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राजनीति

Bulldozer Justice: बदले की भावना से संविधान के इन तीन मौलिक अधिकारों पर बुलडोज़र चला रही हैं सरकारें

Janjwar Desk
7 Jun 2022 10:22 AM IST
Bulldozer Justice: बदले की भावना से संविधान के इन तीन मौलिक अधिकारों पर बुलडोज़र चला रही हैं सरकारें
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Bulldozer Justice: बदले की भावना से संविधान के इन तीन मौलिक अधिकारों पर बुलडोज़र चला रही हैं सरकारें

Bulldozer Justice: सुप्रीम कोर्ट के फैसले के आधार पर देखा जाए तो कानपुर दंगों के मामले में बीजेपी के दोनों प्रवक्ताओं, एक निजी न्यूज चैनल-जिसने डिबेट करवाई से भी वसूली होनी चाहिए।

Bulldozer Justice: उत्तरप्रदेश के कानपुर में पिछले शुक्रवार को जुमे की नमाज के बाद भड़की हिंसा के बाद राज्य की योगी आदित्यनाथ सरकार ने पुलिस को आरोपियों की पहचान कर उनकी संपत्ति जब्त कर उन पर बुलडोजर चलाने को कहा है। ठीक इसी तरह के आदेश पड़ोसी राज्य मध्यप्रदेश की सरकार ने भी खरगोन में हुए दंगों के बाद दिए थे। संविधान के अनुच्छेद 21 में देश के हर व्यक्ति को गरिमामय जीवन, आवास और आजीविका की गारंटी दी गई है। लेंकिन सरकारें बदले की भावना से कानून पर लगातार बुलडोजर चलाती दिख रही हैं।

उत्तरप्रदेश सरकार ने तो कानपुर हिंसा के 40 आरोपियों की सीसीटीवी फुटेज के आधार पर पहचान कर उनके पोस्टर भी चिपका दिए हैं। अगर केवल सीसीटीवी फुटेज के आधार पर किसी व्यक्ति की पहचान कर उसे बिना जांच- पड़ताल के सीधे आरोपी ठहराकर उसके पोस्टर चिपका दिए जाएं तो यह भी न केवल व्यक्ति की गरिमा का उल्लंघन है, बल्कि प्राकृतिक न्याय के उस सिद्धांत के भी खिलाफ है, जिसका निर्धारण अदालत की प्रक्रिया के तहत होता है। पिछले हफ्ते असम की सरकार ने भी उन लोगों के घर पर बुलडोजर चलवा दिया, जिन पर पुलिस ने एक थाने को आग लगाने का आरोप लगाया है। उत्तरप्रदेश सरकार ने एक बार फिर अपनी उस बात को दोहराया है कि इस तरह मकानों पर बुलडोजर चलाने से कोई आगे हिंसा भड़काने की कोशिश नहीं करेगा। हालांकि, सरकार की यह राय हमेशा एक समुदाय विशेष के ही खिलाफ रही है, क्योंकि कानपुर में हिंसा बीजेपी की निलंबित प्रवक्ताओं- नुपुर शर्मा और नवीन जिंदल के पैगंबर हजरत मोहम्मद के बारे में दिए आपत्तिजनक बयानों के विरोध में भड़की थी।

क्या कहता है भारत का संविधान ?

सुप्रीम कोर्ट ने ओल्गा टेलिस वि. बांबे नगर निगम के मामले में ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए कहा था कि संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत केवल जीवन के अधिकार की ही नहीं, बल्कि गरिमामय जीवन, आवास और आजीविका की भी गारंटी दी गई है। कानून के अनुसार प्रत्येक नगरीय निकाय को किसी भी संपत्ति को अधिग्रहित/ गिराने से पहले दिल्ली नगर निगम कानून 1957 के तहत नोटस जारी करना होगा और कब्जाधारी को 5-15 दिन का समय देना ही होगा। किसी भी संपत्ति को तब तक नहीं गिराया जा सकता, जब तक कब्जाधारी को नोटिस की अवधि में आयुक्त द्वारा सुन नहीं लिया जाता। मध्यप्रदेश भूमि विकास नियम 1984 के तहत भी कब्जाधारी को किसी नियम के उल्लंघन पर नोटिस देना जरूरी है और उसे सुनवाई के लिए 10 दिन का समय देना ही पड़ेगा।

