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राजनीति

अजय मिश्रा टेनी के खिलाफ एक्शन क्यों नहीं ले रहे पीएम मोदी, कहीं बीजेपी को इस बात की आशंका तो नहीं?

Janjwar Desk
17 Dec 2021 5:54 AM GMT
लखीमपुर खीरी हिंसा Ajay mishra teni
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लखीमपुर खीरी हिंसा के मास्टरमाइंड केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा टेनी। 

UP Election 2022 : केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा टेनी से इस्तीफा लेने का मतबल यूपी में 75 से 80 विधानसभा सीटों पर सियासी खतरा मोल लेना है। इसलिए भाजपा ब्राह्मणों को नाराज करने से बच रही है। संभवत: पीएम मोदी भी टेनी के खिलाफ एक्शन नहीं ले रहे हैं।


यूपी चुनाव में ब्राह्मण वोट कितना अहम पर धीरेंद्र मिश्र का विश्लेषण


UP Election 2022 : लखीमपुर हिंसा ( Lakhimpur Khiri Violence ) के बाद उत्तर प्रदेश की राजनी​ति में भारतीय जनता पार्टी ( BJP ) उलझ गई है। ऐसा इसलिए कि यूपी में चुनावी ( Uttar Pradesh Assembly Election 2022 ) जीत-हार जातीय आधार पर तय होती है, बिना ये समीकरण साधे सत्ता की बैतरनी पार नहीं लगती। चुनाव नजदीक आते ही सियासी दलों ने अपने फॉर्मूले पर काम करना शुरू कर दिया है। पिछले 9 साल से यूपी की सत्ता से बेदखल बीएसपी ने जहां सोशल इंजीनियरिंग के फॉर्मूले के साथ फिर से जोर आजमाइश को तैयार है तो सपा ने परशुराम मूर्ति स्थापना कर ब्राह्मण कार्ड ( Brahmin Card ) खेल भाजपा को घेर लिया है तो कांग्रेस ने सड़क से लेकर संसद तक इस मुद्दे को तूल देकर भाजपा के नाक में दम कर दिए हैं।

विपक्ष ने भाजपा के खिलाफ टेनी को बनाया ढाल

इस बीच लखीमपुर कांड को लेकर सड़क से लेकर संसद तक घमासान मचा है। कांग्रेस, सपा समेत लगभग सभी विपक्षी पार्टियां इस मुद्दे पर केंद्र सरकार को घेर रही हैं। राहुल गांधी अजय मिश्रा टेनी की बर्खास्तगी की मांग कर रहे हैं। उन्होंने लोकसभा में स्थगन प्रस्ताव का नोटिस भी दे दिया है। संसद के दोनों सदनों में विपक्षी सांसद केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा टेनी ( Ajay Mishra Teni ) का इस्तीफा मांग रहे हैं। खासकर बुधवार को टेनी पत्रकारों पर भड़क गए और अपशब्द कहने लगे। इस घटना के बाद से सवाल उठ रहा है कि विपक्ष के विरोध के बावजूद केंद्र सरकार ( Modi Government ) टेनी को मंत्रिमंडल से क्यों बाहर नहीं कर रही है?

सरकार के सामने समस्या यह है कि कुछ दिनों पहले लखीमपुर केस में एसआईटी की रिपोर्ट आई है। इसमें जांच अधिकारी ने कहा कि लखीमपुर के तिकुनिया में हुई हिंसा हादसा या गैर इरादतन की गई हत्या नहीं, बल्कि हथियारों से लैस होकर एक राय होकर गंभीर साजिश के साथ किए गए हत्या के प्रयास की घटना है। कोर्ट ने जांच अधिकारी के मांग पर आशीष मिश्रा के खिलाफ और कड़ी धाराएं लगाई हैं। इसी रिपोर्ट के बाद विपक्ष ने इस मुद्दे को तूल दे दिया है।

नैतिकता बची होती तो कब का इस्तीफा दे चुके होते टेनी

दिल्ली से 500 किलोमीटर दूर लखनऊ में विधानसभा के भीतर भी सपा और कांग्रेस ने जमकर हंगामा किया है। सपा सांसद रामगोपाल यादव ने कहा कि देश में नैतिकता नहीं बची है, बची होती तो पीएम मोदी ( PM Modi ) टेनी कब का इस्तीफा दे चुके हैं। केंद्रीय मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने विपक्ष के विरोध पर कहा जो भी कानून के तहत कार्रवाई होनी चाहिए, वो हो रही है। उसमें किसी को ज्ञान देने की जरूरत नहीं है।

चुनावी जोखिम मोल नहीं लेना चाहती भाजपा

यूपी विधानसभा चुनाव 2022 ( UP Assembly Elections 2022 ) से ठीक पहले भाजपा टेनी को केंद्रीय मंत्री पद से हटाकर ब्राह्मणों ( Brahmin Vote ) के नाराजगी का जोखिम नहीं लेना चाहती। यही वजह है कि टेनी को दिल्ली तलब तो किया गया, लेकिन फिलहाल कोई बड़ी कार्रवाई नहीं की गई है। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या इसका एक मात्र कारण अजय मिश्रा टेनी का ब्राह्मण होना है। ब्राह्मण कार्ड के तहत ही 5 महीने पहले अजय मिश्रा को मंत्रिमंडल में शामिल किया गया था, अब उसी वजह से उन्हें मंत्री पद से हटाने में कठिनाई पैदा हो रही है।

