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संस्कृति

भूपेंद्र सिंह का व्यंग्य 'मातम'

Janjwar Team
27 April 2018 11:53 AM GMT
भूपेंद्र सिंह का व्यंग्य मातम
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सभी लोग आश्चर्य और घृणा से मुझे देखने लगे जैसे मेरे दोस्त के भाई की मौत का कारण मैं ही हूँ। सारे बुरे कामों का सरगना मैं ही हूँ क्योंकि मेरी दाढ़ी में सफेद बाल है...

भूपेंद्र सिंह, युवा कहानीकार

आज सुबह बहुत देर से सोकर उठा। मौसम में आलस था। सूरज भी बहुत धीरे-धीरे आगे बढ़ रहा था। शायद कोई उसकी टांग से टांग अड़ा रहा था। एक लम्बी सी अंगड़ाई तोड़ी और शीशे में थोबड़ा देखा। हालत का बैंड बजा हुआ था। जो चेहरा कभी सुंदरता के घमंड में चूर था, लड़कियां अपनी जान छिड़की थीं यहां तक कि नई-नवेली बहुएं भी उस सुंदरता की तारीफ किए बगैर नहीं रह पाती थीं।

काले कपड़ों में तो मेरी सुंदरता में चार चाँद लग जाते थे। बापू ने काले कपड़े पहनने से मना कर दिया था। आज उसी सुंदर चेहरे पर झुर्रियों का राजपाट था। आँखें अंदर धंस गई, दाढ़ी में दो-चार सफेद बाल तांक-झांक कर रहे थे। थोबड़े को देखकर लगा जैसे बीवी रूठकर मायके भाग गई हो। सब्र का बांध टूटकर पानी पुल के ऊपर से जा चुका था।

मुझे नहीं पता था ये सफेद बाल इस तरह नाक कटवाएंगे। हुआ यूँ कि घर से बाहर जाने पर पता चला कि दोस्त के यहां जवान मौत हो गई है। औरों की तरह मैं भी वहां जल्दी से पहुंचा। घर में मातम छाया हुआ था। लोग परिवार वालों को ढांढस बंधा रहे थे। मैंने भी अपने दोस्त को ढाँढस बंधाना चाहा, पर वह तो बेसुधी की हालत में पड़ा हुआ था।

उसके डिपार्टमेंट के आदमी पास बैठकर आपस में बातें कर रहे थे। वहीं पर एक सज्जन अपने बॉस के सामने अपनी कामयाबी के पुल बांध रहा था, 'सर, आप लोगों के आशीर्वाद से ही तो मैं आज इस मंजिल पर पहुंचा हूँ, समझे नहीं आप। ये देखो मेरे फोटो, और ये मेरे फलां साल के फोटो।'

'अरे! इसमें तो आपका भी है सर, आप उस समय ऐसे लगते थे।'

'अरे! तू तो बड़े काम की चीज है, पुरानी यादें साथ लिए घूमता है।'

सज्जन पुरुष ने दांत निपोरते हुए बॉस के पैरों को छुआ और मुस्कुराते हुए कहा, 'समझे नहीं सर आप, ये सब आपका ही तो आशीर्वाद है' और इसके बाद सज्जन पुरुष के चेहरे पर खुशी के मारे खूबसूरत लड़की की तरह लाली छा गई। उसने फिर अपने फोटो दूसरे लोगों की तरफ बढ़ा दिए।

मुझे भी फोटो देखने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। आखिर मैं पीछे क्यों रहूँ। एक कामयाब आदमी की धरोहर के दर्शन जो हो रहे थे! अहो भाग्य मेरे, जो पहली बार किसी कामयाब आदमी के दर्शन हुए।

सज्जन ने अपनी कामयाबी का सारा बखिया उधेड़ दिया। 'ये देखो, मैं आजकल ऑफिस की फाइल इस तरह बनाता हूँ।' सभी को बातों में मजा आ रहा था।

अचानक बॉस उसके सुंदर बैग का जिक्र कर बैठे। 'अरे क्या बात कर दी सर आपने! यह बैग तो मैं कल ही लाया हूँ। आप लेना चाहो तो ले लो। समझे नहीं सर आप, समझे नहीं मेरी बात! महीने में 35 से 40 हजार कमा लेता हूँ, समझे नहीं! अच्छा बताओ तो कितने रुपए का लाया हूँ मैं। छूकर तो देखो जरा।'

सभी की समझ इस कामयाब सज्जन हीरो के सामने जीरो थी। कोई नहीं बता पाया और साथ में एक गलती भी कर बैठे, उसके बैग को किसी ने नहीं छुआ। वह बड़ी चतुराई से फाइलों को समेटते हुए बोला, 'हा-हा-हा 800 रुपयों का लाया हूँ, और अपने दर्द को पी गया।'