इन नजीरों को भूल रही हैं सरकारें

दिल्ली हाईकोर्ट ने बाल किसान दास वि. दिल्ली नगर निगम के एक मामले में 2010 को साफ कहा था कि संपत्ति पर कब्जाधारी को कारण बताओ नोटिस देना अनिवार्य है। उसी साल सुदामा सिंह वि. दिल्ली सरकार एवं अन्य के मामले में भी कोर्ट ने कहा था कि किसी व्यक्ति को आवास से बेदखल करने का फैसला लेने से पहले उसे वैकल्पिक आवास देना पड़ेगा, जिसमें गरिमामय जीवन के अधिकार को बरकरार रखने के लिए मूलभूत व्यवस्थाएं उपलब्ध हों। झोपड़पट्टी वासियों के मामले में हाईकोर्ट ने उनकी अधिकारों की बहाली करते हुए कहा था कि उन्हें विस्थापित और पुर्नस्थापित करते समय पुर्नस्थापन की जगह पर मूलभूत इंतजाम उपलब्ध होने चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने 2019 में वृहत्तर मुंबई नगर निगम वि. सनबीम हाईटेक डेवलपर्स लि. के मामले में संपत्ति गिराए जाने के लिए समुचित प्रक्रिया का पालन करने के आदेश दिए थे। मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने अरुण भारती वि. मध्यप्रदेश राज्य के मामले में फैसला देते हुए सरकारी एजेंसियों को मध्यप्रदेश भूराजस्व कोड 1959 के तहत प्रभावित की सुनवाई के प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत को पालन करने को कहा था।

क्या बुलडोजर का उपयोग विधि सम्मत है?

सुप्रीम कोर्ट ने 2009 में सार्वजनिक व निजी संपत्ति को नुकसान से जुड़े एक मामले में उन व्यक्तियों की जिम्मेदारी तय करने का आदेश दिया था, जिन्होंने संपत्ति को नुकसान पहुंचाया है। शीर्ष अदालत ने कहा था कि राजनीतिक जुलूस, अवैध निर्माण, हड़ताल, बंद और विरोध प्रदर्शनों में सार्वजनिक और निजी संपत्तियों को नुकसान पहुंचाने के खिलाफ कड़े कानून होने चाहिए। चूंकि तब ऐसा कोई कानून नहीं था, इसलिए कोर्ट ने एक गाइडलाइन तय की थी। इसके मुताबिक ऐसे मामलों में पूरी जिम्मेदारी साठगांठ करने वाले उन तत्वों पर होनी चाहिए, जिसकी वजह से हिंसा हुई और संपत्ति को नुकसान पहुंचा। कोर्ट ने कहा था कि जिम्मेदारी वास्तविक षड्यंत्रकारियों पर डाली जानी चाहिए। संपत्तियों को हुए नुकसान की कीमत से दोगुनी कीमत दोषियों से वसूली जानी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के आधार पर देखा जाए तो कानपुर दंगों के मामले में बीजेपी के दोनों प्रवक्ताओं, एक निजी न्यूज चैनल-जिसने डिबेट करवाई से भी वसूली होनी चाहिए। देश में पिछले डेढ़ साल में तकरीबन हर सांप्रदायिक हिंसा के लिए साजिशकर्ता दक्षिणपंथी हिंदू संगठनों से भी वसूली होनी चाहिए।

लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने कहीं भी बुलडोजर से मकान गिराने का आदेश नहीं दिया और न ही इसे न्यायसंगत माना है। कोर्ट ने केवल जिम्मेदारों से संपत्ति को हुए नुकसान की दोगुनी वसूली करने के आदेश दिए हैं। यहां तक कि संपत्ति के अधिग्रहण को भी कोर्ट ने उचित नहीं माना है- जैसा कि उत्तरप्रदेश सरकार ने कानपुर दंगों के मामले में आदेश दिया है।

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