Himanchal Election : उत्तराखण्ड के धामी की आंच ने दी अब हिमाचल में दस्तक, भाजपा-कांग्रेस आये आमने-सामने
Himanchal Election : उत्तराखण्ड के धामी की आंच ने दी अब हिमाचल में दस्तक, भाजपा-कांग्रेस आये आमने-सामने
Himanchal Election : उत्तराखण्ड में गुजरे विधानसभा चुनाव मुख्यमंत्री व भारतीय जनता पार्टी (BJP) प्रत्याशी पुष्कर सिंह धामी (Pushkar Singh Dhami) की खटीमा विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस प्रत्याशी भुवन कापड़ी से हुई हार के बाद भाजपा ने भले ही उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री (Uttarakhand CM) की कुर्सी सौंप दी हो। लेकिन इस प्रकरण के बहाने विधानसभा चुनाव की दहलीज पर बैठे पड़ोसी राज्य हिमाचल प्रदेश की सियासत में एकाएक तपिश महसूस की जाने लगी है।
मुख्यमंत्री पुष्कर धामी के प्रकरण को नजीर बनाकर हिमाचल प्रदेश (Himachal Pradesh) के पूर्व मुख्यमंत्री व वरिष्ठ भाजपा नेता प्रेम कुमार धूमल (Prem Kumar Dhumal) ने पार्टी आलाकमान को ही कटघरे में खड़ा कर दिया है। हैरानी की बात यह है कि एक तरफ जहां धूमल अपनी ही पार्टी के आलाकमान को इस मुद्दे पर घेरते नजर आ रहे हैं तो दूसरी ओर उनके प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस विधायक इस मामले में भाजपा आलाकमान की हिमाचल प्रकरण में हिमायत करते नजर आ रहे हैं।
यहां जानकारी के लिए बता दे कि हिमाचल प्रदेश में पिछला विधानसभा चुनाव भाजपा के वरिष्ठ नेता प्रेम कुमार धूमल के मुख्यमंत्रित्व काल में ऐसे ही लड़ा गया था, जैसे उत्तराखण्ड विधानसभा का चुनाव पुष्कर सिंह धामी के कार्यकाल में। संयोग की बात यह है कि उत्तराखण्ड में जिस प्रकार के चुनाव परिणाम आये ठीक उसी तरह के परिणाम हिमाचल प्रदेश में भी चार साल पूर्व आये थे। पुष्कर धामी ने खटीमा विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ा था तो हिमाचल प्रदेश में प्रेम कुमार धूमल ने राज्य की सुजानपुर विधानसभा सीट से चुनाव लड़ा था।
उत्तराखण्ड चुनाव में भाजपा की जीत के बाद भी मुख्यमंत्री को कांग्रेस प्रत्याशी भुवन कापड़ी से हारना पड़ा तो हिमाचल प्रदेश में धूमल को ऐसी ही परिस्थितियों में कांग्रेस के राजेन्द्र राणा से चुनावी हार मिली। लेकिन हिमाचल प्रदेश में मुख्यमंत्री धूमल के चुनाव हारने के बाद पार्टी ने जयराम ठाकुर को मुख्यमंत्री बना दिया। जबकि उत्तराखण्ड में हारे हुए मुख्यमंत्री धामी को ही दुबारा मुख्यमंत्री बना दिया। पार्टी आलाकमान द्वारा एक ही जैसी दो परिस्थितियों में अलग-अलग निर्णय लिए जाने का दर्द हिमाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल की जुबान चार साल बाद सामने आ गया।
धूमल ने हालांकि हार के बाद भी खुद को मुख्यमंत्री न बनाये जाने पर सीधे कोई टिप्पणी नही की लेकिन उत्तराखण्ड प्रकरण को नजीर बनाते हुए कहा कि जब उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री के चुनाव हारने की जांच हो सकती है तो उनके हारने के कारणों की जांच क्यों नहीं हो सकती। धूमल ने कहा एक जैसी परिस्थितियों में एक जैसी ही कार्यवाही होनी चाहिए।
खुद को सामान्य कार्यकर्ता बताते हुए उन्होंने इसे आलाकमान स्तर की बातें बताते हुए कहा कि उत्तराखण्ड व हिमाचल प्रदेश में समान परिस्थिति पर समान निर्णय क्यों नही लिया गया, यह हाईकमान ही बेहतर बता सकता है। हालांकि धूमल ने सीधे ही अपने मुख्यमंत्री बनने का मुद्दा उठाने से परहेज किया। लेकिन इशारों ही इशारों में चुनावी हार की जांच के नाम पर ही सही, केंद्रीय नेतृत्व की दोहरी कार्यशैली पर उन्होंने उंगली जरूर उठा दी।
एक तरफ जहां धूमल अपने बयानों से पार्टी नेतृत्व को असहज करने का प्रयास कर रहे थे तो दूसरी ओर विधानसभा चुनाव में उन्हें पराजित करने वाले कांग्रेस विधायक राजेन्द्र राणा ने दूसरी ही लाइन पकड़ते हुए हारे हुए लोगों को मुख्यमंत्री बनाने को लोकतंत्र की हत्या करार दिया है।
हमीरपुर में विधायक राणा ने कहा कि भाजपा ने हार के बाद भी जिस प्रकार उत्तराखण्ड में मुख्यमंत्री व उत्तर-प्रदेश में उपमुख्यमंत्री बनाया है, यह लोकतंत्र की हत्या है। जनता जिसे एक विधानसभा का नेतृत्व सौंपने को तैयार नहीं है, उसे पार्टी यदि सबसे बड़ी कुर्सी सौंप से तो यह लोकतंत्र की हत्या के समान ही है।
बहरहाल, चुनावी हार के बाद भी मुख्यमंत्री पद पर धामी की ताजपोशी पर उत्तराखण्ड में भले ही कोई उंगली न उठी हो, लेकिन इसने पड़ोसी राज्य हिमाचल प्रदेश की राजनीति को प्रभावित करना शुरू कर दिया है। आगामी विधानसभा चुनाव की दहलीज पर खड़े हिमाचल प्रदेश की राजनीति में उत्तराखण्ड प्रकरण अभी कई रंग दिखायेगा, इसकी संभावना बनती नजर आ रही हैं।