सज्जन के दिल में चोट पहुंची। दुःख मुझे भी बहुत हुआ, आखिर क्यों न हो, लोग कहते हैं - अगर कामयाब आदमी का कपड़ा भी छू जाए तो अपने को कामयाब समझो। मैं उन सब को मन ही मन कोस रहा था, मूर्ख हैं ये लोग, अज्ञानी हैं ये, लगता है कामयाब नहीं होना चाहते। बैग को छू लेते तो क्या इनके पितृ-देवता नाराज हो जाते।

अकेले की हिम्मत नहीं हो रही थी बैग छूने की, क्योंकि वह भी अब घायल हुए शेर की तरह था, कहीं डांट न दे। इज्जत-बेइज्जती का सवाल भी सताए हुए था। दुःख था मेरी कामयाबी रुकने का, सोचने लगा कब ये लोग यहां से उठकर जाएं और सज्जन इस बैग को यहीं भूल जाए। इसे तो फिर से छाती से लगाकर ही दम लूँ।

थोड़ी ही देर में एक भाई साहब मुझे अपने काम से बाहर ले जाने लगे। जाते-जाते सज्जन पुरुष के कपड़े से मेरा कपड़ा छू गया। एक पल के लिए विश्वास नहीं हुआ। दिल को बेहद खुशी मिली। निर्मल और सुंदर सुख का अनुभव हुआ। चारों धामों की यात्रा जैसा सुख मिला था। सारे पाप धुलकर बह गए थे।

उठकर चलने वाला आइडिया मुझ अनाड़ी को पहले समझ नहीं आया। किसी के मातम में जाने से भाग्य खुल जाएगा, पता नहीं था। अब तो हर मातम में जाया करुँगा। अब पता चला यहां सज्जन और कामयाब लोग आते हैं।

जिस दोस्त को ढांढस बंधाने गया था, उसे पूरी तरह भूल गया था। बस दिमाग में एक ही सवाल था कामयाबी। कामयाब होना मंजिल बन गई। थोड़ी देर बाद लाश को श्मशान घाट ले जाया गया। लोग झुंड बनाकर आपस में धीरे-धीरे बातें करने लगे।

एक तरफ से आवाज आई, 'इसे मारा गया है। पूरे शरीर पर चोट के निशान थे। सिर भी फटा हुआ था। कितना अच्छा लड़का था यह। इसे शराब पिलाकर मारा गया है।' लोगों के दिलों से दर्द झलक रहा था। लेकिन इन बातों में मुझे कोई दिलचस्पी नहीं थी। मैं तो अपने स्वार्थ की ताक में था कि कब सज्जन पुरुष को दोबारा छूने का मौका मिले, ताकि कामयाबी में कोई कसर बाकी न रह जाए।

मैं उसके पास जा खड़ा हुआ। सभी लोग अपने-अपने अनुभवों की बातें कर रहे थे। कामयाब सज्जन हीरो से भी अपना अनुभव बताए बिना नहीं रहा गया। 'सर, आदमी को शराब कभी नहीं पीनी चाहिए, अगर पीनी हो तो नियंत्रण में पीओ। नशा कभी मत करो, नशा करोगे तो यही हाल होगा। ये बेचारा किसका क्या ले गया, आदमी पानी का बुलबुला होता है। पता नहीं कब फूट जाए, सिर्फ अच्छाई और बुराई पीछे रह जाती है।'

कितने दार्शनिक विचार और कितना अच्छा दिल था सज्जन पुरुष का। उसने मेरे दिल में और अधिक जगह बना ली थी। वह अभी बोलता ही जा रहा था। इसलिए कहता हूँ 'अगर पीना चाहो तो दवाई के तौर पर। जैसे कि मुझे देखो। मैं कभी नशा नहीं करता, सिर्फ एक पैग लेता हूँ, शरीर भी ठीक रहता है। दिनभर की थकान दूर हो जाती है। बहुत सी बीमारियां भी नहीं होती और बाल भी सफेद नहीं होते, आजकल के छोकरों की तरह।'

इतना कहते ही सज्जन पुरुष की नजर मेरी दाढ़ी पर पड़ गई और हड़बड़ाकर बोला-'अरे सर! ये देखो क्या, देखो कांड हो गया।' उसने मेरी ठुड्डी पकड़ ली और उलट-पलट कर दिखाने लगा, 'ये देखो इसकी दाढ़ी में सफेद बाल।'

