शिक्षा सुधार पर लेख लिखने के कारण लेखक कौशलेंद्र प्रपन्ना को महिंद्रा वालों ने किया बेइज्जत, सदमे में पहुंचे आईसीयू
प्रताड़ना और अपमान से बुरी तरह टूट चुके कौशलेन्द्र को दिल का दौरा पड़ा। अभी वे दिल्ली के अस्पताल के ICU में हैं। शिक्षक दिवस यानी 5 सितंबर से लेकर आज तक यानी पिछले पांच दिन से वेंटीलेटर पर जिंदगी और मौत के बीच झूल रहे हैं...
दीपक कुमार, वरिष्ठ पत्रकार
आज आप यह सुनकर दुख जताएंगे, शोक मनाएंगे या रूदाली गाएंगे! पेशे से शिक्षक, पत्रकार, शिक्षा में नए प्रयोग करने वाले व्यक्ति और चिंतक #Kaushlendraprapanna कौशलेंद्र प्रपन्न इस भ्रष्ट, निर्लज्ज और संवेदहीन सिस्टम का शिकार होकर हमारे शहर के एक अस्पताल में जिंदगी और मौत के बीच पिछले पांच दिन से जूझ रहे हैं, कसूर जानिएगा? उनका कसूर था एक लेख जिसे पिछले 25 अगस्त को उन्होंने जनसत्ता के संपादकीय पेज पर लिखा था "शिक्षा: न पढ़ा पाने की कसक"
उन्होंने यह लेख क्या लिखा, MCD के स्कूल प्रशासक और दिल्ली टेक महिन्द्रा फ़ाउंडेशन की मानो चूलें हील गईं। इस लेख में उन्होंने नगर निगम के स्कूलों के काबिल और उत्साही शिक्षकों की पीड़ा की चर्चा की थी. उनका कहना था कि आजकल शिक्षक चाह कर भी स्कूलों में पढ़ा नहीं पा रहे हैं। पठन-पाठन के अलावा, शिक्षकों के पास ऐसे कई दूसरे सरकारी काम होते हैं. इससे उनकी शिक्षा में कुछ नए प्रयोग करने की प्रक्रिया थम सी जाती है।
आप उनका लेख पढ़िए, बहुत शानदार लिखा है। यह हर एक जागरूक नागरिक की आंखें खोलने वाला है, लेकिन एमसीडी और एनडीएमसी के प्रशासकों को शिक्षा, शिक्षक और बच्चों के प्रति उनका यह नज़रिया नहीं सुहाया।
इसी लेखक ने पहुंचाया कौशलेंद्र प्रपन्ना को आईसीयू
इस पर कुछ और बताने की ज़रूरत नहीं है। सब जानते हैं कि निगम के इन स्कूलों में एजुकेशन सिस्टम की बागडोर किसके हाथ में है और किसके इशारे पर चलते हैं। बस, फिर क्या था? टेक महेंद्रा फ़ाउंडेशन के मैनेजमेंट पर प्रेशर बनाकर 27 अगस्त को उनसे इस्तीफ़ा ले लिया। उनकी असीम मेहनत और चमत्कारी नतीजों पर पानी डाल दिया गया।
उनके लेख से डरे निगम और NDMC के दफ़्तर ने पहले टेक महिंद्रा फाउंडेशन को धमकाया। असर यह हुआ कि फाउंडेशन के अफसरों ने दिल्ली ऑफिस में कौशलेन्द्र को घंटों बेइज्ज़त किया और मानसिक प्रताड़ना दी। चाइल्ड एजुकेशन से जुड़े उनके एक-एक कर कई पुराने लेखों को खोद-खोद कर निकाला गया और उन्हें लताड़ा गया।
प्रताड़ना और अपमान से बुरी तरह टूट चुके कौशलेन्द्र को दिल का दौरा पड़ा। अभी वे दिल्ली के अस्पताल के ICU में हैं। शिक्षक दिवस यानी 5 सितंबर से लेकर आज तक यानी पिछले पांच दिन से वेंटीलेटर पर जिंदगी और मौत के बीच झूल रहे हैं।
