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राजनीति

योगी का राजपूताना राज : बांदा कृषि विश्वविद्यालय में 18 में से 11 'ठाकुरों' की नियुक्ति पर मचा बवाल

Janjwar Desk
11 Jun 2021 10:09 AM IST
योगी का राजपूताना राज : बांदा कृषि विश्वविद्यालय में 18 में से 11 ठाकुरों की नियुक्ति पर मचा बवाल
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यूपी के बांदा कृषि विश्वविद्यालय में एक ही जाति यानी 11 'सिंह' प्रोफेसर नियुक्त होने के बाद मच गया है बवाल

आप सांसद संजय सिंह कहते हैं, आदित्यनाथ जी एक बात साफ़ कीजिये अगर 15 में से 11 भर्ती एक जाति की हुई तो आरक्षण का क्या हुआ? ये तो खुलेआम SC/ST/OBC का हक़ मारा जा रहा है...

जनज्वार ब्यूरो। थोड़े दिन पहले योगी सरकार में शिक्षा मंत्री मंत्री सतीश चंद्र द्विवेदी के भाई को सिद्धार्थ विश्वविद्यालय में गरीबी कोटे से प्रोफेसर बनाने का मामला अभी शांत भी नहीं हुआ है कि यूपी के ही एक अन्य विश्वविद्यालय में हुई नियुक्तियों पर जमकर बवाल मचा हुआ है। यह मामला बांदा कृषि विश्वविद्यालय से जुड़ा हुआ है। सबसे बड़ी बात यह है कि खुद भाजपा के तमाम नेता इस मामले में खुलकर सामने आ गये हैं।

बांदा कृषि विश्‍वविद्यालय में प्रोफेसर पद की नियुक्तियों को लेकर हो रहे बवाल में बीजेपी विधायक बृजेश प्रजापति ने पीएम मोदी को चिट्ठी लिखकर कहा है कि विश्वविद्यालय में आरक्षण से जुड़े नियमों की सीधे-सीधे अनदेखी की गई है। वहीं विपक्ष ने भी इस मुद्दे को लेकर योगी सरकार पर हमले शुरू कर दिए हैं।

गौरतलब है कि कृषि विश्‍वविद्यालय बांदा में प्रवक्‍ताओं के 20 पदों पर वांट निकाला गया था। इसके मुतबिक 18 सामान्‍य और 2 पद पिछड़े वर्ग के लिए पद आरक्षित थे। प्रवक्ताओं के पदों के लिए जो वांट निकला था, उसमें नियुक्ति का रिजल्‍ट 1 जून को निकला। असल बवाल यहीं से शुरू हुआ, क्योंकि सामान्‍य वर्ग में चुने गए 15 प्रोफेसरों में से 11 ठाकुर जाति यानी 'सिंह' थे।

उत्तर प्रदेश के मुखिया चूंकि खुद राजपूत जाति से संबंध रखते हैं, इसलिए बार-बार उन्हें आरोपों के घेरे में लिया जाता है कि उनके मुख्यमंत्री बनने के बाद से प्रदेश में इसी जाति का वर्चस्व कायम हो गया है। यहां भी अब लगातार उन पर विपक्ष के साथ साथ भाजपा में शामिल अन्य जातियां जो उनसे पहले से असंतुष्ट चल रहीं थी, हमलावर हो गयी हैं। मामले को ज्यादा तूल पकड़ते देख कृषि मंत्री सूर्य प्रताप शाही ने इस मामले में जांच का आश्वासन दिया है।

बांदा कृषि विश्वविद्यालय में एक ही जाति यानी 11 'सिंह' प्रोफेसर नियुक्त होने के बाद भाजपा विधायक बृजेश प्रजापति ने प्रधानमंत्री मोदी, राज्‍यपाल आनंदी बेन पटेल और मुख्यमंत्री योगी आदित्‍यनाथ को पत्र लिखकर शिकायत की है कि इन नियुक्तियों में आरक्षण नियमों का पालन नहीं किया गया है, बल्कि खुलेआम धज्जियां उड़ायी गयी हैं।

भाजपा के पूर्व सांसद और कांग्रेस नेता उदित राज ने इस मामले में योगी सरकार को कटघरे में खड़ा करते हुए ट्वीट किया है, 'बांदा कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय ने 15 प्रोफ़ेसर की भर्ती 1 जून को घोषित किया, जिनमें 11 ठाकुर जाति के हैं, जबकि 1 ओबीसी, 1 एससी 1 भूमिहार &1 मराठी शामिल है। हज़ारों साल से जाति ही मेरिट रही है और अभी चालू है।'

आप सांसद संजय सिंह ने ट्वीट किया है, 'मैं बार-बार कहता हूँ "भाजपा दलितों/पिछड़ों की विरोधी इस मामले में भी SC/ST/OBC की नौकरी खा ली गई। आदित्यनाथ जी एक बात साफ़ कीजिये अगर 15 में से 11 भर्ती एक जाति की हुई तो आरक्षण का क्या हुआ? ये तो खुलेआम SC/ST/OBC का हक़ मारा जा रहा है।'

इस मसले पर वरिष्ठ लेखक सुभाष चंद्र कुशवाहा कहते हैं, 'बाँदा विश्वविद्यालय में असिस्टेंट प्रोफेसर, एसोसिएट प्रोफेसर, प्रोफेसर पदों की भर्ती में तय रोस्टर प्रक्रिया को किनारे लगाने के लिए, 40 रिक्त पदों को टुकड़ों में विज्ञापन निकालकर हड़प लिया गया। अलग-अलग तिथियों में भर्तियां दिखाई गयीं। एक में 15 नियुक्त पदों में 11 एक ही जाति के यानी सिंह उपनाम के हैं। 50 प्रतिशत आरक्षित की बात ही छोड़िए। यह एक उदाहरण है। ऐसे ही हर विश्वविद्यालय में हो रहा है। पीएचडी आदि की तो बात मत कीजिए। बहुत करीब से देखा हूँ इंटर थर्ड डिविजनर को एमएससी में टॉप कराते। आप कहते हैं, आरक्षण नहीं होना चाहिए। वह तो हम भी कहते हैं। पहले जाति खत्म कीजिए। नियुक्तियों को केवल परीक्षा के आधार पर कीजिए। इंटरव्यू नहीं। वहां भी वही खेल होता है। जाति देखकर नम्बर। ये जो कुछ दलित, ओबीसी चुने जाते हैं, वह आरक्षण के कारण अन्यथा सभी योग्यताएं सवर्णों के पास रहतीं। अभी आपने बिहार का कटऑफ मार्क्स देखा न? सामान्य के बराबर ओबीसी को रखा गया था। कहीं कोई लाभ नहीं, उल्टे नुकसान क्योंकि ओबीसी उम्मीदवार ज्यादा थे मगर सीटें 27 प्रतिशत में कैद। इस पर आप लोग चुप्पी मत साधिए। कुछ बोलिए। डकैती को डकैती कहिए अन्यथा कैसे साथ निभेगा? हम हर सामाजिक सरोकारों पर बोलें, आपका साथ दें और जब इस देश में दलितों, ओबीसी के साथ खुलेआम भेदभाव हो और आप चुप्पी साध लें तो दोस्ती निभेगी कैसे? देश की आबादी बंटेगी, हम भी बंटेंगे।'

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