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राजनीति

Sardhana सीट पर खतरे में BJP, हिंदूवादी 'सोम' पर भारी पड़ सकते हैं समाजवादी 'प्रधान', ये है सियासी तानाबाना

Janjwar Desk
30 Jan 2022 8:22 AM GMT
Sardhana सीट पर खतरे में BJP, हिंदूवादी सोम पर भारी पड़ सकते हैं समाजवादी प्रधान, ये है सियासी तानाबाना
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मुजफ्परनगर दंगे से सरधना बदनाम हुआ, पर कट्टर हिंदूवादी नेता संगीत सोम मशहूर हो गए। इस बार सोम के सामने तीसरी बार सपा के अतुल प्रधान हैं। वोटों के ध्रुवीकरण की गुंजाइश न के बराबर है। किसान आंदोलन और सपा-रालोद गठबंधन की वजह से सियासी मिजाज बदला हुआ है।

सरधना। उत्तर प्रदेश मेरठ जिले की सरधना विधानसभा सीट ( Sardhana Vidhansabha Seat ) प्रदेश की उन सीटों की फेहरिश्त में है जो किसी पहचान की मोहताज नहीं है। सरधना में एशिया का मशहूर चर्च सेंट जोसफ है। इस चर्च को बेगम समरू ने अंग्रेजी हुकूमत की मदद से बनवाया था। सूत का भी यह बड़ा केंद्र है। यहां का शिवमंदिर भी काफी चर्चित है। लेकिन मुजफ्परनगर दंगे की वजह से सरधना बदनाम हुआ, पर भाजपा ( BJP ) के कट्टर हिंदूवादी नेता संगीत सोम मशहूर हो गए। इस बार संगीत सोम ( Sangeet Som ) के सामने तीसरी बार सपा ( SP ) के अतुल प्रधान ( Atul Pradhan ) हैं। माना जा रहा है कि इस बार सोम पर प्रधान भारी पड़ेंगे। बसपा ने संजीव कुमार धामा और कांग्रेस ने सैयद रैनुद्दीन को उम्मीदवार बनाया है।

BJP : संगीत सोम

भाजपा के संगीत सोम ( Sangeet Som ) सरधाना के मौजूदा विधायक हैं। मुजफ्फरनगर दंगे के मुख्य आरोपी में से एक हैं। भड़काऊ भाषण के लिए चर्चा में बने रहते हैं। वोटों का ध्रुवीकरण करने में मास्टर हैं। 2009 में सपा के टिकट पर मुजफ्फरनगर से लोकसभा चुनाव लड़ा था, पर हार गए थे। पाला बदला और भाजपा में आ गए। 2012 में सरधना सीट से टिकट मिला और जीत गए। इस सीट पर करीब 24 गांव ठाकुर बाहुल्य हैं, जिनमें उनकी खास पैठ बताई जाती है।

SP : अतुल प्रधान

समाजवादी पार्टी ने यहां से चौधरी चरण सिंह यूनिवर्सिटी के छात्र नेता रहे अतुल प्रधान ( Atul Pradhan ) को तीसरी बार चुनावी मैदान में उतारा है। अतुल प्रधान अखिलेश यादव के करीबी युवा नेताओं से एक हैं। 2017 में शिवपाल यादव के विरोध के बावजदू टिकट हासिल करने में कामयाब हुए थे। वह सपा छात्र सभा के प्रदेशाध्यक्ष रह चुके हैं। इस यहां का माहौल कई कारणों से उनके पक्ष में है।

