चौटाला और नीतीश कुमार मुलाकात: क्या भाजपा के खिलाफ तीसरे मोर्चे का मंच हो रहा है तैयार?
(हरियाणा में अभी विधानसभा चुनाव में पौने तीन साल का वक्त है। इस समय को इनेलो होमवर्क पूरा करने में लगाना चाहती है।)
जनज्वार ब्यूरो/चंडीगढ़। हरियाणा के पूर्व सीएम ओम प्रकाश चौटाला और बिहार के सीएम नीतीश कुमार की बैठक के कई मायने निकाले जा रहे हैं। मुलाकात ऐसे वक्त पर हुई, जब केंद्र और राज्य सरकार कृषि कानून पर घिरी हुई है। केंद्र सरकार भी इन दिनों पेगासस जासूसी मामले में विपक्ष के निशाने पर है। नीतीश कुमार ने मामले की जांच की मांग भी उठाई है। राजनीति की समझ रखने वालो का कहना है कि नीतीश कुमार इन दिनों बीजेपी से अलग हट कर अपना अलग स्टैंड कायम करने की जद्दोजहद है।
दूसरी ओर हरियाणा में इंडियन नेशनल लोकदल पार्टी भी अपने वजूद के लिए लड़ रही है। इनेलो का एक भी विधायक नहीं है। एकमात्र विधायक अभय चौटाला ने कृषि कानूनों के विरोध में विधानसभा से इस्तिफा दे दिया था। पूर्व सीएम ओम प्रकाश चौटाला जेल में अपनी सजा पूरी कर बाहर आ गए हैं। वह हरियाणा और राष्ट्रीय राजनीति में सक्रिय होना चाह रहे हैं। इसलिए वह बार बार तीसरे मोर्चे की वकालत कर रहे हैं।
हरियाणा के वरिष्ठ पत्रकार जगदीश शर्मा ने बताया कि इनेलो अपने सियासी वजूद की लड़ाई लड़ रही है। इस वक्त इनके ज्यादातर सीनियर नेता पार्टी छोड़ कर दूसरी पार्टी में चले गए हैं। पूर्व सीएम ओमप्रकाश चौटाला की कोशिश है कि पार्टी को मजबूत किया जाए। इसलिए वह दो प्रदेश और राष्ट्रीय दोनों स्तर पर काम कर रहे हैं। इसलिए ओपी चौटाला उन सभी नेताओं से मिल रहे हैं, जो तीसरे मोर्चे के लिए सहायक साबित हो सकते हैं।
जगदीश शर्मा ने बताया कि भले ही इनेलो का एक भी विधायक हरियाणा में न हो, इसके बाद भी पार्टी को हलके में नहीं लिया जा सकता है। इनेलो का एक बड़ा वोटबैंंक है। पूर्व सीएम के जेल से बाहर आने के बाद यह वोटर्स खासा उत्साहित है। कृषि कानून का विरोध इनेलो कार्यकर्ताओं के हौसले को और ज्यादा बढ़ा रहा है। इनेलो की कोशिश है कि भाजपा को हर मोर्चे पर घेरा जाए।
प्रदेश में जहां इनेलो को इसमें कामयाबी मिल रही है, वहीं अब राष्ट्रीय स्तर पर भी इनेलो अपनी उपस्थिति दर्ज कराने की कोशिश कर रही है। इसके लिए तीसरा मोर्चा एक मजबूत मंच बन सकता है। इस तथ्य को ओपी चौटाला जानते हैं।
