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राजनीति

चंद्रशेखर आजाद जिस गोरखपुर में नहीं बचा पाएंगे जमानत, वहां से क्या संदेश देने के लिए लड़ रहे चुनाव

Janjwar Desk
22 Jan 2022 8:09 AM GMT
चंद्रशेखर आजाद जिस गोरखपुर में नहीं बचा पाएंगे जमानत, वहां से क्या संदेश देने के लिए लड़ रहे चुनाव
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योगी आदित्यनाथ को गोरखपुर से चुनौती देकर सियासी तौर पर शहीद क्यों होना चाहते हैं चंद्रशेखर आजाद।

UP Election 2022 : एक बड़ी पार्टी से गठबंधन करने का अनुभव कड़वा रहा है। तभी हमने तय किया कि हम अपनी लड़ाई खुद लड़ेंगे। बड़ी समंदर में जाकर खो जाने से अच्छा है कि खुद लड़ाई लड़ें। आखिर यह लड़ाई बहुजन समाज की है।

गोरखपुर से चंद्रशेखर आजाद का चुनाव लड़ने पर धीरेंद्र मिश्र का विश्लेषण

UP Election 2022 : उत्तर प्रदेश के गोरखपुर से आजाद समाज पार्टी के प्रमुख चंद्रशेखर आजाद ताल ठोककर चुनावी मैदान में उतर चुके हैं। वह मीडिया से बातचीत में बता चुके हैं कि मैं, योगी आदित्यनाथ को दोबारा यूपी का सीएम नहीं बनने दूंगा। मेरी कोशिश होगी कि मैं उन्हें चुनाव में हरा दूं। उनके इस चुनौती को एक तरह से सियासी दुस्साहस माना जा रहा है। दुस्साहस इसलिए कि योगी को गोरखपुर में चुनौती देने का परिणाम यह भी हो सकता है कि वो अपनी जमानत भी न बचा पाएं। फिर उनका साथ देने अभी तक कोई सामने नहीं आया है। ये बात अलग है कि उन्होंने अखिलेश यादव सहित कुछ अन्य नेताओं के खिलाफ यूपी में पार्टी प्रत्याशी नहीं उतारने का फैसला लिया है। यानि इस चाल का लाभ भी उन्हें गोरखपुर में मिलने की उम्मीद कम है। ऐसे में वो गोरखपुर से क्या संदेश देने के लड़ रहे हैं चुनाव। इसको लेकर सिसायी जानकार अपने-अपने तरीके से कयास लगा रहा है।

सबसे पहले यह जानिए ASP ने अपने ट्विट में क्या लिखा है?

एएसपी यानि आजाद समाज पार्टी ने अने ट्विट में लिखा है कि "डॉ भीम राव अंबेडकर और कांशीराम की विचारधारा 'बहुजन हिताय, बहुजन सुखाय' (दलितों का कल्याण और खुशी) को आगे बढ़ाने के लिए पार्टी ने गोरखपुर सदर से चंद्रशेखर आजाद को यूपी चुनाव लड़ने का फैसला किया है।।

ये है गोरखपुर से चुनाव लड़ने पर चंद्रशेखर आजाद का बयान

ASP प्रमुख चंद्रशेखर आजाद का कहना है कि यह पार्टी का फैसला है। मैं उसका सम्मान करता हूं। मैं, सिर्फ पार्टी का एक कार्यकर्ता हूं। मुख्यमंत्री के खिलाफ चुनाव लड़ने का फैसला पार्टी का है।

इसके साथ ही उन्होंने कहा है कि जब से चुनाव की बात आई तब से पार्टी में यह बात चल रही थी और मैंने यह तय किया था कि मुख्यमंत्री के खिलाफ लड़ने का आवेदन पार्टी के अंदर दूंगा। इस सरकार ने रासुका लगा करके मुझे महीनों तक जेल के अंदर रखा। मेरे ऊपर 100 से ज्यादा मुकदमे लगाए। हमारे कई सारे कार्यकर्ताओं को पीटा गया। हाथरस जैसी घटना हुई जिसमें हमारी बहन को आग लगा दिया गया। जितना दमन इस सरकार में दलितों का हो सकता था वह हुआ, इसीलिए अब उन्हें सत्ता में रहने का अधिकार नहीं है। इसलिए मैं चाहता था कि मुख्यमंत्री के खिलाफ चुनाव लड़ूं।

