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RPN Singh news: RPN Singh के BJP में जाने से कांग्रेस से अधिक इस बात नेSamajwadi Party की बढ़ाई चिंता
RPN Singh news: RPN Singh के BJP में जाने से कांग्रेस से अधिक इस बात नेSamajwadi Party की बढ़ाई चिंता
जितेंद्र उपाध्याय की रिपोर्ट
RPN Singh news: यूपी विधान सभा चुनाव को लेकर मची उठापठक के बीच भारतीय जनता पार्टी ने कांग्रेस को बड़ा झटका देने का काम की है। गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर राहुल गांधी की टीम में प्रमुख चेहरा रहे आरपीएन सिंह ने बीजेपी का दामन थाम लिया। कांग्रेस के स्टार प्रचारकों में शामिल आरपीएन सिंह के बीजेपी में जाने का खामियाजा सर्वाधिक सपा को भुगतना पड़ सकता है। यह कहा जा रहा है कि स्वामी प्रसाद मौर्य को तोड़कर सपा ने जो झटका दिया था उसका कसर अब आरपीएन को तोड़ कर भाजपा ने पूरी कर ली है। जिसका असर पूर्वांचल की कुछ सीटों पर पड़ सकता है।
पडरौना राजघराने से आने वाले आरपीएन के जरिए बीजेपी एक तीर से दो निशाना साधने का काम की है। बीजेपी उन्हें स्वामी प्रसाद मौर्या के खिलाफ पडरौना से उतार सकती है। इसके अलावा सपा से मुकाबले में जहां कम अंतर से बीजेपी को हार का डर सता रहा था, आरपीएन के आने से उसे कुछ बढ़त मिल सकती है। पूर्व केंद्रीय मंत्री आरपीएन सिंह ने पार्टी छोड़ने के लिए कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को अपना इस्तीफा भेजने के साथ ट्विटर पर यह भी ऐलान कर दिया है कि वह नए सफर की शुरुआत करने जा रहे हैं। आज, जब पूरा राष्ट्र गणतंत्र दिवस का उत्सव मना रहा है, मैं अपने राजनैतिक जीवन में नया अध्याय आरंभ कर रहा हूं। जयहिंद।
सोनिया गांधी को भेजे इस्तीफे में आरपीएन सिंह ने लिखा है कि वह कांग्रेस पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे रहे हैं। उन्होंने राष्ट्र और लोगों की सेवा करने का मौका देने के लिए सोनिया गांधी को धन्यवाद भी दिया है।
आरपीएन सिंह का पूरा नाम कुंवर रतनजीत प्रताप नारायण सिंह है। जिन्हें यूपी की जनता उन्हें पडरौना का राजा साहब कहती हैं। 25 अप्रैल 1964 को दिल्ली में जन्में आरपीएन सिंह कुशीनगर के शाही सैंथवार परिवार से ताल्लुख रखते हैं। आरपीएन सिंह को राजनीति विरासत में हासिल हुई है उनके पिता कुंवर सीपीएन सिंह कुशीनगर से सांसद थे और कांग्रेस के वफादारों में गिने जाते थे। यूपीए सरकार में उन्होंने तब गृह राज्यमंत्री का पद भी संभाला जब 2009 में उन्होंने पहली बार लोकसभा चुनाव जीता था ,उन्हें कांग्रेस ने झारखंड का प्रदेश प्रभारी भी बनाया था। इसके बाद 2014 और 2019 में लोकसभा चुनाव लड़े। लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा। पडरौना विधानसभा सीट से आरपीएन सिंह 1996, 2002 और 2007 में तीन बार कांग्रेस पार्टी से विधायक भी रह चुके हैं। आरपीएन सिंह 4 बार लोकसभा चुनाव में अपना भाग्य आजमा चुके हैं लेकिन सफलता सिर्फ एक बार मिली है।
ऐसे में करीब 4 दशक से राजनीति में सक्रिय आरपीएन सिंह 3 बार विधायक और 1 बार सांसद रहे हैं। पार्टी की राष्टीय राजनीति में सक्रिय रहे आरपीएन सिंह राहुल गांधी के करीबीयों में से रहे हैं। अक्सर अपनी टिप्पणियों की वजह से सुर्खियों में रहने वाले आरपीएन सिंह ने साल 2019 के चुनावी हलफनामे में अपनी संपत्ति 13 करोड़ इकतालीस लाख चालीस हजार बताई थी और कहा था कि उनकी पत्नी के पास दस करोड़ पचास लाख रुपए की संपत्ति है। आरपीएन के पास कुल 24 लाख रुपए के गहने और उनकी पत्नी 31 लाख रुपए के गहने थे। आरपीएन सिंह ने कहा था कि कृषि उनका मूल पेशा है, जबकि उनकी पत्नी सोनिया सिंह की कमाई का जरिया पत्रकारिता है।