2019 लोकसभा चुनाव में भाजपा को मिला 82% ब्राह्मण वोट

दरअसल, उत्तर प्रदेश में करीब 2 करोड़ ब्राह्मण मतदाता ( Brahmin Voters ) हैं। यूपी के चुनावों में पहले ब्राह्मण वोट का हिसाब लगाएं तो 2014 में यूपी में ब्राह्मण वोट का 72 फीसदी हिस्सा अकेले भाजपा को मिला था। 2019 में यह बढ़कर 82 फीसदी तक पहुंच गया। यही वजह है कि केंद्र की मोदी सरकार ब्राह्मण होने की वजह से अजय मिश्रा टेनी को नहीं हटा पा रही है।

भाजपा को 77 सीटों पर हार का खतरा

उत्तर प्रदेश के 2014 के नतीजे में 77 सीटें ऐसी थीं जहां जीत का अंतर सिर्फ 10 हजार वोट रहा। 10 हजार के मार्जिन से जीत हार तय होने वाली 77 सीटों में 36 सीटें बीजेपी ने जीती थीं। अगर 2 करोड़ मतदाताओं को 403 विधानसभा में बांट दें तो लगभग 50 हजार ब्राह्मण वोटर प्रति सीट पर पड़ता है। ऐसे में जिन्हें ब्राह्मण वोट के लिए मंत्री बनाया गया, उन अजय मिश्रा पर कार्रवाई होती दिखेगी तो संभव है कि ब्राह्मण वोटों की नाराजगी का असर 77 सीट पर पड़ सकता है।

1 दर्जन जिलों में ब्राह्मण मतदाताओं की संख्या 20% से ज्यादा

उत्तर प्रदेश में आप ब्राम्हण वोट को इग्नोर नहीं कर सकते ये अकेले दम पर सरकार तो नहीं बनवा सकते, लेकिन इन्हें दरकिनार कर के भी आप सरकार नहीं बना सकते। सभी दलों के लिए ये सत्ता की चाबी से कम नहीं है यूपी के जातीय समीकरण में करीब 12 फीसदी ब्राह्मण हैं। करीब 1 दर्जन जिलों में इनकी आबादी 20 फीसदी से ज्यादा है। वाराणसी, चंदौली, महाराजगंज, गोरखपुर, देवरिया, जौनपुर, बस्ती, संत कबीर नगर, अमेठी, बलरामपुर, कानपुर, प्रयागराज में ब्राह्मण मतदाता 15 फीसदी से ज्यादा है। यहां किसी भी उम्मीदवार की हार या जीत में ब्राह्मण वोटर्स का रोल अहम होता है।

वोट स्विंग का ट्रैक रिकॉर्ड




पिछले कुछ विधानसभा चुनावों में ब्राह्मण कार्ड और उम्मीदवारों के जीत के ट्रैक रिकॉर्ड को खंगाले तो बीजेपी के 1993 में 17 विधायक, 1996 के चुनाव में 14, 2002 में 8 विधायक, 2007 में 3 और 2012 में 6 ब्राह्मण विधायक जीतकर विधानसभा पहुंचे। 2017 में भी करीब 44 विधायक ब्राह्मण जाति से चुनकर विधानसभा पहुंचे। सपा की बात करें तो 1993 में 2 विधायक, 1996 में 3, 2002 में 10 विधायक, 2007 में 11 और 2012 में 21 ब्राह्मण चेहरे जीतकर विधानसभा पहुंचे। 2017 में भी सपा ने 10% ब्राह्मणों को टिकट दिया था। कांग्रेस के 1993 में 5 विधायक, 1996 में 4, 2002 में 1, 2007 में 2 और 2012 में 3 ब्राह्मण विधायक जीतकर विधानसभा पहुंचे थे। 2017 में कांग्रेस ने 15% ब्राह्मण उम्मीदवारों को टिकट दिया था। बीएसपी से 1993 में एक भी विधायक ब्राह्मण जाति से नहीं था लेकिन 1996 में 2, 2002 में 4 विधायक, फिर 2007 के चुनाव में बीएसपी ने अपने सियासी फार्मूले में ब्राह्मणों को ऐसा फिट किया जिसकी बदौलत उसके 41 विधायक चुन कर आए और 206 सीटों के साथ बीएसपी पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता पर काबिज हुई।

सपा तक का भगवान 'परशुराम कार्ड'