सभी लोग आश्चर्य और घृणा से मुझे देखने लगे जैसे मेरे दोस्त के भाई की मौत का कारण मैं ही हूँ। सारे बुरे कामों का सरगना मैं ही हूँ क्योंकि मेरी दाढ़ी में सफेद बाल है। शायद पाकिस्तान से आतंकवादी इसी वजह से आ रहे हैं। अमेरिका के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर से जहाज टकराया मेरी वजह से है। भूकंप और बाढ़ का कारण यही है। दुनियादारों में टोटा आएगा, लोग गरीब हो जाएंगे, गंगा-यमुना-सरस्वती का संगम अब नहीं होगा।

मेरा एक पड़ोसी गुड की चाय पीता है और दूसरा दूध खरीदने लायक नहीं है, क्योंकि सुबह उठते ही वे मेरा मनहूस थोबड़ा देख लेते हैं! कहां छिपाऊँ इसे? अगर पहले पता होता, ये सफेद बाल इस तरह नाक कटवाएंगे तो सुबह ही इनका सफाया कर डालता। ये नौबत ही नहीं आती बदनामी की। अब कहां कुएं, जोहड़, नदी, नाले में डूबकर मरूँ।

डिपार्टमेंट के सभी लोग चुप हो गए। उनके दिलों में गहरी चोट पहुंची, क्योंकि असली कांड तो अब हुआ है। बाकी लोगों को पता न लग जाए वहां से भीगी बिल्ली की तरह दुम दबाकर भागा। मुझे सज्जन पुरुष से घृणा होने लगी। अब वह फूटी आंख नहीं सुहा रहा था। पता नहीं था सज्जन लोग दूसरों को नीचा भी दिखा देते हैं।

असल में मेरी ही छाती फटी जा रही थी वरना कभी नहीं कामयाबी के चक्कर में उसके पीछे पड़ता। मैं बुरी तरह घबरा गया, लोगों को पता चले इससे पहले इन बालों का कुछ कर डालना चाहिए। जल्दी से बात को दबा लूँ कहीं मेरे घर पर लोग मातम न मनाने आ जाएं। क्योंकि मैं हर पल मरा जा रहा था इन सफेद बालों की वजह से, घर के सामने आन पड़ी तो पता चला, मातम कितनी बुरी बात है। भगवान करे ये मातम किसी के घर में न हो।

श्मशान घाट से सीधे नाई के पास पहुंचा। दाढ़ी के साथ-साथ मूँछें भी कटवा लीं। कहीं कोई हरामी मूँछों में न छिपा बैठा हो। फिर न कोई कांड हो जाए। पर पीछा कहां छूटना था, तीन दिन बाद दाढ़ी उग आई। फिर ये बेशर्म, बेहया सफेद बाल बारातियों की तरह आ बैठे, जब तक दुल्हन नहीं भेजोगे तो जाएंगे नहीं। लगता है ये मेरी इज्जत को प्याज बांधना चाहते हैं। अबकी बार इनको काला कर दिया, लेकिन तीन-चार दिन बाद इन रंगे सियारों ने अपना रंग दिखा ही दिया।

सारे उपाय और तंत्र-मंत्र फेल हो गए, ओझा, पंडित तक को धूल चटा दी, पर ये बेशर्म टस से मस न हुए। कुछ दिन बाद राह चलते सज्जन पुरुष से मुलाकात हो गई। जी चाहता था उसकी आँखें फोड़ दूँ, वरना यह जले पर नमक छिड़केगा। मैं उससे आँख चुराकर जाने लगा। परंतु वही हुआ, जिसका डर था। उसने रास्ता रोक लिया। मैं मुँह फेरकर खड़ा हो गया, उसने पकड़कर अपनी तरफ घुमा लिया। मैंने हाथों से दाढ़ी को ढक लिया। वह समझ गया यह दाढ़ी क्यों ढक रहा है।

सज्जन हंसकर बोला, सफेद बाल कोई बड़ी बात नहीं है। ये तो मेरे सिर और दाढ़ी में भी हैं। बस फर्क इतना है, मैं इनको छुपाए रहता हूँ मेंहदी लगाकर। लोगों में अपने को चमकाने के लिए ये सब करना पड़ता है। लोगों का ध्यान अपनी तरफ खींचने के लिए। अरे नहीं तो अपने को कौन जाने, यही तो मौके होते हैं लोगों में अपने को ऊँचा उठाने के लिए, क्योंकि ऐसे समय पर लोग ध्यान से बातें सुनते हैं। बस, इसीलिए मैंने तुझे बलि का बकरा बना डाला। समझे मेरी बात।'

सज्जन पुरुष बड़े गर्व से कहकर आगे चला गया। मुझे तो अब सांप सूंघ गया था। कदम नहीं उठ रहे थे आगे बढ़ने के लिए। मुंह पर हाथ चिपकाकर उसे आश्चर्य से देखता रहा।

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