यह लड़ाई बहुजन समाज की है

अभी तक एक बड़ी पार्टी से गठबंधन करने का अनुभव कड़वा रहा है। तभी हमने तय किया कि हम अपनी लड़ाई खुद लड़ेंगे। बड़ी समंदर में जाकर के खो जाने से अच्छा है कि खुद लड़ाई लड़ें। यह लड़ाई बहुजन समाज की है। दलित युवाओं की है। यह लड़ाई स्थापित दलों और ऐसे लोगों के बीच की लड़ाई है जो सड़कों पर खड़े रहते हैं।हम मैदान में लड़ाई लड़ेंगे और छोटे-छोटे दलों को इकट्ठा करके हम लड़ाई लड़ेंगे।

अपने पक्ष में काशी के इन बातों का दिया हवाला

भीम आर्मी प्रमुख ने कहा कि कांशी राम जी जिनको हम नेता मानते हैं वह कहते थे कि पहला चुनाव हारने के लिए दूसरा हराने के लिए और तीसरा जीतने के लिए। जब हम बुलंदशहर में चुनाव लड़े तो हम तीसरे नंबर पर थे और स्थापित सदस्य चौथे और पांचवे नंबर पर थे और जो हमने किया वह हमने अपनी मेहनत से किया। लोग हमें वोट देना चाहते हैं और उनकी मंशा यही है कि वह अपना वोट अपने भाई को दें। अकेले लड़कर हम यह साबित करना चाहते हैं कि जो काम हमने किया है उसमें जनता को कितना समर्थन है।

भगत सिंह डर गए होते तो देश को आजादी नहीं मिलती

चंद्रशेखर रावण का दावा है कि पिछले पांच साल से मैं इस सरकार की दमनकारी नीतियों के खिलाफ जमीनी स्तर पर संघर्ष कर रहा हूं। विपक्ष को योगी आदित्यनाथ के खिलाफ अपने सबसे मजबूत उम्मीदवार उतारने चाहिए थे। मैं योगी के खिलाफ जाने से नहीं डरता। "अगर भगत सिंह डर गए होते, तो भारत को आजादी नहीं मिलती। मैं ईमानदारी से लड़ूंगा। यह एक तरह से बनाम एक गरीब व्यक्ति के बेटे की लड़ाई है। और मेरे साथ कई परिवारों का आशीर्वाद है।"

आखिर क्या कहना चाहते हैं चंद्रशेखर रावण?

दरअसल, भीम आर्मी के प्रमुख चंद्रशेखर आजाद भाजपा को खुली चुनौती देकर खुद को दलितों के लिए सबसे बेहतर संघर्ष करने और चिंता करने वाला साबित करना चाहते हैं। वो खुद को दलितों का भावी नेता के रूप में स्थापित करना चाहते हैं। यही वजह है कि गोरखपुर से चुनाव लड़ वह एक खास तबके का ध्यान अपनी ओर खींचना चाहते है। चंद्रशेखर गोरखपुर में सियासी तौर पर शहीद होने के लिए तैयार हैं। तभी तो वो कहते हैं - जितना दमन इस सरकार में दलितों का हो सकता था वह हुआ, इसीलिए अब उन्हें सत्ता में रहने का अधिकार नहीं है और तभी मैं चाहता था कि मुख्यमंत्री के खिलाफ चुनाव लड़ सकूं। यानि वो मायावती के बाद खुद को दलित नेता के रूप में स्थापित करना चाहते है।