समाजवादी पार्टी ने ब्राह्मणों को अपने पाले में लाने के लिए 2019-20 में 57 जिलों में कार्यक्रम किए। महामारी के कारण यह कार्यक्रम बंद हो गया था। करीब 22 जिलों में परशुराम की मूर्तियां भी स्थापित की जा चुकी हैं। सत्ता तक पहुंचाने में ब्राह्मणों की अहम भूमिका को देखते हुए एसपी ने उनके लिए विपक्ष में रहते हुए बहुत कुछ किया है। सपा ने लखनऊ में 108 फीट की परशुराम की प्रतिमा लगाने का वादा किया तो जवाब में मायावती ने कहा कि जब प्रदेश में बीसपी की सरकार आएगी तो ब्राह्मणों के देवता परशुराम की सबसे बड़ी मूर्ति बनवाएंगी। यही नहीं पार्क और अस्पताल के नाम भी परशुराम के नाम पर करने का ऐलान कर दिया।

सत्ता पहुुंचाने में भूमिका अहम

यूपी में सत्ता तक पहुंचाने की हो या केंद्र में सरकार बनाने की ब्राह्मणों की भूमिका हमेशा से अहम रही है। 2007 ब्राह्मणों का साथ मायावती को मिला तो सरकार बनी। इन्हीं के कारण 2012 में एसपी की सरकार बनी। 2014 केंद्र में मोदी और 2017 में योगी की सरकार बनवाने में ब्राह्मणों का काफी अहम रोल है। 2019 में में भी मोदी सरकार बनवाने में ब्राह्मणों ने अहम भूमिका निभाई। इसीलिए सभी सियासी दल इनके नजदीक जाने में जुटे हैं। योगी मंत्रिमंडल में संख्या के लिहाज से ब्राह्मणों की कम भागीदारी को भी ब्राह्मणों की नाराजगी से जोड़ा जा रहा है। बीजेपी ने इसके काट के लिए ब्राह्मणों की उपेक्षा को लेकर मोर्चा बनाने वाले कांग्रेस के जितिन प्रसाद को अपने पाले में लाकर डैमेज कंट्रोल की कोशिश की है, लेकिन इस बार के केंद्रीय मंत्रिमंडल के विस्तार में बीजेपी ने ओबीसी और एससी पर ही फोकस किया और यूपी से ब्राह्मण चेहरे के नाम पर सिर्फ एक अयज मिश्र को मंत्रिमंडल में जगह दी गई। बीएसपी इसी नाराजगी का लाभ उठाने में जुटी है।

उपेक्षा को भाजपा के खिलाफ विपक्ष ने बनाया मुद्दा

एक बार विधानसभा चुनाव 2022 में मायावती ने ब्राह्मण कार्ड खेलने की तैयारी कर ली है। मायावती की रणनीति में टिकट बंटवारे में ब्राह्मणों को खास तवज्जो दी जाएगी। 2007 के चुनाव में 55 से ज्यादा ब्राह्मणों को टिकट दिया गया था, ब्राह्मणों ने भी बीएसपी के पक्ष में बंपर वोट किया और 41 ब्राह्मण विधायक बनने में कामयाब रहे। इस बार भी बीएसपी की रणनीति में 100 से अधिक ब्राह्मण चेहरे को टिकट देने की है। 2007 में समाजवादी से ब्राह्मणों की नाराजगी का फायदा बीएसपी को मिला और उसने हाथी को सत्ता तक पहुंचा दिया। इस बार विपक्ष ने ब्राह्मणों को लेकर बीजेपी सरकार के खिलाफ माहौल बनाना शुरू कर दिया है। ब्राह्मणों पर दर्ज SC-ST मुकदमे, अफसरों की नियुक्ति, ट्रांसफर, पोस्टिंग में ब्राह्मणों से भेदभाव का आरोप लगा। खासतौर पर कुख्यात अपराधी विकास दुबे के एनकाउंटर पर भी ब्राह्मण कार्ड खेल दिया गया। अब वही काम अजय मिश्रा टेनी को हटाने को लेकर है।

1990 से पहले कांग्रेस के वोट बैंक थे ब्राह्मण मतदाता

1990 के मंडल-कमंड आंदोलन से पहले ब्राह्मण कांग्रेस का वोट बैंक होता था। अयोध्या में राम मंदिन निर्माण का मुद्दा कांग्रेस ने ब्राह्मणों के दम पर बनवाया था। 1990 के आंदोलन के दौरान ब्राह्मणों ने बीजेपी का दामन थामा, जिससे पार्टी सीधे 221 सीट जीतकर सूबे की सत्ता पर काबिज हो गई थी। वहीं 2019 के लोकसभा चुनाव में मोदी फैक्टर और ब्राह्मणों का साथ मिलने से लोकसभा की प्रदेश से 73 सीट हासिल की थी। कुल मिलाकर ब्राह्मण वोटर उत्तर प्रदेश में वोट के हिसाब से एक खास हैसियत रखते हैं और ये जिस तरफ भी मुड़ जाते हैं उस पार्टी की सियासी नैया पार लग जाती है। यही कारण है कि 2022 के सियासी रण में कोई भी दल इनकी नाराजगी का जोखिम मोल नहीं लेना चाहती।

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