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आंदोलन

आमरण अनशन पर बैठी इंटार्क महिला मजदूरों पर उत्तराखण्ड पुलिस ने बरसाईं लाठियां

Prema Negi
4 Dec 2018 3:15 PM GMT
आमरण अनशन पर बैठी इंटार्क महिला मजदूरों पर उत्तराखण्ड पुलिस ने बरसाईं लाठियां
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अपनी मांगों के लिए आमरण अनशन कर रही महिलाओं ने कहा हमें आखिरी समय पर स्थानीय भाजपा विधायक राजकुमार ठुकराल के आवास पर मरने के लिए छोड़ दिया जाये। उसके बाद हमारी मृत देह को पूरे हल्द्वानी शहर में घुमाकर भूतपूर्व मुख्यमंत्री और वर्तमान भाजपा सांसद भगत सिंह कोश्यारी के आवास पर जलाया जाए...

जनज्वार, रुद्रपुर। उत्तराखण्ड के रुद्रपुर स्थित इंटार्क के मजदूर अपनी कई मांगों के लेकर पिछले 4 माह से संघर्षरत हैं। उत्तराखण्ड सरकार उनकी मांगों को मानने के बजाए पूंजीपतियों के साथ खड़ी है और हर तरह से आंदोलन का दमन करने में लगी है।

ये मजदूर पिछले चार माह से कम्पनी द्वारा की जा रही अवैध कटौती और निलम्बन के खिलाफ संघर्ष कर रहे हैं। श्रम आयुक्त के मुताबिक वार्ता के दौरान यह वैध नहीं माना गया, फिर भी सरकार मालिक पर कोई कार्यवाही करने के बजाए मजदूरों का ही दमन करने पर उतारू है।

अब ये मजदूर सड़क पर उतरने को बाध्य हो गए हैं। 23 नवंबर से मजदूर अपने माता-पिता, पत्नी और दुधमुंहे बच्चों के साथ कंपनी के रुद्रपुर और किच्छा गेट पर धरना देकर बैठे हुए हैं। 28 नवंबर से इनका आमरण अनशन शुरू हो गया है।

अनशनकारी अखिलेश, निहारिका और जरीना बेगम ने पूरे देश की जनता के नाम पर एक मार्मिक अपील की है कि 'हमें आखिरी समय पर स्थानीय भाजपा विधायक राजकुमार ठुकराल के आवास पर मरने के लिए छोड़ दिया जाये। उसके बाद हमारी मृत देह को पूरे हल्द्वानी शहर में घुमाकर भूतपूर्व मुख्यमंत्री और वर्तमान भाजपा सांसद भगत सिंह कोश्यारी के आवास पर जलाया जाए।'

आमरण अनशन पर बैठे मजदूरों की तरफ से 30 नवंबर को यह पत्र मोदी जी को भी भेजा गया है। इसी में जिक्र किया गया है कि कंपनी के मैंनेजर मनोज रोहिल्ला और वर्मा कहते हैं कि उनके सीधे अरुण जेटली और भाजपा से संबंध हैं।

इसी कड़ी में शनिवार 1 दिसम्बर को दोपहर में पुलिस ने मजदूरों, महिलाओं और बच्चों के ऊपर किच्छा में हमला कर दिया। पुरुष पुलिसकर्मियों ने महिलाओं को लाठी से पीटा, कपड़े फाड़े, रोते हुए बच्चों को छीनकर अलग कर दिया। अगले दिन 2 दिसंबर को पूरे सिडकुल में जारी श्रम कानूनों के उल्लंघन एवं सरकार पूजीपति गठजोड़ के खिलाफ एक मजदूर महापंचायत का आह्वान किया गया था।

इस महापंचायत में भारी संख्या में सिडकुल के मजदूरों और महिलाओं ने भागीदारी की। आंदोलनरत मजदूरों के मुताबिक हमारे आंदोलन से बौखलाए शासन-प्रशासन ने अब आंदोलन का दमन करने के लिए ‘माओवाद’ के नाम पर एक नया शिगूफा छेड़ा है। इस काम में पूंजीवादी मीडिया भी पूरी बेशर्मी के साथ शासन-प्रशासन के साथ खड़ा है।

हमारे मजदूर नेताओं पर फर्जी मुकदमे लगाकर सरकार आंदोलन को कुचलना चाहती है। इन सबके बावजूद मजदूर पीछे हटने को तैयार नहीं है। महिलाएं उनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर हर दमन का सामना करते हुए डटी हुई हैं। वो अपने जुझारू तेवरों से सिडकुल के इतिहास में नयी इबारत लिख रहे हैं।

मजदूर कहते हैं एक बात बिल्कुल साफ है कि सारे राज्यों और केन्द्र सरकार श्रम कानूनों का पालन करने के लिए तैयार नहीं है। चाहे समान कार्य का समान वेतन हो या 12 माह चलने वाले कार्यों के लिए स्थाई नौकरी की कानूनी बाध्यता। उत्तराखण्ड के सिडकुल में भी श्रम कानूनों की सरेआम धज्जियां उड़ायी जा रही है।

आंदोलनरत मजदूर कहते हैं पूंजीपतियों द्वारा जारी लूट पर शासन-प्रशासन धृतराष्ट बना हुआ है। हर जगह से परेशान मजदूर जब खुद अपने संघर्षों को लड़ रहा है, तो उस पर ‘माओवाद’ का ठप्पा लगाकर उसकी आवाज को दबाने की कोशिशें की जा रही हैं। ऐसे में हम उत्तराखण्ड सरकार से मांग करते हैं कि वो आंदोलन का दमन करने और माओवाद-माओवाद चिल्लाने के बजाए इंटार्क सहित उत्तराखण्ड में चल रहे सभी मजदूर आंदोलनों की न्यायपूर्ण मांगों को जल्द से जल्द पूरा करें। साथ ही हम छात्रों-नौजवानों और न्यायप्रिय जनता से अपील करते हैं कि वो इंटार्क के मजदूरों का साथ देते हुए उत्तराखण्ड सकार की मजदूर विरोधी नीतियों का मुंहतोड़ जवाब दें।

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