गोरखपुर मंडल की सीटों को आरपीएन सिंह कर सकते हैं प्रभावित
चुनावी उठापठक के बीच एक पखवारा पूर्व भाजपा सरकार में मंत्री रहे स्वामी प्रसाद मौर्य को को तोड़कर सपा मुखिया अखिलेश यादव ने अपनी पार्टी की सदस्यता दिलाकर बड़ा झटका दिया था। इसके बाद से ही कयास लगाया जा रहा था कि भाजपा जल्द ही कोई बड़ा राजनीति खेल खेलेगी। इसी क्रम में कांग्रेस पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष के गृह जनपद कुशीनगर में ही भाजपा ने आरपीएन सिंह को तोड़कर एक साथ विपक्ष को बड़ा झटका दिया है। राजनीतिक गलियारे में चर्चा है कि आरपीएन सिंह लगातार संसदीय चुनाव में हार का सामना करने के बाद स ेअब नई जमीन के तलाश में थे। मध्य प्रदेश से ज्योतिरादित्य सिंधिया के कांग्रेस छोड़ कर भाजपा में चले जाने के बाद से ही इसकी चर्चा तेज हो गई थी, कि आरपीएन भी कभी भी पार्टी छोड़ सकते हैं। इसके पीछे तक देनेवालों की दलील थी कि आरपीएन व ज्यातिरादित्य के आपसी रिश्ते बहुत ही मजबूत हैं। लेकिन इस कयास को जल्द धरातल न मिलने के पीछे अभी संसदीय चुनाव में दो वर्ष से अधिक का वक्त होने को मुख्य कारण माना जा रहा था। हालांकि यह बहस स्वामी प्रसाद मौर्य के पार्टी छोड़ देने से एक बार फिर शुरू हो गई थी। इस बार इसकी कोशिश कांग्रेस नेतृत्व के तरफ से ही दिखी।
वर्ष 2019 के संसदीय चुनाव के नतीजों को देखें तो आरपीएन सिंह को कुशीनगर सीट से हार मिली थी। लेकिन पड़रौना विधान सभा क्षेत्र सीट से आरपीएन ने भाजपा के विजय दुबे से बारह हजार की बढ़त हासिल की थी। इस बार के विधान सभा चुनाव में कुशीनगर की सात सीटों में से तीन पर भाजपा व सपा की सीधी टक्कर की संभावना है। जिसमें हाटा सीट से सपा के कददावर नेता राधेश्याम सिंह के अलावा खडडा व पड़रौना सीट पर सपा मजबूत टक्कर देने की स्थिति में है। लेकिन आरपीएन सिंह के भाजपा में आ जाने से यहां समीकरण अब बदल सकता है। यह उम्मीद जताई जा रही है कि पडरौना सीट से सपा से स्वामी प्रसाद मौर्य के चुनाव लड़ने पर भाजपा आरपीएन सिंह को यहां से उतार सकती है। जिससे पार्टी को अच्छी बढ़त मिल सकती है।
दूसरी तरफ एक महत्वपूर्ण पहलु यह है कि सैंथवार विरादरी की आधा दर्जन सीटों पर अच्छा खासा जातिगत वोट है। जिसे भाजपा अपने पक्ष में आरपीएन सिंह के चलते लाने में कामयाब हो सकती है। हालांकि यह वोट पिछले विधान सभा चुनाव में भी भाजपा को मिली थी। इनसे इतर कांग्रेस पार्टी को आरपीएन सिंह के खोने से इनके कार्यकर्ताओं पर मनोवैज्ञानिक प्रभाव पड़ेगा। कांग्रंेस पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार लल्लु कुशीनगर जिले के तमकुहीराज विधान सभा क्षेत्र से ही सदन में नेता हैंै। उनके जिले में भाजपा ने यह सेंधमारी कर कांग्रेस के बढ़ते मनोबल को तोड़ने का काम की है।
हालांकि देवरिया कांग्रेस कमेटी के कार्यकारी जिलाध्यक्ष जयदीप त्रिपाठी ने कहा कि आरपीएन सिंह के पार्टी छोड़ने से संगठन को कोई नुकसान नहीं होगा। ऐसे सरीखे नेताओं की पार्टी में अब दिन लद चुके हैं। पार्टी को बंद कमरे में बैठकर राजनीति करनेवाला नहीं संघर्ष में हमेशा खड़े रहनेवाले नेता की जरूरत है। अब पार्टी में संघर्षरत कार्यकर्ताओं को नेतृत्व उचित स्थान देकर उन्हें मुख्यधारा में शामिल कर रही है। जिसका नतीजा है कि अब युवा हमारी पार्टी में तेजी से जुड़ रहे हैं। आरपीएन सिंह के भाजपा में जाने का असर पार्टी के कार्यकर्ताओं पर नहीं पड़ेगा।