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Hate Speech in TV Debate: अमन को माचिस लगाने वाले आपत्तिजनक बयान पर सरकार खामोश क्यों है?
Hate Speech in TV Debate: अमन को माचिस लगाने वाले आपत्तिजनक बयान पर सरकार खामोश क्यों है?
Hate Speech in TV Debate: एक कहावत है- तरकश से निकला तीर और जु़बां से निकले बोल कभी वापस नहीं आते। बोल ऐसे हों जो किसी को तकलीफ न पहुंचाएं। लेकिन 2016 के बाद से देश में एक विशेष धर्म को निशाना बनाकर दिए गए बयानों की इस कदर बाढ़ आई हुई है कि भावनाएं आहत हैं। जब भावनाओं को चोट पहुंचती है तो गुस्सा उभरता है। गुस्सा अगर बेकाबू हो जाए तो दंगों की शक्ल ले लेता है। कानपुर में शुक्रवार को जुमे के दिन यही हुआ।
शुक्रवार को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दोनों उत्तरप्रदेश के दौरे पर थे, जब बीजेपी प्रवक्ता नुपुर शर्मा के पैगंबर मोहम्मद के लिए बेहद आपत्तिजनक बयान के विरोध में पथराव और हिंसी हुई। पुलिस ने जवाब में लाठीचार्ज किया और 15 उपद्रवियों को हिरासत में लिया। नुपुर शर्मा के बयान के विरोध में उत्तरप्रदेश के बरेली में भी हिंसा हुई थी। बीजेपी प्रवक्ता के खिलाफ उनके बयान को लेकर देश के कुछ राज्यों में एफआईआर भी हुई है। चिंता की बात यह है कि नुपुर शर्मा ने यह आपत्तिजनक बयान न्यूज चैनल के एक लाइव टीवी डीबेट में दिया और उसकी संचालक एंकर ने उन्हें रोकने की कोशिश नहीं की।
कानून सबके लिए बराबर या भगवा ब्रिगेड को मिली छूट?
इसके बाद ऑल्ट न्यूज के मोहम्मद जुबैर ने पूरी बहस का वीडियो प्रसारित किया, लेकिन चैनल की ओर से नुपुर का पहले बचाव किया गया और फिर मामले से ही कन्नी काट ली गई। इस पूरे मामले की प्रधानमंत्री, उनके कैबिनेट मंत्रियों में से किसी ने निंदा नहीं की। इस विवादित बहस को दिखाने वाले न्यूज चैनल के खिलाफ भी कोई कार्रवाई नहीं हुई। उल्टे जुबैर के खिलाफ यति नरसिंहानंद और अन्य को नफरत फैलाने वाला बताने पर एफआईआर दायर हुई। हिंदू शेर सेना के प्रमुख की ओर से उत्तरप्रदेश के सीतापुर थाने में दर्ज एफआईआर में दावा किया गया है कि जुबैर ने संगठन के राष्ट्रीय संरक्षक बजरंग मुनि के खिलाफ आपत्तिजनक भाषा का इस्तेमाल कर भावनाओं को चोट पहुंचाई है। एफआईआर में यह भी लिखा हुआ है कि जुबैर के ट्वीट समाज में नफरत फैलाते हैं और मुस्लिम समुदाय को उकसाने का काम करते हैं। उधर, महाराष्ट्र के ठाणे और हैदराबाद समेत कुछ स्थानों पर एफआईआर के बावजूद नुपुर शर्मा के खिलाफ अभी तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है। यही नहीं, नुपुर के बयान का विरोध करने पर शिबली कॉलेज छात्रसंघ के अध्यक्ष अब्दुल रहमान को आजमगढ़ पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है।
सबको साथ लेकर चलना है तो नमाज पर बंदिशें क्यों ?
प्रधानमंत्री की ही तर्ज पर आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने गुरुवार को कहा कि भारत को सभी को साथ लेकर चलना है और इतिहास की गलतियां न तो आज के मुसलमानों ने कीं और न ही हिंदुओं ने। लेकिन अलीगढ़ में श्री वार्ष्णेय कॉलेज के प्रोफेसर एसआर खालिद को केवल इसलिए छुट्टी पर भेज दिया गया, क्योंकि उन्होंने कॉलेज के लॉन में नमाज पढ़ने की 'गुस्ताखी' की थी। प्रो. खालिद को एक माह की अनिवार्य छुट्टी पर भेजा गया है। एक जमाने में अस्पतालों में इलाज करवा रहे कैंसर के मरीजों को भी अपने कमरे में नमाज़ अता करने की छूट थी। इस बदलाव के बारे में सरकार और आरएसएस दोनों ही खामोश हैं। खासकर तब जबकि विश्व हिंदू परिषद, बजरंग दल और संत समाज का एक तबका धर्म संसदों और उससे बाहर भी एक समुदाय विशेष को निशाना बनाकर आपत्तिजनक बयान दे रहा है। यहां तक कि कोर्ट से मिली जमानत की शर्तों का भी खुलेआम उल्लंघन होता है, लेकिन कानून पर अमल करवाने वाली एजेंसियां लाचार नजर आती हैं।
कहीं तो खिंचे एक लक्ष्मण रेखा
सबसे चिंताजनक बात यह है कि धार्मिक अल्पसंख्यकों को निशाना बनाकर की जा रही बयानबाजी अब पार्टी प्रवक्ताओं की तरफ से टीवी पर लाइव बहस का भी हिस्सा बन रही है। इसके बाद भी अगर सरकार और राजनीतिक दल कोई लक्ष्मण रेखा नहीं खींचते और इस तरह के आपत्तिजनक बयान देने वालों के खिलाफ कार्रवाई नहीं करते तो इस आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता कि इसमें उनकी मौन सहमति है। देश को 2024 तक हिंदू राष्ट्र बनाने का ख्वाब सबको साथ लेकर ही पूरा हो सकता है और आरएसएस प्रमुख ने बिल्कुल यही कहा है। फिलहाल वक्त है सरकार को अपनी कथनी और करनी में अंतर को मिटाने की।