जगदीश शर्मा कहते हैं कि ओपी चौटाला तीसरे मोर्चे के लिए खास मुफीद साबित हो सकते है। क्योंकि चौटाला की रुचि हरियाणा की राजनीति तक है। केंद्र में वह ज्यादा सक्रिय नहीं होना चाहते। बस इतना चाहते हैं कि वह केंद्र में नजर आए। इससे पहले चंद्रशेखर के पीएम बनने के वक्त भी ओपी चौटाला के पिता चौधरी देवी लाल ने अहम रोल निभाया था। इनेलो किसान आंदोलन की वजह से भाजपा के साथ जा नहीं सकती। कांग्रेस उनका पारंपरिक प्रतिद्वंद्वी है, इसलिए कांग्रेस व भाजपा मुक्त मोर्चे का आइडिया उनके लिए इस वक्त राजनीति लिहाज से खासा अच्छा मौका साबित हो सकता है। इस मौके का इनेलो पूरा फायदा उठाने की कोशिश में हैं।
शर्मा का कहना है कि देर सवेर ओपी चौटाला पंजाब के अकाली दल के नेताओं से भी मिल सकते हैं। पंजाब में अगले साल विधानसभा चुनाव है। अकाली दल भी इस बार प्रदेश में कड़ी चुनौती का सामना कर रहा है। भाजपा से अकाली दल ने अपना राजनीतिक रिश्ता खत्म कर लिया है। अकाली दल ने हालांकि बहुजन समाज पार्टी के साथ तालमेल किया है, लेकिन यह तालमेल बीजेपी से कमतर बैठ रहा है।
यूं भी तीसरे मोर्चे को लेकर राजनीतिक रणनीतिकार प्रशांत किशोर चाहते हैं कि हरियाणा से चौधरी भूपेंद्र सिंह हुड्डा की बजाय चौधरी ओमप्रकाश चौटाला को शामिल कियाजाए। भूपेंद्र सिंह हुड्डा को तीसरे मोर्चे में शामिल न करने की वजह साफ है। एक तो यह है कि वह कांग्रेस से अलग होकर अपनी पार्टी नहीं बना रहे हैं,दूसरा चौटाला के मुकाबले राष्ट्रीय स्तर पर भूपेंद्र सिंह हुड्डा की पहचान कम है।
हरियाणा में अभी विधानसभा चुनाव में पौने तीन साल का वक्त है। इस समय को इनेलो होमवर्क पूरा करने में लगाना चाहती है। चौटाला को पता है कि भले ही कार्यकर्ता उनके साथ है, लेकिन मजबूत नेताओं का साथ भी जरूरी है। इसलिए वह पार्टी को इतना मजबूत करना चाहते हैं कि प्रदेश व राष्ट्रीय स्तर पर उनकी उपस्थिति नजर आए। यह तभी संभव हो सकता है, जब भाजपा प्रदेश और राष्ट्रीय स्तर पर मजबूत होगी। मजबूती के लिए चौटाला को भाजपा व कांग्रेस को छोड़ कर अन्य दलों से उम्मीद है। इसलिए वह लगातार ऐसे नेताओं से बातचीत कर रहे हैं जो भाजपा व कांग्रेस के विकल्प हो सकते हैं।
अपनी मुलाकातों को लेकर पूर्व सीएम ओमप्रकाश चौटाला ने कहा कि जब दो राजनीतिक व्यक्ति बैठते हैं तो जाहिर है, राजनीति की बातचीत तो होगी ही। इससे पहले उन्होंने जोर देकर यह बात बोली कि तीसरा मोर्चा होना चाहिए। इस वक्त तीसरे मोर्चे की सख्त जरूरत है। तभी कांग्रेस व भाजपा मुक्त सरकार बनाई जा सकती है।
जहां तक बिहार के सीएम नीतीश कुमार की बात है, वह भाजपा के दबाव से मुक्त होना चाह रहे हैं। इसलिए उन्हें भी किसी मजबूत साथी की तलाश है। जिससे वह बीजेपी के साथ बराबरी पर आ सके। इसलिए यह मुलाकात दोनो दलों के लिए अपनी अपनी अहमियत रखती है। देखना होगा कि आने वाले समय में इस तरह की मुलाकात क्या राजनीतिक रंग लाती है।