सपा से गठब्ंधन के पीछे थी आजाद पार्टी ये रणनीति

माना जा रहा है कि चंद्रशेखर-अखिलेश के बीच गठबंधन होता तो पश्चिम यूपी की कुछ सीटों पर भाजपा और बसपा को कड़ी चुनौती मिल सकती थी। चंद्रशेखर आजाद की पार्टी का सहारनपुर, बिजनौर, नोएडा और बुलंदशहर जिलों में दलितों के बीच अच्छा प्रभाव माना जाता है। राजनीतिक जानकारों का कहना की मानें तो अगर राष्ट्रीय लोकदल के साथ सपा का चंद्रशेखर की पार्टी के साथ गठबंधन होता तो पश्चिमी यूपी में बसपा के पारंपरिक जाटव वोट बैंक में चंद्रशेखर सेंध लगाने में सफल हो जाते। वह जाट-मुस्लिम-दलित कॉम्बिनेशन को सियासी तौर फायदा दिला सकते थे। लेकिन सपा से गठबंधन न होने से उनकी मंशा मुकाम तक नहीं पहुंच पाई।

ASP प्रमुख आजाद की चाहत

दरअसल, चंद्रशेखर आजाद की यूपी में दलितों के बीच बसपा सुप्रीमो व यूपी की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती का विकल्प बनने की सियासी आकांक्ष है। उनका मानना है कि स्वामी प्रसाद मौर्य, ओपी राजभर, केशव प्रसाद मौर्य, महान दल के नेता केशव देव मौर्य व अन्य नेता राजनीति में अप्रसांगिक हो जाएंगे। वर्तमान में इन्हीं लोगों के बीच दलितों और पिछड़ों को सबसे बड़ा नेता बनने की होड़ है। इसलिए अभी से एकला चलो की राह पर निकलें तो भविष्य में इसका लाभ मिल सकता है। ऐसा सोचने में भी बुराई नहीं है। ऐसा इसलिए कि चंद्रशेखर आजाद एक युवा नेता के रूप में उभरे हैं। राजनीति करने के लिए उनकी पूरी उम्र बची हुई है। उनके पास इंतजार करने का समय भी है। अभी तक उन्होंने दलितों के जुझारूपन भी दिखाया है। मायावती के साथ चलने में उनकी न रुचि न होने के पीछै भी उनकी इस मंशा से समझा जा सकता है। वो दलितों के बीच खुद की अलग पहचान बनाना चाहते हैं। वो जानते हैं कि मायावती से हाथ मिलाने के उनका स्वतंत्र अस्तित्व अप्रसांगिक हो जाएगा। उनसे हटकर चलने में ही सियासी लाभ मिल सकता है। यानि एक तरह से चंद्रशेखर सियासी परिपक्वता का भी परिचय दे रहे हैं।

चुनौती को हल्के में क्यों ले रहे हैं लोग?

दरअसल, गोरखपुर सीएम योगी आदित्यनाथ का गढ़ होने के कारण गोरखपुर सदर सीट पर पूरे यूपी की नजर है। गोरक्षनाथ मंदिर का प्रभाव होने की वजह से राम मंदिर आंदोलन से लेकर मोदी लहर तक इस सीट की अहम भूमिका रही है। ये सीट लगातार बीजेपी के कब्जे में रही है। 1967 के बाद से अब तक हुए चुनाव में भाजपा हमेशा इस सीट पर जीती है। 2002 से लेकर 2017 तक भाजपा के राधा मोहनदास अग्रवाल यहां से विधायकी का चुनााव जीतते आए हैं। गोरखपुर की 9 विधानसभा सीटों में से गोरखपुर सदर विधानसभा की सीट में सबसे ज्यादा 474 पोलिंग बूथ इस सीट में ही हैं। योगी आदित्यनाथ के गोरक्षनाथ मंदिर पीठाधीश्वर बनने के बाद यह सीट उत्तर प्रदेश को प्रभावित करने वाली सीट बन गई है।

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