पिछले पांच साल से टेक महिंद्रा फ़ाउंडेशन में वाइस प्रेसीडेंट, एजुकेशन की जिम्मेदारी संभालने वाले प्रपन्ना पेशे से एक शिक्षक थे और आए दिन अखबारों के लिए लिखते थे। कई किताबें भी लिखीं।
साल 2008-09 के दौरान टाइम्स ग्रुप के हिंदी बिजनेस डेली इकोनॉमिक टाइम्स में भी काम किया। खबर के साथ लगी तस्वीर तभी की है। बीते साढ़े पांच साल से टेक महिंद्रा फ़ाउंडेशन के साथ काम कर रहे थे। पूर्वी दिल्ली के नगर निगम द्वारा संचालित स्कूलों में केवल मूलभूत सुविधा ही नहीं, शिक्षकों की ट्रेनिंग पर भी बेहतरीन काम किया। उनके काम की तारीफ हर साल की रिपोर्ट में होती थी।
इकोनॉमिक टाइम्स में काम करने के दौरान साथियों के साथ कौशलेंद्र प्रपन्ना
देशभर के अलग-अलग स्कूलों में जाकर वहां शिक्षा में नए प्रयोग से जुड़ा अपना नज़रिया बताना, बच्चों को नए तरीके से पढ़ाई के लिए प्रति प्रेरित करना उनका मुख्य काम था। इस क्रम में उन्हें कई दफ़े विदेश से भी बुलावा आया।
इस लेख के कारण प्रसन्ना हैं आईसीयू में — शिक्षा: न पढ़ा पाने की कसक
मैं जहां तक जानता हूं कौशलेंद्र भाई, तमाम दीगर परिस्थितियों में भी पूरी जीवटता के साथ अपने काम में लगे हुए रहते थे। बच्चों की पढ़ाई और शिक्षकों के साथ एक बेहतर ताल-मेल, समन्वय कैसे बने ये उनकी चिंता में हमेशा ही रहता था। बहरहाल, निरंतर पतन की तरफ जाती इस सिस्टम से हम क्या उम्मीद करें, लेकिन दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग एकजुट होकर ज़रूर कर सकते हैं। भाई, जल्द स्वस्थ होकर लौटेंगे ये भरोसा है।
शिक्षा के क्षेत्र में काम करने वाले मित्ररंजन कहते हैं, अभी कौशलेंद्र प्रपन्ना आईसीयू में हैं। उनके भाई जिनसे पहले मेरा कोई सीधा परिचय नहीं रहा है, फोन पर बात हुई तो पता चला कि इंफेक्शन ज्यादा होने के कारण किसी को मिलने की इजाजत नहीं है। एक स्टेंट लगा है और फेफड़ों में पानी भरा है। ये तो खैर उनके स्वास्थ्य के लिए लोग लगे हैं, लेकिन टेक महेंद्रा के लोगों ने जिस तरीके से उनको अपमानित करके निकाला वो जेहन से जा नहीं रहा। कौशलेंद्र जी ने आरटीई पर अध्यापकों, प्रधानाचार्यों की ट्रेनिंग के सिलसिले में, बच्चों की सुरक्षा, उनके अधिकारों पर संवाद के लिए कई बार मुझे या हमारे साथियों को बुलाया और हम सिर्फ उनकी वजह से गए भी। क्योंकि वो हमेशा ही कुछ नए प्रयोगात्मक तरीके से बातचीत का प्रस्ताव रखते रहे। टेक महिंद्रा जैसे संस्थानों को सबक जरूर मिलना चाहिए।
(वरिष्ठ पत्रकार दीपक कुमार दिसंबर, 2018 में हिंदी बिजनेस डेली इकोनॉमिक टाइम्स हिन्दी 11 साल के बाद छोड़कर Google, Localisation टीम से जुड़ गये हैं।)