सरधना : सियासी पृष्ठभूमि

सरधना विधानसभा के गठन के बाद 1977 में जनता पार्टी के बलवीर सिंह पहले विधायक बने। उन्होंने कांग्रेस के नजीर अहमद को हराया था। 1980 में सैय्यद जकीउद्दीन विधायक चुने गए। 1985 में एलकेडी (लोकदल) से अब्दुल वहीद कुरैशी विधायक बने। 1989 में अमरपाल सिंह भाजपा से विधायक बने। 1991 में जनता दल से विजयपाल सिंह तोमर विधायक बने। 1993, 1996, 2002 में भाजपा से रविंद्र पुंडीर विधायक बने। 2007 में बसपा से चौधरी चंद्रवीर सिंह विधायक चुने गए। 2012 और 2017 में भाजपा से संगीत सोम विधायक चुने गए। संगीत सोम ने अपने निकटतम प्रतिद्वंदी सपा के अतुल प्रधान को 21,466 वोट के अंतर से हराया था।

सामाजिक ताना-बाना

सरधना विधानसभा क्षेत्र में मुस्लिम सबसे ज्यादा संख्या में है। दलित ठाकुर और जाट वोटरों की संख्या भी ठीक-ठाक है। ठाकुर चौबीसी भी सरधना विधानसभा क्षेत्र में ही है। इस सीट पर ठाकुर चौबीसी का अच्छा प्रभाव रहा है। यहां से ज्यादातर ठाकुर और जाट प्रत्याशी ही जीतते आए हैं। 2022 के ताजा आंकड़ों के मुताबिक इस सीट पर 3 लाख 57 हजार 36 मतदाता हैं। इनमें एक लाख 63 हजार 104 मतदाता महिला जबकि एक लाख 93 हजार 857 मतदाता पुरुष हैं। इस सीट पर 90 हजार से ज्यादा मतदाता मुस्लिम हैं। 50 हजार ठाकुर, 65 हजार दलित, 35 हजार गुर्जर, 30 हजार सैनी, 15 हजार ब्राह्मण, 25 हजार हजार जाट वोटर हैं।

सोम पर लगा था मुजफ्फरनगर में दंगा भड़काने का आरोप

भाजपा विधायक संगीत सोम पर दंगे भड़काने का आरोप लगा था। आरोप लगने के बाद उनको गिरफ्तार भी किया गया था। सपा सरकार के दौरान उन पर रासुका भी लगा था। इसके खिलाफ सरधना के खेड़ा गांव में महापंचायत हुई और तकरीबन 20 हज़ार लोग पहुंचे थे। इस महापंचायत पर पुलिस ने रोक लगाई थी, लेकिन लोग नहीं माने और पुलिस से ही भिड़ंत हो गई थी। इस बवाल में तीन लोगों की मौत हुई थी। तब से ये इलाका इतना संवेदनशील हो गया।

इस बार बदला सा है सियासी मिजाज

UP Election 2022 : संगीत सोम पिछली बार इसलिए जीते क्योंकि ध्रुवीकरण वह हिंदूवाद के नाम पर वोटों का ध्रुवीकरण करने में कामयाब हुए थे। इस बार यहां की सियासी चाल बदली हुई है। किसान आंदोलन और सपा-रालोद गठबंधन की वजह से भाजपा की स्थिति कमजोर है। सपा प्रत्याशी अतुल प्रधान की दावेदारी मजबूत है। संगीत सोम के लिए मुश्किल ये है कि इस बार ध्रुवीकरण होता नजर नहीं आ रहा है। दूसरा उन्हें तगड़ी सुरक्षा मिली हुई है। लोगों की शिकायत है कि वो आसानी से अपने विधायक से मिल नहीं पाते।अगर दलित, जाट और मुस्लिम वोट एक प्लेटफॉर्म पर आता है तो सपा की पहली बार जीत तय है। फिर इस बार बसपा के संजीव कुमार धामा और कांग्रेस के सैयद रैनुद्दीन दोनों की तुलना में कमजोर प्रत्याशी माने जा रहे हैं। इसलिए मुकाबला सोम और प्रधान के बीच ही है। अगर सपा और कांग्रेस मुस्लिम वोट को लुभाने में कामयाब हो जाती हैं तो अतुल मज़बूत हो जाएंगे। अगर बसपा दलित के साथ मुस्लिम वोट समेट लेती है तो सोम मजबूत होंगे। लेकिन ध्रुवीकरण की इस बार गुंजाइश न के बराबर है।

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