से बड़ी नहीं है।

अन्यथा उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से लेकर देश के प्रधानमंत्री मोदी ने धर्मसभा के नाम पर जुटी इस फसादी भीड़ को उकसाने की खूब कोशिश की। प्रधानमंत्री ने छत्तीसगढ़ से चुनावी रैली को संबोधित करते हुए मंच से कहा कि मंदिर न बनने देने में सबसे बड़ा रोड़ा कांग्रेस है। कांग्रेस अदालत के नाम पर डराती रहती है।

वरिष्ठ पत्रकार दिलीप मंडल धर्मसभा के फेल होने पर व्यंग्य करते हुए लिखते हैं, 'संपादक और एंकर लोग आज बहुत निराश हैं। फ्रस्टू हो रहे हैं कुछ हुआ ही नहीं।'

रिहाई मंच के नेता राजीव यादव कहते हैं, इस जमावड़े को टांय टांय फिस्स ही होना था क्योंकि काठ की हांडी बार बार नहीं चढ़ती। वैसे भी यह विहिप—शिवसेना बनाम बीजेपी के आपसी झगड़े का नंगा नाच था।

गौरतलब है कि 25 नवंबर को आयोजित धर्मसभा में विश्व हिंदू परिषद ने दावा किया था कि इसमें कम से कम 2 लाख लोग राम मंदिर के समर्थन में हिस्सेदारी करेंगे, मगर यह दावा सिर्फ दावा ही रह गया। साथ ही भाजपा यहां हिंदू बहुल विधानसभा में कोई ऐसा संदेश भी प्रसारित नहीं कर पाई कि लोग उत्तेजित—आंदोलित हों। जो लोग मंदिर समर्थन में शामिल भी हुए वे भी 'पहले मंदिर फिर सरकार' के नारे लगा रहे थे।

से ताल ठोककर आए शिवसेना प्रमुख ने तो यहां और भी मुंह की खाई। बिहार—यूपी के लोगों ने उन्हें सिरे से नकार दिया। हालांकि शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने एक दिन पहले आकर सभी का ध्यान अपनी तरफ़ खींचा, मगर समर्थन में 5 हजार की भीड़ भी न जुट पाना साफ करता है कि लोग अब मंदिर—मस्जिद के झांसे में आने वाले नहीं हैं। स्थानीय पत्रकारों के मुताबिक हजारों शिवसैनिक पहले दिन ही वापस लौट गए।

धर्मसभा को कवर करने पहुंचे वरिष्ठ पत्रकार विश्वदीपक कहते हैं, 'यह धर्मसंसद नहीं राजनीतिक संसद थी जिसका एकमात्र मकसद मोदी की नकारा प्रधानमंत्री की बनती छवि को दुरुस्त करना और फिर से 2019 में प्रधानमंत्री पद पर काबिज करवाना था। चित्रकूट के संत रामदास भद्राचार्य ने कहा मेरी मोदी सरकार के कुछ स्तरीय मंत्रियों से बात हो गई है और मोदी जी 11 दिसंबर को कुछ न कुछ करेंगे।'

विश्वदीपक आगे कहते हैं, 'विहिप—शिवसेना—आरएसएस ने 2 लाख लोगों के पहुंचने का दावा किया था, मगर वहां 50 हजार लोग भी नहीं पहुंचे। जाहिर है कि इन संगठनों द्वारा की गई महीनों की मेहनत काम न आई लेकिन मंदिर बनाने को लेकर देशभर में एक सनसनी फैलाने में ये लोग जरूर कामयाब हुए। ये सारी कारगुजारी सिर्फ इसलिए की गई क्योंकि राफेल, सीबीआई, आरबीआई, सीजेआई, नोटबंदी से लेकर अपने अपने हर वादे पर फेल हो रहे मोदी को फिर से एक सशक्त मोदी दिखाया जाए।'

संतों ने सुप्रीम कोर्ट की खूब ऐसी—तैसी की। सुप्रीम कोर्ट के जजों को संतों ने खुलेआम माइक पर गालियां बकीं। जजों पर सांप्रदायिक और जातिवादी टिप्पणियां कीं। पर इस बात को तो न मीडिया ने कायदे से उठाया और न ही किसी पार्टी ने सवाल के तौर पर इसे महत्वपूर्ण माना।

जनता को मंदिर नहीं रोजगार चाहिए

राम मंदिर आंदोलन के नाम पर जुटा यह जमावड़ा तब फेल हो गया जबकि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री महीनों पहले जनता को आश्वस्त कर चुके थे कि मंदिर बनकर रहेगा, धैर्य रखो। जून 2018 के अंत में महंत नृत्यगोपाल दास के जन्‍मदिन पर अयोध्‍या में आयोजित संत सम्‍मेलन में हिस्‍सा लेने पहुंचे उत्‍तर प्रदेश के मुख्‍यमंत्री योगी आदित्‍यनाथ ने संत समाज से अपील की थी कि, 'वे कुछ दिन तक धैर्य रखें, भगवान राम की कृपा होगी तो अयोध्‍या में राम मंदिर जरूर बनेगा। इसमें कोई संदेह नहीं होना चाहिए। संवैधानिक दायरे के अंदर रहकर काम करना है इसलिए धैर्य जरूरी है।'

उत्तर प्रदेश के शिक्षक नेता राजेश चंद्र मिश्रा कहते हैं, 'सरकारें इसे सिर्फ राजनीतिक तौर पर इस्तेमाल करती हैं इसलिए यह फेल हो गया। जनता अब चीजों को समझ—देख रही है इसलिए अब वह और झांसे में नहीं आने वाली है।'

शिवसैनिकों को भगाते फैजाबाद के लोग

Next Story

विविध